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शख्सियत

ठण्डी हवाएँ लहरा के आएँ.. साहिर लुधियानवी : सौ वर्ष

 

साहिर ने जब लिखना शुरू किया तब इक़बाल, फ़ैज़, फ़िराक आदि शायर अपनी बुलंदी पर थे, पर उन्होंने अपना जो विशेष लहज़ा और रुख़ अपनाया, उससे न सिर्फ उन्होंने अपनी अलग जगह बना ली बल्कि वे शायरी की दुनिया पर छा गये। साहिर ने लिखा –

दुनिया के तजुरबातो-हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है, लौटा रहा हूँ मैं

1943 में ‘तल्ख़ियां’ नाम से उनकी पहली शायरी की किताब प्रकाशित हुई। ‘तल्ख़ियां’ से साहिर को एक नयी पहचान मिली। इसके बाद साहिर ‘अदब़-ए-लतीफ़’, ‘शाहकार’ और ‘सवेरा’ के संपादक बने। साहिर ‘प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन’ से जुड़े थे। ‘सवेरा’ में छपे कुछ लेख से पाकिस्तान सरकार नाराज़ हो गयी और साहिर के ख़िलाफ़ वारंट जारी कर दिया दिया। 1949 में साहिर दिल्ली चले आए। कुछ दिन दिल्ली में बिताने के बाद साहिर मुंबई में आ बसे।

1948 में फ़िल्म ‘आज़ादी की राह पर’ से फ़िल्मों में उन्होंने कार्य करना प्रारम्भ किया। यह फ़िल्म असफल रही। साहिर को 1951 में आई फ़िल्म “नौजवान” के गीत “ठंडी हवाएं लहरा के आएं …” से प्रसिद्धि मिली। इस फ़िल्म के संगीतकार एस डी बर्मन थे। गुरुदत्त के निर्देशन में बनी पहली फ़िल्म “बाज़ी” ने उन्हें प्रतिष्ठा दिलाई। इस फ़िल्म में भी संगीत बर्मन दा का ही था, इस फ़िल्म के सभी गीत मशहूर हुए। साहिर ने सबसे अधिक काम संगीतकार एन दत्ता के साथ किया। दत्ता साहब, साहिर के जबरदस्त प्रशंसक थे। 1955 में आई ‘मिलाप’ के बाद ‘मेरिन ड्राइव’, ‘लाईट हाउस’, ‘भाई बहन’,’ साधना’, ‘धूल का फूल’, ‘धरम पुत्र’ और ‘दिल्ली का दादा’ जैसी फ़िल्मों में गीत लिखे।

गीतकार के रूप में उनकी पहली फ़िल्म थी ‘बाज़ी’, जिसका गीत तक़दीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना ले…बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने ‘हमराज’, ‘वक़्त’, ‘धूल का फूल’, ‘दाग़’, ‘बहू बेग़म’, ‘आदमी और इंसान’, ‘धुंध’, ‘प्यासा’ सहित अनेक फ़िल्मों में यादग़ार गीत लिखे।

सन् 1939 में जब वे ‘गवर्नमेंट कॉलेज’ लुधियाना में विद्यार्थी थे तब प्रेम चौधरी से उनका प्रेम हुआ जो कि असफल रहा। बाद में उसके पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। लाहौर में रहने के दिनों में वे अपने शेर ओ शायरी के लिए प्रख्यात हो गये थे और मुशायरौं में शिरकत करते थे। अमृता इनकी प्रशंसक थीं। अमृता के परिवार वालों को इसपर आपत्ति थी क्योंकि साहिर मुस्लिम थे। अमृता प्रीतम ने अपनी किताब ‘रसीदी टिकट ‘ में अपने इश्क़ को तफ़्सील से बयां किया है। साहिर और अमृता दोनों अलहदा शख़्सियत के इंसान थे। अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी की प्रेम कहानी, वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन | amrita pritam sahir ludhianvi and imroz love story in hindi

दोनों शायरी के उस्ताद पर जहाँ साहिर ने अमृता से अपना इश्क़ दुनिया के सामने ज़ाहिर नहीं किया, वहीं अमृता ने कुछ भी न छुपाते हुए ईमानदारी और हिम्मत दिखाई है। उन्होंने बेबाकी से अपने साहिर के प्रति इश्क़ को ज़ाहिर किया है: ‘साहिर घंटों बैठा रहता और बस सिगरेटें फूंकता रहता और कुछ न कहता। उसके जाने के बाद में उन बचे हुए सिगरेटों के टुकड़े संभालकर रख लेती, फिर अकेले में पीती और साहिर के हाथ और होंठ महसूस करती। जब इमरोज़ के बच्चे की मां बनी तो बच्चे के साहिर के जैसे होने की ख़्वाहिश की। एक बार किसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा भी कि, ‘अगर इमरोज़ मेरे सर पर छत है तो साहिर मेरा आसमां। ’ अमृता ने साहिर का बहुत इंतज़ार किया पर वे नहीं आए।

साहिर ने शादी नहीं की, पर प्यार के एहसास को उन्होंने अपने नग़मों में कुछ इस तरह पेश किया कि लोग झूम उठते। साहिर की लोकप्रियता काफ़ी थी और वे अपने गीत के लिए संगीतकारों को मिलने वाले पारिश्रमिक से एक रुपया अधिक लेते थे। इसके साथ ही रेडियो सीलोन पर होने वाली घोषणाओं में गीतकारों का नाम भी दिए जाने की मांग साहिर ने की, जिसे पूरा किया गया। इससे पहले किसी गाने की सफलता का पूरा श्रेय संगीतकार और गायक को ही मिलता था।

हिन्दी फ़िल्मों के लिए लिखे उनके गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है। उनके गीतों में संजीदगी कुछ इस क़दर झलकती है जैसे ये उनके जीवन से जुड़ी हो। उनका नाम जीवन के विषाद, प्रेम में आत्मिकता की जग़ह भौतिकता तथा सियासी खेलों की वहशत के गीतकार और शायरों में शुमार है। साहिर वे पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी। निराशा, दर्द, विसंगतियों और तल्ख़ियों के बीच प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी करने वाले साहिर लुधियानवी के लिखे नग़मे दिल को छू जाते हैं। आज दशकों के बाद भी उनके गीत उतने ही ताज़ा लगते हैं, जितने कि जब लिखे गये थे।

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