- शिवाशंकर पाण्डेय
पाँच आदमी, पैंतालीस दिन, बारह सौ किमी की लम्बी दूरी, मन में मजबूत संकल्प और सामने पहाड़-सा एक बड़ा लक्ष्य। झारखण्ड के पलामू जिले से दिल्ली तक पैदल यात्रा…कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। मन के भीतर एक बड़ा संकल्प लेकर पलामू के लेस्लीगंज से पाँच ग्रामीण युवाओं ने पहली जून से पंद्रह जुलाई तक एक सफल और सार्थक पैदल यात्रा करके लोगों को नींद से जगाने की कोशिश की। पदयात्रा को नाम दिया गया पलाश यात्रा।
प्रयागराज में श्रृंग्वेरपुर के निकट बायोवेद कृषि, प्रौद्योगिकी एवं शोध संस्थान (ब्रियाट्स) मोहरब में कृषि वैज्ञानिक डॉ. बृजेशकांत द्विवेदी से भावी नीतियों पर चर्चा में आत्म विश्वास से भरे दिखे, यात्रा नायक कमलेश कुमार ने कहा-हमारी इस यात्रा के प्रेरणास्रोत प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी हैं। प्रधानमन्त्री के दिए मूलमंत्र-युवा देवो भवः युवा शक्ति देवो भवः से प्रेरित होकर पर्यावरण संरक्षण, स्वरोजगार, आत्म निर्भरता को मजबूती देने को जनजागरूकता अभियान शुरू किया गया है। लेस्लीगंज प्रखण्ड के छोटे से गाँव कुन्दरी से पहली जून को सुबह छह बजे पैदल यात्रियों का जत्था निकला। पैंतालीस दिन-पैंतालीस पड़ाव का लक्ष्य रखा गया। खेत, मेड़, खलिहान, बाग से लेकर गाँवों के हाट-बाजार में लोगों को इकट्ठा कर प्राकृतिक संपदा और पर्यावरण के बारे में जागरूक किया गया। ढेर सारी जानकारी देते हुए यह भी बताया गया कि पर्यावरण को संरक्षित किए जाने पर स्वरोजगार और आत्म निर्भरता दोनों ही बढ़ेगी। बताया कि पर्यावरण तेजी से नष्ट हो रहा है, यह चिन्ता का विषय है। कमलेश के मुताबिक, पर्यावरण का संतुलन जिस तेजी से बिगड़ रहा है, अगर इस तरफ न चेते तो वो दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से मानव जीवन ही खत्म हो जाएगा। जल, वायु, मिट्टी थर्मल आदि से जुड़े प्रदूषण की रोकथाम के लिए दूसरे का मुँह ताकने की जरूरत नहीं, खुद अपने घर मुहल्ले दफ्तर से शुरूआत करनी होगी। कुंदरी से चलकर यात्रा मेदिनीनगर, ओड़नार, अकलवानी, बंशीधर नगर, दुधीनगर हाथीनाला, चोपन, विन्ध्याचल, प्रयागराज, कानपुर, पलवल, मथुरा, फरीदाबाद, जन्तर मंतर, इंडियागेट होते हुए दिल्ली पहुँची। यहाँ महात्मा गाँधी स्मारक पहुँचकर यात्रा समापन की घोषणा की गयी।
‘सबलोग’ से बातचीत में पलाश यात्रा नायक कमलेश कुमार ने विस्तार से अपना पक्ष रखा। स्पष्ट हुआ कि कृषि की दशा को वे बेहतर नहीं मानते। साफतौर पर कहते हैं कि नीतियाँ बनाना और उसे लोगों में लागू करना, दो अलग-अलग सब्जेक्ट्स हैं। किसानों के बीच काम करना होगा। उलाहना देने के अंदाज में कहते हैं-देश के सत्तर फीसदी से ज्यादा लोग डायरेक्ट, इनडायरेक्ट खेती से जुड़े हैं, नीति बनाने में कृषि क्षेत्र को कारगर महत्व नहीं दिया। नतीजतन, खेती बारी लगातार घाटे वाली साबित हुई। समस्या की जड़ में जाने की कोई जरूरत नहीं समझी गयी। एक बड़ा तबका जुड़ा है फिर भी लोग खेती से दूर भागते गए। बेरोजगार युवा घर से सैकड़ों कोस दूर महानगरों में जाकर आठ दस हजार से भी कम रूपये में नौकरी कर लेता है पर खुद की खेती करने से दूर भागता है। इसकी वजह यह भी है कि तमाम कोशिश किए जाने के दावों के बावजूद अभी भी अस्सी फीसदी किसान खेती में लागत मूल्य तक नहीं निकाल पा रहा है। फलस्वरूप, कभी उत्तम खेती मध्यम बान की कहावत वाले देश में खेती दुर्दशा में फंसी है।
इस मुद्दे पर कमलेश सुझाव देते हैं कि सरकारी आंकड़ों को दरकिनार कर जमीनी स्तर पर कार्य किया जाना चाहिए। शून्य लागत की खेती किसानों के बीच कायदे से पहुँची तक नहीं है। पदयात्रा में जगह-जगह यह बात सामने आयी। वे कहते हैं-हर ग्राम पंचायत और ब्लाक में कृषि विभाग के कर्मचारी नियुक्त हैं तो भी सरकार की कृषि नीतियाँ किसानों तक क्यों नहीं पहुँच पातीं। खेत को बागवानी से जोड़ने के अलावा लाख खेती को लघुवन पदार्थ से हटाकर कृषि वन उपज घोषित करने के अलावा आर्थिक कमजोरी के खात्मे और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वनों के संरक्षण-संवर्धन और प्रबंधन का अधिकार दिया जाए। पलाश को बहुआयामी वृक्ष बताते हुए अधिक संख्या में इसे लगाने और सुरक्षित रखने, प्लास्टिक का उपयोग न करने, 18 वर्ष की उम्र तक मनुष्य की औसत आयु के बराबर 70 वृक्ष लगाकर उसके संरक्षण का संकल्प कराया गया। 27 जून को चतरा के सांसद सुनील कुमार सिंह की अध्यक्षता में राजेश पाल, ईश्वरी राम, विनोद कुमार, विकास पांडेय के साथ केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मन्त्री प्रकाश जावेड़कर से मिले। यात्रा के उद्देश्य पर चर्चा की। प्रभावित केंद्रीय मन्त्री ने कुंदरी लाह बागान जल्द आने का आश्वासन दिया। एक ज्ञापन प्रधानमन्त्री को भी दिया गया।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार, और सबलोग के यूपी ब्यूरो से सम्बद्ध हैं|
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