संविधान
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सामयिक
भाषा का नवाचार या भ्रष्टाचार
कभी अज्ञेय ने, ख़ासकर साहित्य के संदर्भ में, शब्दों से उनके छूटते व घिस चुके अर्थों से व्यग्र होकर लिखा था – “ये उपमान मैले हो गए हैं। देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच। कभी वासन अधिक…
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आवरण कथा
भारत को लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने की चुनौतियाँ
घनश्याम संसदीय राजनीति में अमूमन लोग दलों को ही विकल्प मानते हैं। लेकिन भारत के संविधान ने ‘भारत के लोगों’ के प्रति ’आस्था’ प्रकट की है। भारत के लोग भी एक संघीय गणराज्य ‘लोकतन्त्रात्मक गणराज्य’ के रूप में…
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