अमिता

  • विशेषवेलेंटाइन और एंटी वेलेंटाइन

    वो प्यार था या कुछ और

      वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही प्रेम का भी मौसम देश-दुनिया में गुलजार होने लगता है। हर तरफ बाजार प्रेम के प्रतीकों से भर जाता है। युवाओं अथवा प्रेमी युगलों में जोश देखने लायक होता है। प्यार के…

    Read More »
  • शख्सियत

    कहाँ वे चले गये

      बात 2, 3 मार्च 2011 की है। अवसर था राजीव गाँधी शासकीय स्‍नातकोत्‍तर महाविद्यालय, अम्बिकापुर (छ.ग.) में मीडिया पर आयोजित राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का। उस दौरान मैं महात्‍मा गाँधी अंतरराष्‍ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा से जनसंचार में पीएच.डी. कर रही थी।…

    Read More »
  • मुद्दा

    व्‍यवस्‍था के मारे किन्‍नर

      समाज अथवा देश को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए नियम-कानून या व्‍यवस्‍था आवश्‍यक होता है। किन्तु किसी भी समाज में व्‍यवस्‍था को बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। यदि व्‍यवस्‍था सही न हो तो आम जनता…

    Read More »
  • शख्सियत

    चीरहरण के वे सवाल

      भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति प्रारम्भ से ही हाशिए पर रही है। शोषण, अत्‍याचार तो जन्‍म के साथ ही इनके नसीब में जुड़ जाता है। महिलाओं के साथ बलात्‍कार की बढ़ती घटनाएँ और हिंसा भी कोई नयी बात…

    Read More »
  • सामयिकdashrath manjhi road

    सिस्‍टम के कंधे पर लाशों का बोझ

      बिहार के ‘माउंटेन मैन’, दशरथ माँझी को शायद ही कोई होगा, जो नहीं जानता होगा। उस समय लोग इनसे और भी अच्‍छे से परिचित हो गये, जब नवाजुद्दीन सिद्दकी जैसे कलाकार ने उनके जीवन को परदे पर पुन: जीवन्त…

    Read More »
  • शख्सियतrishi kapoor

    ये अरमाँ है शोर नहीं हो, खामोशी के मेले हों

      इस महामारी और लॉकडाउन के दौर में हम लगातार कई सदमे से गुजर रहे हैं। इन सबके बीच पता नहीं था कि दो सदमे ऐसे भी मिलेंगे, जिससे उबर पाना बेहद मुश्किल है। वे भी तब, जब आप चारदीवारी…

    Read More »
  • सामयिक

    सोशल डिस्‍टेंसिंग बनाम क्‍लास डिस्‍टेंसिंग

      आज पूरी दुनिया एक विचित्र चिन्ता में डूबी हुई है। जाति, धर्म, आतंकवाद आदि से परे अधिकांश इसी ख्‍याल में खोये हैं कि कोरोना से कैसे मुक्ति पायी जाए? कोरोना महामारी ने सिर्फ हमारे देश को ही नहीं, बल्कि…

    Read More »
  • सामयिक

    समय का ये पल थम सा गया

      आज हम एक ऐसे समय से गुजर रहे हैं, जहाँ सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भय के माहौल में सिमटा हुआ है। कुछ लापरवाही कहें या गैर-जिम्‍मेदारी, कारण कुछ भी हो लेकिन सच्‍चाई सिर्फ यह है कि…

    Read More »
  • चर्चा में

    जश्न और जख्म के बीच आधी आबादी

      एक बार फिर महिला दिवस का उत्सव अपने चरम पर है। किन्तु यह महिला दिवस का उत्‍सव आसानी से हासिल नहीं किया गया था, बल्कि यह लम्बे संघर्षों और बलिदानों का परिणाम रहा है, जिसके परिणामस्‍वरूप आज महिला प्रतिनिधितत्‍व…

    Read More »
  • एक उपेक्षित वर्ग की अपेक्षा

      पिछले कुछ वर्षों से किन्नर विमर्श एक ऐसे विमर्श के रूप में उभरा है जो सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। किन्नरों की बात करते ही तथाकथित सभ्य समाज अथवा मुख्य धारा की समाज के मन…

    Read More »
Back to top button