अंबानी बंधुओं यानी मुकेश और अनिल में बँटवारे को दो साल हो गए थे. उस साल की फ़ोर्ब्स की अमीरों की सूची में दोनों भाई, मुकेश और अनिल मालदारों की लिस्ट में काफ़ी ऊपर थे. बड़े भाई मुकेश, अनिल से थोड़े ज़्यादा अमीर थे. उस साल की सूची के मुताबिक़ अनिल अंबानी 45 अरब डॉलर के मालिक थे, और मुकेश 49 अरब डॉलर के.
दरअसल, 2008 में कई लोगों का मानना था कि छोटा भाई अपने बड़े भाई से आगे निकल जाएगा, ख़ास तौर पर रिलायंस पावर के पब्लिक इश्यु के आने से पहले.
माना जा रहा था कि उनकी महत्वाकांक्षी परियोजना के एक शेयर की कीमत एक हज़ार रुपए तक पहुंच सकती है, अगर ऐसा हुआ होता तो अनिल वाक़ई मुकेश से आगे निकल जाते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
बहरहाल, लौटते हैं 2019 में. फ़ोर्ब्स की 2018 की रिच लिस्ट के मुताबिक, मुकेश अंबानी की दौलत में मामूली कमी हुई है, वे अब 47 अरब डॉलर के मालिक हैं, लेकिन 12 साल पहले 45 अरब डॉलर के मालिक अनिल अंबानी अब 2.5 अरब डॉलर के मालिक रह गए हैं. ब्लूमबर्ग इंडेक्स तो उनकी दौलत को सिर्फ़ 1.5 अरब डॉलर आंक रहा है।

एक दौर था जब दोनों भाइयों में ये साबित करने की होड़ थी कि धीरूभाई के सच्चे वारिस वही हैं, अब यह होड़ ख़त्म हो गई है और अनिल अपने बड़े भाई से बहुत पीछे रह गए हैं।
एक दशक पहले अनिल अंबानी सबसे अमीर भारतीय बनने के कगार पर थे. उनके तब के कारोबार और नए वेंचरों (उद्यमों) के बारे में कहा जा रहा था कि वे सारे धंधे आगे बढ़ रहे हैं और अनिल उनका पूरा फ़ायदा उठाने के लिए तैयार हैं.
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ मानते रहे कि अनिल के पास विज़न और जोश है, वे 21वीं सदी के उद्यमी हैं और उनके नेतृत्व में भारत से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी उभरेगी.
पूरी दुनिया मानो उनके कदमों में थी, दुनिया जीतने के लिए उन्हें चंद छोटे कदम बढ़ाने थे. ज़्यादातर लोगों को ऐसा लगता था कि अनिल अपने आलोचकों और बड़े भाई को ग़लत साबित करने जा रहे हैं. मगर ऐसा नहीं हो सका.
अनिल अंबानी अगर चमत्कारिक ढंग से नहीं उबरे तो दुर्भाग्यवश उन्हें भारत के कारोबारी इतिहास के सबसे नाकाम लोगों में गिना जाएगा. सिर्फ़ एक दशक में 45 अरब डॉलर की दौलत का डूब जाना कोई मामूली दुर्घटना नहीं है. उनकी कंपनी के शेयरधारकों को भारी झटका लगा है।
प्रीम कोर्ट ने कहा कि अनिल अंबानी ने जानबूझकर कोर्ट के उस आदेश की अवमानना की जिसमें स्वीडन की टेलिकॉम उपकरण बनाने वाली कंपनी एरिक्सन को 5.5 अरब रुपए देने थे.
इस ख़बर के बाद आर कॉम समेत अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियों के शेयर 10 फ़ीसदी तक लुढ़क गए.
इस मामले में कोर्ट ने अंबानी को अदालत की अवमानना का दोषी क़रार दिया है.
कोर्ट ने अरबपति अंबानी और आरकॉम के दो निदेशकों को चार हफ़्ते के भीतर एरिक्सन को 4.5 अरब रुपए देने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने साफ़ कहा कि अगर अंबानी इसका भुगतान नहीं करते हैं तो तीन महीने की जेल की सज़ा काटनी होगी. 2014 में एरिक्सन ने आरकॉम के नेटवर्क के प्रबंधन और संचालन को लेकर समझौता किया था.
पिछले साल एरिक्सन ने अदालत में 5.5 अरब रुपए के भुगतान नहीं होने को लेकर शिकायत की थी।

अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन्स या आरकॉम – एक वक़्त था जब ये भारत की दूसरी बड़ी टेलिकम्युनिकेशन्स कंपनी थी. मगर अब ये कंपनी दिवालिया हो चुकी है.
और उसका ये हाल उसके प्रतिद्वंद्वियों ने किया जिनमें उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी की जियो का अच्छा-ख़ासा योगदान है.
शेयर बाज़ार में भारी घाटे ने आरकॉम की कमर तोड़ दी. पिछले कई साल से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कंपनी ने अब आख़िरकार कोर्ट में क़र्ज़ की समस्या के समाधान के लिए अर्जी लगाई है.
सात अरब डॉलर के क़र्ज़ के नवीनीकरण में नाकाम होने के बाद रिलायंस ने यह घोषणा की है. 13 महीने पहले क़र्ज़दाताओं ने इस पर सहमति जताई थी लेकिन बात नहीं बन पाई.
दिसंबर 2017 में क़र्ज़ नवीनीकरण की प्रक्रिया तब फंस गई जब अनिल अंबानी के कारोबार के ख़िलाफ़ क़ानूनी लड़ाई और विवादों का सिलसिला बढ़ता गया।
आरकॉम ने पिछले हफ़्ते शुक्रवार की रात एक बयान जारी किया और कहा कि वो नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल, इंडिया बैंकरप्सी कोर्ट में दिवालियापन के नए नियमों के तहत क़र्ज़ की समस्या का समाधान करना चाहती है।
यह नया नियम 2016 में प्रभाव में आया था. इसके तहत नौ महीने के भीतर मामले को सुलझाना होता है.
क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहने वाली कंपनी इस अवधि में अपनी संपत्ति बेच क़र्ज़ चुकता करती है. इस नए नियम के तहत आरकॉम सबसे बड़ी कंपनी के रूप में अपने क़र्ज़ों का निपटारा करेगी.
आरकॉम का कहना है कि बैंकरप्सी कोर्ट में जाने का फ़ैसला सभी शेयरधारकों के हित में है क्योंकि इससे निश्चितता और पारदर्शिता तय अवधि में सामने आ जाएगी.
दिसंबर 2017 में अंबानी ने आरकॉम के क़र्ज़दाताओं से पूर्ण समाधान की घोषणा की थी. अनिल अंबानी ने कहा था कि उनकी कंपनी 3.8 अरब डॉलर की अपनी संपत्ति बेच कर्ज़ों का भुगतान करेगी. इसमें जियो को मुहैया कराई गईं सेवाएं भी शामिल थीं.
लेकिन शुक्रवार की बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज से आरकॉम ने कहा कि कर्ज़दाताओं को प्रस्तावित संपत्ति बिक्री से कुछ भी नहीं मिला है और कर्ज़ से निपटारे की प्रक्रिया अब भी बाधित है.
कंपनी ने अपने बयान में कहा है कि वो अपने 40 विदेशी और भारतीय क़र्ज़दाताओं में सहमति बनाने में नाकाम रही. कंपनी ने कहा कि इसके लिए 40 बैठकें हुईं लेकिन बात नहीं बनी और साथ में भारतीय अदालती व्यवस्था में क़ानूनी उलझनें बढ़ती गईं।
आरकॉम ने अपनी मोबाइल सेवा की अहम संपत्तियों को जियो से बेचा है और इसकी मंजूरी भी मिल गई है. सरकारी अधिकारी भी स्पेक्ट्रम की ख़रीदारी में बकाये को हासिल करने के लिए मामले को जल्दी निपटाने की कोशिश कर रहे हैं.
अनिल अंबानी पर जनवरी महीने की शुरुआत में तब और दबाव बढ़ गया जब स्वीडन की कंपनी एरिक्सन ने भारत सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आरकॉम के मालिक को जेल भेजा जाए क्योंकि अदालत ने 7.9 करोड़ डॉलर के भुगतान का जो आदेश दिया था, उसका उल्लंघन किया गया है. आरकॉम पर एरिक्सन का कुल बकाया 15.8 करोड़ डॉलर का है।

लेखिका सबलोग के उत्तर प्रदेश ब्यूरो की प्रमुख हैं|
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