दिवस

मादक द्रव्य व्यसन : अनिर्णय से अटल निर्णय (से नो टू ड्रग्स) का सफ़र

 

अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस‘ 26 जून के अवसर पर विशेष आलेख

गाँव की एक महिला को चिलम फूंकते हुए देखा तो न चाहते हुए भी उसकी तरफ़ नज़र रुक गई, जिज्ञासावश चर्चा के दौरान मालूम हुआ कि जब वह लगभग 10 वर्ष की थी तो उसके दादा जी उससे मेहमानों के लिए हुक्का और चिलम लाने को कहते थे और जब वह ले आती तो उसके दादा जी फिर चिलम जलाने के लिए आग लाने को कहते थे। वह झल्ला कर कहती “दादा जी आप मुझे दौड़ाते रहते हैं, मुझे ही सिखा दीजिये कैसे जलाते हैं इसको”। दादा जी ने बिना आगे-पीछे सोचे उसको कहा कि चिलम में तम्बाकू पर कंडे की आग रख कर मुँह लगाकर खींचना होता है। दिन भर में कई बार ये सिलसिला दोहराया जाता और फ़िर न जाने कब ये आदत में शुमार हो गई और कब ये नशा बन गया पता ही नहीं चला। ये कहानी है पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गाँव की। उत्तराखंड के एक थारू युवक की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी जो उधमसिंह नगर के एक वन ग्राम से जुड़ी हुई है। उस युवक को बीड़ी की लंबी कश खींचते देख जब उससे पूछा कि “बीड़ी तो ऐसे खींच रहे हो जैसे मुँह में ही चिमनी लगी हो, वो मुस्कुराया फ़िर गर्व के साथ बोला, ” हमारे यहाँ दारु और बीड़ी आम बात है, बचपन से ही बड़ों के साथ बैठकर इनका सेवन करना सीख लिया, मेहमानों की आवभगत के लिए हम युवक ही ये सब व्यवस्थाएं करते हैं”। दोनों कहानियों में एक समानता है कि बड़ों ने ही उनको सिखाया कि चिलम और बीड़ी को बुझने से बचाने के लिए कश लेना जरूरी होता है और फ़िर दोनों ने ही इसको अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लिया।

पूरी दुनिया और भारत में मादक द्रव्य व्यसन की स्थिति

ये एक बानगी मात्र है कि कैसे ये लोग जाने-अनजाने ‘द्रव्य’ या ‘मादक पदार्थों’ के चंगुल में फंस गए। भारत के नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अनुसार आज देश के लगभग 100 मिलियन लोग मादक द्रव्य व्यसन के शिकार हैं। वर्ष 2019 से 2021 के मध्य उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब में एन.डी.पी.एस. एक्ट- 1985 (नगरकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज एक्ट) के तहत सबसे अधिक संख्या में प्राथमिकियां दर्ज हुई थीं। यूनाइटेड नेशन्स ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) द्वारा जारी ‘वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2024’ के अनुसार पूरी दुनिया का यह आँकड़ा 292 मिलियन के लगभग है जो एक दशक में 20% से भी ज़्यादा बढ़ा है।

जब ‘उड़ता पंजाब’ फ़िल्म रिलीज हुई थी तो काफी हो- हल्ला मचा था कि यह पंजाब को बदनाम करने की साज़िश है। मैकलियोड (2019) ने अपनी संपादित कृति ‘सूचना युग में प्रचार: अभी भी सहमति का निर्माण’ में बताया कि पंजाब के संदर्भ में मादक द्रव्य व्यसन का जो डेटा प्रस्तुत किया गया है वो भ्रामक और मीडिया तथा फ़िल्म के माध्यम से नैरेटिव बिल्डिंग का ही एक स्वरूप है क्योंकि पंजाब के जो आंकड़े हैं वो मूल पंजाब के वासियों के कारण नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार से रोजगार की तलाश में आये प्रवासी श्रमिकों के मादक द्रव्यों के ज़्यादा उपभोग के कारण दिख रहे। लेकिन एक कड़वी सच्चाई भी उजागर होती है जो एन.सी.बी. के आंकड़ों में दिखती है। भारत में ड्रग तस्करी के 2022 से 2024 के मध्य दर्ज 3.02 लाख मामलों के राज्यवार  आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता लगता है कि राज्यवार ड्रग तस्करी के मामलों की संख्या में केरल 85,334 मामलों के साथ अव्वल रहा जबकि महाराष्ट्र (35,883 मामले), पंजाब (33,012 मामले) और उत्तर प्रदेश (24,698 मामले) के साथ दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर रहे।

