कोरोना काल और समाज
- कीर्ति मल्लिक
माना कि हाहाकार चहुदिक में मचा हुआ है!
गन्दी राजनीति भी जोरों-शोरों से चल रही है!
स्वार्थसिद्धि भी अपने चरम पर दिख रही है!
मानवता भी धीरे धीरे मर रही है!
मजबूर बाप पेट की पीड़ा, दरिद्रता से व्यथित हो बैल बेच बेटे को गाड़ी में जोत रहा है!
हंसने-खेलने-पढ़ने की उम्र में एक छोटी बहादुर बिटिया असमर्थ पिता को बिठा लम्बी दूरी तय कर दोपहिया वाहन (साईकिल) से घर पहुँच रही है! एक श्रमिक पिता अपना संसार साईकिल पर लाद एक बोरे में अपने बच्चे को लिटा, अपने गंतव्य की ओर जा रहा है, जिसमें से झांकती दो मासूम आँखें सिस्टम से सवाल पूछती दिखती है।
हाँ मैं मानती हूँ सम्पूर्ण विश्व क्रंदन कर रहा है, पर क्या कोई समाधान नहीं, निराशा है तो क्या आशा की लौ हम जगा नहीं सकते, किसी को बचा नहीं सकते तो क्या, हम प्रयास तो कर सकते है। क्या इस महामारी को केवल सरकार के भरोसे छोड़कर बैठ जाना अच्छा है।
हाँ बहुत जरूरी है समाज, राजनीति की गन्दगी या कहे यथार्थ को सबके सम्मुख लाना जिससे सबको पता चले वास्तव में स्थिति क्या है और सुधार हो सके, पर यह भी जरूरी है कि केवल गरियाने से अच्छा है, हम एक होकर खुद के दायित्व का पालन करे। परिस्थितियां बदलेंगी और जरूर बदलेंगी, जरूरी है इन विपरीत परिस्थितियों में एक हो हम एक दूसरे का सहारा बने।
इस महामारी ने तो अब जाति धर्म का रूप भी ले लिया है, जो शर्मनाक है, आस पास कई बार लोगो को कहते सुना है कि ये सब मुसलमानों ने फैलाया है, ये हिन्दू ने फैलाया है, कुछ समय बाद सुनती हूँ अरे ये गन्दे-सन्दे मजदूर फैला रहे है फिर अगले दिन नया सुनने में आता है ये तो ये कमबख्त सब्जी वाले फैला रहे हैं। ये महाज्ञानी लोग जो जाति विशेष, धर्म विशेष, गरीब और मजबूर श्रमिक लोगों के लिए जो गन्दगी उगल रहे है उससे वह खुद को क्षुद्र मानसिकता का और छोटा साबित करते है।
जब हम पूछते है भाई तुम इस महामारी में अपनी क्या जिम्मेदारी निभा रहे हो, क्या तुम कोई योगदान दे रहे हो, थोड़ी भी सहायता कर रहे हो कि केवल गन्द उगल रहे हो, जो बाद में भी बनी रहेगी, महामारी तो अभी है और एक वक़्त के बाद चली जाएगी पर ये जो जहर उगल रहे हो, इसका क्या होगा, ये केवल लोगो में नकारात्मकता फैलाएगा, लोग आपस में दुश्मन होंगे।
सत्य से समाज को परिचित कराने और गन्द उगलने में अन्दर होता है, सावधान रहिए सुरक्षित रहिए, अपने विवेक का प्रयोग कीजिए, सारा दारोमदार सरकार पर डालने या उस भरोसे बैठने से क्या होगा, वो नहीं कर रही तो क्या इंसान मरता रहेगा और आप अपनी आँखों से उसे मरते देखते रहेंगे, अपने आस पास देखिए सहायता कीजिए, सचेत होइए, जागरूकता फैलाइए, बहुत लोग अब भी नहीं जान रहे है कि कोरोना क्या है, कितनी गंभीर समस्या है, बस कूल डूड बने घूम रहे है, जैसे सहयोग ना करने की ठानी हो, आप आगे बढ़िए समझाइए।
अभी कुछ वक़्त पहले की बात है, मेरे इधर नल्ले बैठे लोगों ने धर्म चर्चा शुरू कर दी, धीरे-धीरे रोज जमात बैठने लगी, पहले दो फिर दो से चार और ऐसे ही, फिर बाइबिल की बात चली तो एक महिला पूरी बाइबिल ही उठा लायी, ना जाने क्या बात हुई मोहल्ले में शाम को दरी बिछी लोगों को बुलाया गया जैसे कोई जागरण होने वाला है, औरतें मुँह पर तो मास्क नहीं पर सिर पर दुपट्टा डाले हाथ जोड़े दरी पर बैठी थी, बच्चो को भी बिठा लिया, पुरुष कुर्सी पर बैठे और कुछ लोग खड़े थे, यही लोग दिन में सोशल डिस्टेंसिंग और कोरोना को लेकर बड़ी बड़ी बात करते और ज्ञान बघारते दिखते है,
यह भी पढ़ें- कोरोना संकट और भारत के वंचित समुदाय
तो बात है इसे जोड़ दिया गया ईश्वर से, अरे भाई ये बीमारी है समझो तुम्हारे सावधानी बरतने से समाप्त होगी ना कि यहाँ बैठ कर उपदेश देने और सुनने से, आस्था अच्छी बात है पर इस चक्कर में अन्धविश्वास तो ठीक नहीं ना, पहले मैंने सोचा छोटी हूँ इनसे, कुछ कहूँगी तो ना जाने क्या कहे पर हिम्मत करके कहा, समझाया तो असर पड़ा और इधर ऐसा फिर नहीं हुआ, लोगो ने बात समझी और गंभीरता से लिया काफी जागरूक हुए, मुझे देखकर अच्छा लगा छोटी सी कोशिश पर कामयाब हुई।
जागरूक रहना जरूरी है आवाज़ उठाना जरूरी है तभी क्रिया की प्रतिक्रिया मिलेगी, ये राजनीति-राजनीति की कबड्डी में जो गरीब इंसान मर रहा है वो क्या बच पाएगा? नहीं ना तो इन स्वार्थसिद्धि वालों की कबड्डी के खत्म होने का इंतज़ार मत कीजिए, वरना आप ही के भाई बन्धु मरते दिखेंगे, केवल और केवल गन्द उगलने और तंज कसने से कुछ नहीं होगा, हम सब एक है, एक दूसरे की सहायता कीजिए, सहयोग कीजिए।
लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी (हिन्दी) शोधार्थी हैं।
सम्पर्क- +918171444037, kirtimallick10@gmail.com
.