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ठीक 25 साल पहले गोविंदा और करिश्मा कपूर स्टारर फ़िल्म आई थी कुली नम्बर वन। डेविड धवन के निर्देशन में तैयार हुई इस फ़िल्म ने आज भी दर्शकों के जेहन पर कब्ज़ा किया हुआ है। और आज ठीक पच्चीस साल बाद इसी फिल्म का रीमेक आया है। लेकिन सिनेमाघरों में नहीं आपके मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन पर। कितना समय बदल गया है न इन पच्चीस सालों में? जो नवजात थे मेरे जैसे वे आज किशोरावस्था पार कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने वाले बन गए। लेकिन नहीं बदली तो फ़िल्म की कहानी। तो इसे फिर से पर्दे पर लाने का कारण क्या है? यह तो निर्माता , निर्देशक से पूछना ही होगा। वैसे भी आजकल ज्यादातर फिल्में टाइम ख़राब ही हैं। यह फ़िल्म जाते हुए साल 2020 की आख़री फ़िल्म है। लेकिन बेहद कड़वे स्वाद के साथ यह साल को अलविदा कहती दिखाई देती है।
इन पच्चीस सालों में सिनेमा में कुछ बदला है तो वह है उसकी टैक्नीक और उसे बनाने के नए साधन। इस फ़िल्म का सेट तो भव्य बना दिया मगर यह पुरानी कुली नँबर वन जैसी भव्यता अपने में नहीं सिमो पाई है। सेट के अलावा इसकी स्टार कास्ट भी बदली है। लेकिन इसकी कहानी पहले वाली कुली फ़िल्म को जहां छोड़ा गया था वहीं खड़ी नजर आती है।
फ़िल्म की कहानी वही है लेकिन फिर भी बता देते हैं गोवा में एक होटल मालिक है जेफरी रोज़ारिया (परेश रावल) जो काफ़ी रिच है। वह अपनी बेटियों सारा (सारा अली ख़ान) और अंजू (शिखा तलसानिया) की शादी के लिए भी अपने स्टेटस जैसा ही लड़का खोज कर रहा है। पंडित जय किशन (जावेद जाफ़री) रिश्ता लेकर आता है, मगर अपने से कमतर परिवार को जेफरी रोज़ारिया बेइज़्ज़त करके घर से निकाल देता है। इससे आहत होकर जय किशन बदला लेने की ठानता है और कुली राजू (वरुण धवन) को कुंवर राज प्रताप सिंह बनाकर सारा से शादी करवाने की योजना बनाता है। उधर राजू सारा की फोटो देखकर उस पर फिदा हो जाता है और उसे अपनी दुल्हन बनाना चाहता है। जय किशन को और क्या चाहिए? जब वह सारा से शादी करने का प्रस्ताव राजू के सामने रखता है तो वह झटपट तैयार हो जाता है।
कुंवर का स्टेटस देख लड़कियों का बाप उस पर लट्टू हो जाता है और सारा से उसकी शादी करवा देता है। इसके बाद राजू अपना झूठ छिपाने के लिए हजार प्रयत्न करता है। लेकिन उसके इन प्रयासों से जो हास्य और विनोद पैदा करने की कोशिश की गई है। वह भी फ़िल्म के स्तर को ऊंचा नहीं उठा पाती। ख़ैर इसके बाद कहानी जाननी है तो फ़िल्म देखें। वैसे बेहतर होगा कि पुरानी वाली कुली नँबर वन ही देख ली जाए।
इस नयी वाली कुली नम्बर वन का स्क्रीनप्ले रूमी जाफरी ने लिखा है और इसके डायलॉग लिखें हैं फरहाद सामजी ने।
फ़िल्म में कई झोलमोल भी आसानी से पकड़े जा सकते हैं। और तो और स्टेशन पर कुली का काम करने वाला राजू पहिए पर चलने वाले सूटकेस को भी सिर पर उठाकर चलता है तो लगता है ये क्या बेहूदगी है भाई। दिमाग नाम की चीज फ़िल्म की पूरी टीम में किसी के पास भी नहीं थी?
सारा अली ख़ान के कैरियर की यह चौथी फ़िल्म है और इस फ़िल्म में सारा अपने अभिनय में कसावट लाने की कोशिश करती हुई भी दिखाई देती है। मगर आज के दौर में उसे देखें तो वह अपने किरदार में पूरी तरह मिसफिट लगती है।
इसके अलावा सहयोगी कलाकारों में परेश रावल, जावेद जाफरी, जॉनी लीवर , शिखा तलसानिया, साहिल वैद्य, राजपाल यादव की मौजूदगी जरूर निराश नहीं करती।
फ़िल्म में जो अच्छी बात है वह यह कि पुरानी फ़िल्म के सुपरहिट गाने ‘तुझको मिर्ची लगी’ और ‘हुस्न है सुहाना’ के पुराने फ्लेवर के साथ कोई छेड़छाड़ नही की गई है। लेकिन यह छेड़छाड़ पटकथा में होती तो ज़रूर फ़िल्म अच्छी हो सकती थी। अभिजीत भट्टाचार्य, कुमार शानू और अल्का याग्निक को फिर से सुनना अच्छा लगता है। ‘मम्मी कसम’ गाने में उदित नारायण की आवाज़ का इस्तेमाल भी हमें पुरानी यादों में ले जाता है।
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