मादक द्रव्य व्यसन का मकड़जाल : “मैग्नीट्यूड ऑफ सब्सटेंस यूज़ इन इंडिया”

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार की 2019 की “मैग्नीट्यूड ऑफ सब्सटेंस यूज़ इन इंडिया” विषयक एक रिपोर्ट जो आम्बेकर एवं अन्य के द्वारा एम्स, नई दिल्ली तथा नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेन्टर के तहत की गई थी, के अनुसार भारत में 3.1 करोड़ लोग कैनबिस के यूज़र्स हैं और इनमें से 72 लाख लोगों को इलाज़ की आवश्यकता है। 2.26 करोड़ ओपीओइड्स का सेवन करने वालों में से 60 लाख ओपीओइड्स यूज़र्स को ट्रीटमेंट चाहिए। 1.18 करोड़ लोग सेडेटिव्स लेते हैं जिनमें 11 लाख सेडेटिव्स लेने वालों को अस्पताल जाना तय है। 16 करोड़ एल्कोहल लेने वाले (10 से 75 वर्ष के आयु वर्ग के) जिनमें 5.7 करोड़ आदी हैं जिनको इलाज की जरूरत है। इन्हेलेंट्स के केस में 4.58 लाख बच्चों और 18 लाख वयस्कों को निदान की आवश्यकता है। देश में 8.5 लाख लोग पीडब्ल्यूआईडी (पीपल हू इंजेक्ट ड्रग्स) वर्ग के तहत निदान ग्राही हैं।

मादक द्रव्यों के वास्तविक नाम और कोड नाम (छदम नाम) 

दुनिया भर में अनेक तरह के ड्रग्स के मामले रिपोर्ट किये जाते रहते हैं जिनमें एल्कोहल, कैनबिस (भाँग, गांजा, चरस, मरिजुआना, ग्रास, डोप, पॉट, पफ़, वीड, स्कंक), ओपीओइड्स (अफीम, हेरोइन-स्कग, स्मैक, गियर, ब्राउन, जंक), सेडेटिव्स (हिप्नोटिक्स/शामक/सम्मोहक), इन्हेलेंट्स, कोकीन (चार्ली, कोक,स्नो, क्रैक), एम्फेटामिन्स स्टिमुलैंट्स (एटीएस), हलूसिनोजेन्स, एलएसडी, फेंटानिल, नेटीजेन्स ( नए तरह का सिंथेटिक ओपीओइड जो अत्यंत प्राणघातक पदार्थ) और केटामीन ( के, केट, स्पेशल के, सुपर के, विटामिन के) आदि प्रमुख हैं। लेकिन अनेक देशों में अब नए तरह के सिंथेटिक ड्रग्स जो अनेक छदम नामों से बिक रहे जैसे ‘प्लांट फ़ूड’, ‘हर्बल इंसेंस’, ‘पॉट पूरी’, ‘जूलरी क्लीनर’, ‘रिसर्च केमिकल्स’, ‘स्पाइस/ के2’, ‘यूकाटन फायर’, ‘सकंक’, ‘ब्लेज़’, ‘ब्लिस’, ‘फ्लक्का’, ‘बाथ साल्ट्स’, ‘स्माइल्स’, ‘फ़ॉक्सी’,  ‘नेक्सस’, ‘ब्लू मिस्टिक’, ‘मॉली’, ‘एक्सटीसी’, ‘एमडीएमए’, ‘मैंडी’, ‘ऐडम एंड ईव’, ‘जीबीएल’, ‘जीएचबी’ आदि भी सुनने को मिलते हैं।

विद्यार्थियों में मादक द्रव्य व्यसन

अमेरिकन एडिक्शन सेंटर डॉट ओआरजी के अनुसार अमेरिका में ‘मॉनिटरिंग द फ़्यूचर सर्वे’ के अनुसार कक्षा 8, 10 और 12 के 5% विद्यार्थियों में सिंथेटिक मेरिजुआना के यूज़ के केस देखने को मिले। चंद्राकर एवं अन्य के 2023 के ‘क्यूरियस’ में प्रकाशित एक शोध के अनुसार भारत में भी ‘स्ट्रीट चिल्ड्रेन’ तथा स्कूली बच्चों में ‘व्हाइटनर’, ‘पेन बाम’ और ‘कफ़ सीरप’ का यूज़ नशे की लत के रूप में देखा गया है जिसकी रोकथाम लिए सरकारी तंत्र ने अनेक प्रयास किये हैं। 

वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2024

यूएनओडीसी द्वारा जारी ‘वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2024’ के अनुसार दुनियाभर के ड्रग यूज़र्स में 228 मिलियन की पहली पसंद कैनबिस है जबकि 60 मिलियन के पसंदीदा पदार्थ के रूप में ओपीओइड्स दूसरे स्थान पर, तीसरे स्थान पर एम्फेटामिन्स 30 मिलियन लोगों की पसंद, कोकीन 23 मिलियन की पसंद तो वहीं एक्सटेसी 20 मिलियन का पसंदीदा मादक द्रव्य है। सभी मादक द्रव्यों के प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होते हैं जैसे कि कोकीन से ‘कोकीन बग’।

मादक द्रव्य व्यसन: मन-मस्तिष्क पर कुप्रभाव

मादक द्रव्य व्यसन के आदी व्यक्ति के शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर अनेक अल्पकालिक और दीर्घकालिक  कुप्रभाव पड़ते हैं जैसे कि हृदय गति का अनियंत्रित होना, रक्तचाप में उतार-चढ़ाव, फेफड़े के रोग, कैंसर, एड्स, हेपेटाइटिस सी और बी, हृदय रोग, हृदयघात, स्ट्रोक, भूख में परिवर्तन आदि। मादक द्रव्य व्यसन को एक ‘ब्रेन डिजीज़’ के रूप में देखा जाता है क्योंकि  मादक द्रव्य मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को तो प्रभावित करते ही हैं साथ ही उसकी संरचना को भी बदलते हैं। इससे शरीर क्रिया भी गंभीर रूप से बाधित होती है।  

मादक द्रव्य व्यसन के कारण

मादक द्रव्य व्यसन के कारणों की चर्चा करें तो ‘फ़ील गुड'(आनंदानुभूति), फ़ील बेटर,(उल्लासोन्माद, सुखाभास, अति उत्साह),’फ़ील रिलैक्स्ड'(विश्रान्ति, संतुष्टि), अच्छा करने की चाहत, ‘पीयर प्रेशर’ (समवय/समकक्षी दबाव), ‘सोशल प्रेशर’ (सामाजिक दबाव), पर्यावरणीय कारक, जैविक कारक (वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी व्यक्ति के व्यसनी होने की संवेदनशीलता/भेद्यता का 40 से 60 प्रतिशत कारण उसकी अनुवांशिकी से तय होता है) तथा ड्रग को इस्तेमाल करने का तरीक़ा आदि महत्वपूर्ण कारण होते हैं। ‘नेशनल ड्रग इंटेलीजेंस सेन्टर’ की मानें तो आजकल युवा शेख़ी बघारने, अपने स्टेटस को ऊँचा दिखाने और स्टेटस सिम्बल के लिए भी ‘रेव पार्टी’ में जाते हैं और एमडीएमए, जीएचबी, एलएसडी जैसे मादक पदार्थों से नशाखोरी करते हैं।

मादक द्रव्यों की एपिडेमियोलॉजी और मादक द्रव्य व्यसन का निवारण

निवारण की बात की जाए तो वैज्ञानिक और चिकित्सक दोनों इस बात पर सहमत हैं कि जितनी जल्दी मादक द्रव्यों से दूरी बनाएंगे उतनी जल्दी व्यसन से बच पाएंगे। मादक द्रव्यों की एपिडेमियोलॉजी का अन्वेषण उस स्थिति में अतिआवश्यक हो जाता है जब हम पब्लिक हेल्थ और जन कल्याण को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन भारत के राज्यों के सन्दर्भ में 2019 से पूर्व हमारे पास कोई विश्वसनीय डेटा बेस उपलब्ध नहीं था।

