दंगल सिंह
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (104)
सृष्टि के रचयिता यूके पर बहुत कृपालु रहे हैं। वहाँ की मिट्टी और जलवायु अपेक्षाकृत अधिक अच्छी है। मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है और जलवायु जाड़े के तीन महीनों के सिवा बहुत अनुकूल है। वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के लिए मुफीद…
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (103)
बिटिया के ब्याह में ही सभी बच्चों की उपस्थिति में छहों लोगों के यूके भ्रमण की भूमिका तैयार हो गयी थी। बेटा और बहू डेढ़ साल से इंग्लैंड में थे। जमाई का पासपोर्ट पहले से था। बिटिया और हम…
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (102)
बेटी के बड़ी हो जाने का अहसास माँ को पहले और पिता को बाद में होता है। बल्कि कहना यह चाहिए कि माँ ही पिता को याद दिलाती है कि अब बेटी के विवाह का कर्तव्य पालन करने…
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (101)
बेटे का विवाह निर्विघ्न तय कराने में विधाता का एक और उपकरण बनी थी हमारे विस्तृत परिजन की एक कन्या प्रेरणा। वह मेरी सीनियर विभागीय प्रोफेसर डॉ0 उमा कुमारी मंडल और श्री विश्वनाथ मंडल की बेटी है। उमा…
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (96)
कोरोना वायरस से विश्व भर में बने भीषण भय के माहौल में मुझे 2010 का साल याद आ रहा है। कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी के समय दिल्ली में डेंगू का कहर बरपा था। सम्पूर्ण एनसीआर इस महामारी के दहशत…
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (95)
मुहल्ले में सात-आठ परिवार ही बस पाये थे। न बिजली का ट्रांसफार्मर लग सका था और न गलियों का पक्कीकरण हो पाया था। इन दोनों कार्यों के लिए लोगों को मुझसे काफी उम्मीदें थीं। बसे हुए सभी लोग बिहार…
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (94)
अपने नये घर में बस जाने के बाद पुराने डेरे से लैंड लाइन फोन शिफ्ट कराना जरूरी था। मोबाइल फोन रहने के बावजूद इस कारण जरूरी था कि अखबार के लिए ब्रॉडबैंड इंटरनेट और फैक्स की सुविधा चाहिए थी।…
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (93)
बड़हिया स्थानांतरण प्रकरण के कारण मेरा विश्वास अच्छे कर्मों, सेवा और समर्पण भाव पर से जैसे उठ-सा गया था। कॅरिअर के प्रति उत्साह लगभग शून्य पर पहुँच गया था। मन ऐसा टूट गया था कि कॅरिअर एडवांसमेंट स्कीम के…
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दास्तान ए दंगल सिंह
दास्तान-ए-दंगल सिंह (92)
बड़हिया प्रकरण में कई ऐसे प्रसंग हैं जिन्हें चाहकर भी भूल नहीं सकता हूँ। दर्जनों विद्यार्थियों व अभिभावकों ने अलग-अलग ढंग से कुलपति पर मेरा तबादला निरस्त करने का दबाव बनाया था। इनमें से एक छात्र का प्रयास बड़ा…
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एतिहासिक
दास्तान-ए-दंगल सिंह (91)
बीएनएम कॉलेज बड़हिया जॉइन करने के बाद मेरा और सुधा का घोर तप या संघर्ष शुरू हो गया था। रात के ढाई बजे घड़ी की एलार्म के साथ हम दोनों बिछावन छोड़ देते। मैं नित्य क्रिया के साथ यात्रा…
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