रश्मि रावत
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हाँ और ना के बीच
वह और समाज का ‘मैं’
अपने इर्द-गिर्द किसी व्यक्ति के साथ घटित, दिल-दिमाग को बेतरह झकझोर जाने वाले सच्चे अनुभव हर महीने इस स्तम्भ में दर्ज होते रहे हैं। वर्तमान समय का परिवेश कुछ ऐसा है कि मन को व्यथित-विचलित कर देने वाली घटनाओं का…
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शख्सियत
जहाँ पर हम रुके वहाँ से तुम चलो
साहित्य की दुनिया से शुरुआती परिचय के दिनों से ही समकालीन हिन्दी आलोचना में नामवर जी की केन्द्रीय भूमिका से परिचित हो चली थी। अनौपचारिक चर्चाओं में भी शोधार्थी और साहित्य सेवी अपनी बात में वजन बढ़ाने के लिए…
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हाँ और ना के बीच
ठिठकी हुई जिन्दगानियाँ
इस विकट वर्तमान में इतना कुछ अकल्पनीय अब तक देखा, सुना, कहा। वही चेतना पर बहुत भारी था। भूख, थकान, पस्ती, गर्मी के अनवरत सिलसिलों से निढाल पड़ती- कभी बचती, कभी टूटती जानें। घरेलू हिंसा और स्त्री पर होने…
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हाँ और ना के बीच
नाम की उलझन
अपनी सहेली से फोन पर बात हो रही थी। हम एक-दूसरे से यह साझा कर रहे थे कि हमारे आस-पास के परिवेश में इन दिनों किस तरह के बदलाव नजर आ रहे हैं। अगर कोई अखबार, किताबें इत्यादि न…
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उत्तराखंड
शान्त दिखते जल के भीतर की जानलेवा सड़ांध
उत्तराखंड के टिहरी के श्रीकोट गाँव में 26 अप्रैल को जितेंद्र दास नामक एक युवक की सिर्फ इसलिए बुरी तरह पिटाई कर दी गई कि वह एक विवाह समारोह में कुछ लोगों के साथ कुर्सी पर बैठकर खाना खा…
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हाँ और ना के बीच
मुक्ति अकेले में नहीं मिलती
टी.वी. ऑन किया तो किसी विशेषज्ञ के मुँह से निम्नलिखित शब्द सुनाई पड़े। “यहाँ कोई रो नहीं सकता। चल नहीं सकता। कुछ बोल नहीं सकता। सुन नहीं सकता। क्योंकि आवाज को लाने, ले जाने के लिए माध्यम नहीं है।…
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स्त्रीकाल
पंख तो है मगर आसमाँ नहीं
राष्ट्रीय सीमाओं पर घटित हलचल से दिलों में विक्षोभ है। देश में चुनावों का माहौल गरमाया हुआ है। जन-आन्दोलनों से व्यापक तौर पर जुड़ी हस्तियों की चुनावों में हार ने चिन्ता को और भी गहरा दिया है। ऐसे समय…
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शख्सियत
पंखों को उड़ान देने वाली अर्चना दी
चंद पलों में धीमे से ऐसे दुनिया छोड़ कर चली गईं अर्चना वर्मा जी जैसे पढ़ते-पढ़ते किसी की आँख लग गई हों और पूरे के पूरे कुनबे को शोक में डुबो गईं। नारियल जैसी व्यक्तित्व वाली प्रभा दीक्षित जी…
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