सार्थक पहल: मैग्नीट्यूड ऑफ सब्सटेंस यूज़ इन इंडिया

इस दिशा में सार्थक पहल के रूप में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के निर्देशन में 2019 में “मैग्नीट्यूड ऑफ सब्सटेंस यूज़ इन इंडिया” विषयक रिपोर्ट हमारे सामने आई जिसने एक तरफ़ तो इस विषय को सुदृढ़ वैज्ञानिक अध्ययन पद्धति के द्वारा समझने का मार्ग प्रशस्त किया, दूसरी ओर राज्यों में इस समस्या की जड़ें कितनी गहरी हैं इसका भी गंभीर आँकलन उपलब्ध कराया।

मादक द्रव्य व्यसन के निवारण के विभिन्न उपागम

इस समस्या से मजबूती से लड़ने के लिए सक्षम नीति-निर्माण, जागरूकता कार्यक्रमों के साथ यह जरूरी है कि मादक द्रव्य व्यसनग्रस्त लोगों को वैज्ञानिक साक्ष्य आधारित उपचार और पुनर्वास की सुविधाएं और जरूरी हेल्थ डिलीवरी सिस्टम व इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराया जाए। यह भी जरूरी है कि हेल्थ डिलीवरी सिस्टम व इंफ्रास्ट्रक्चर की इसके संदर्भ में उपचार सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त ओवरहॉलिंग की जाए और तदनुसार ओरिएंट किया जाये। इसके साथ यह शर्त भी है कि इस दौरान मरीज़ के मानवाधिकारों और चिकित्सा-गत नैतिक मानकों का पूरा ध्यान रखा जाए।

इस हेतु स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में राज्यों को वृहद स्तर पर वित्तीय निवेश करना होगा। साथ ही साथ गैर-सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटी संगठनों और  स्वयंसेवी संस्थाओं के इस क्षेत्र में सहभागिता को प्रोत्साहित तथा विस्तारित करना होगा। भारत 2016 के संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के तेरहवें सत्र का सिग्नेटरी भी है और इस लिहाज से भी व्यसनग्रस्त लोगों को प्राथमिकता के आधार पर इलाज उपलब्ध कराना एक सरकारी उत्तरदायित्व है। यह उत्तरदायित्व सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के भी जिम्मे है। समाज और परिवारों की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है जब युवाओं को व्यसन के दलदल से सकुशल निकाल कर मुख्य धारा में समाहित करना हो। काउन्सलिंग हेतु मनोवैज्ञानिकों की उपलब्धता आसान होनी चाहिए।

निवारण में एंथ्रोपॉलजिस्ट (मानववैज्ञानिक) की हो सकती है सशक्त भूमिका

समस्या की तह तक पहुंचने के लिए एंथ्रोपॉलजिस्ट (मानववैज्ञानिक) भी सशक्त भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। अपनी एथनोग्राफिक विधि,  क्षेत्रकार्य पद्धति और होलिस्टिक लेंस के अनुप्रयोग से एक ओर तो वह समस्या को गहराई से समझने में सार्थक रोल प्ले कर सकते हैं तो दूसरी ओर व्यसनग्रस्त समुदायों को फ़ोकस ग्रुप डिस्कशन तथा केस अध्ययन विधा के माध्यम से समझकर मादक द्रव्य व्यसन से निजात दिलाकर मेनस्ट्रीमिंग करने में भी अति उपयोगी हो सकते हैं। कई एंथ्रोपॉलजिस्ट ने मादक द्रव्य व्यसन को बायोमेडिकल, साइकोलॉजिकल, सोशल-कल्चरल, डेवलपमेंटल तथा स्पिरिचुअल परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास किया और निवारण तथा मेनस्ट्रीमिंग फेज में अत्यधिक सफल रहे। ऐसे उपचारात्मक प्रयास हमारे देश में भी किये जाने की नितांत आवश्यकता है।

निवारण में स्कूली शिक्षा की भूमिका : 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस

स्कूली शिक्षा में एनसीईआरटी की कक्षा 7 की विज्ञान की पुस्तक ‘क्यूरिऑसिटी’ (2025) में विद्यार्थियों में हानिकारक पदार्थों और मादक द्रव्य व्यसन के प्रति जागरूकता पैदा करने हेतु अच्छा प्रयास दिखता है। नशा मुक्त भारत अभियान के साथ इस पाठ की सबसे अच्छी सीख एक पंक्ति है जो इस प्रकार से है- “मादक पदार्थों से बचाव का सबसे अच्छा और कारगर तरीक़ा है कि इसको पहली बार और आखिरी बार ‘ना’ (NO) कहने के अपने निर्णय में हम पूरी तरह से अटल, संदेह रहित और आत्मविश्वासपूर्ण रहें”। स्कूली शिक्षा की विषयवस्तु में इसके साथ मादक द्रव्य व्यसन के लक्षणों तथा पहचान के तरीकों को भी शामिल करना एक अच्छा प्रयास साबित हो सकता है। साथ ही साथ समय-समय पर अभिभावकों को इस विषय पर तथा उसके मिथकों और तथ्यों पर जागरूक करना भी जरूरी है।

‘नशा मुक्त भारत अभियान’ अच्छा प्रयास है। स्टेट- लेवल कोऑर्डिनेटिंग एजेंसी, इंटेग्रेटेड रिहैबिलिटेशन सेंटर्स फ़ॉर एडिक्ट्स, आउटरीच एंड ड्रॉप-इन सेंटर्स, कम्युनिटी बेस्ड पीयर-लेड इंटरवेंशन, फैमिली काउन्सलिंग, कॉम्पलिमेंटरी थेरेपी, लाइफ स्किल ट्रेनिंग मॉड्यूल्स तथा साथ ही साथ व्यसनग्रस्त लोगों को यह सिखाना कि “अच्छी आदतें स्वस्थ और खुशहाल जीवन देती हैं” इस समस्या से समाज को आज़ादी दिलाने में मददगार हो सकते हैं। 

सरकारें प्रयास कर रही हैं जैसे भारत सरकार के ‘केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो’ की ‘जीवन चुनें, नशा नहीं’ विषयक ऑनलाइन शपथ और प्रमाण पत्र। इस शपथ की हरेक पंक्ति अपने में बहुत ही ताकतवर फ़लसफ़े से युक्त है जो जीवन को सम्मानजनक तरीके से जीने का हुनर सिखाती है वो भी बिना किसी ‘ड्रग्स’ या ‘मनोत्तेजक’ के। तो आइए हम सभी आज दिनांक 26 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस’ के अवसर पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने के साथ एकजुट होकर “से नो टू ड्रग्स” को जीवन का मूल मंत्र बनाएं, समाज और देश को मजबूत करें।

संदर्भ सूची

Alcohol Drugs

(https://www.gov.je/Health/AlcoholDrugs/pages/drugseffects.aspx)

The Neurobiology of Substance Use, Misuse, and Addiction

(https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK424849/)

Open Government Data (OGD) Platform India

(https://www.data.gov.in/keywords/Drugs)

Survey on Addiction of Drugs

(https://www.pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1985911)

Drug Addiction

(https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1842697)

India: Presentation of key findings from UNODC’s World Drug Report 2024 to mark the International Day against Drug Abuse and Illicit Trafficking

(https://www.unodc.org/southasia//frontpage/2024/June/india_-presentation-of-key-findings-from-unodcs-world-drug-report-2024-to-mark-the-international-day-against-drug-abuse-and-illicit-trafficking.html)

NISD

(https://www.nisd.gov.in/drug_abuse_prevention.html#:~:text=About%203.1%20crore%20individuals%20(2.8,people%20suffer%20from%20cannabis%20problems.&text=1.18%20crore%20(1.08%25)%20are,(non%2Dmedical%20use).&text=1.7%25%20of%20children%20and%20adolescents,need%20help%20for%20inhalant%20use)

MacLeod, A. ed.(2019) Propoganda in the information age: still manufacturing consent. London; Newyork: Routledge pp.1991-2002

https://www.justice.gov/archive/ndic/pubs/656/656t.htm#:~:text=While%20techno%20music%20and%20light,component%20of%20the%20rave%20culture

Ambekar A, Agrawal A, Rao R, Mishra AK, Khandelwal SK, Chadda RK on behalf of the group of investigators for the National Survey on Extent and Pattern of Substance Use in India (2019).Magnitude of Substance Use in India. New Delhi: Ministry of Social Justice and Empowerment, Government of India.

लेखक

प्रो. (डॉ.) राहुल पटेल

प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, मानवविज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय

डॉ. संजय कुमार द्विवेदी

 पोस्ट डाक्टोरल फेलो, मानवविज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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राहुल पटेल

लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं। सम्पर्क +919451391225, rahul.anthropologist@gmail.com
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