हस्तक्षेप

भामाशाहों को खोलने होंगे अपनी तिजोरियों के ताले

 

  • दीपक कमार त्यागी

 

आज हमारा देश कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते एक बहुत ही कठिन परीक्षा वाले दौर से गुजर रहा है, इस दौर में किसी एक व्यक्ति की गलती या धन अभाव के चलते किसी भी तरह के संसाधनों का अभाव देश की जनता को बहुत ज्यादा मंहगा पड़ सकता है। देश में भयावह हालात उत्पन्न होने से बचाने के लिए सरकार के द्वारा लॉकडाउन की व्यवस्था को लागू किया गया है, लेकिन अफसोस लॉकडाउन में रोजीरोटी व पैसे के अभाव के चलते मजबूरी में बड़े पैमाने पर हो रहे दिहाड़ी मजदूरों के पलायन को देखकर, देश में हर आपदा के समय उत्पन्न अव्यवस्थाओं की याद ताजा हो गयी है। लगता है, लॉकडाउन के लिए सरकार की तैयारियों में कहीं ना कहीं कोई खामी रह गयी थी, सरकार ने लॉकडाउन बिना पूर्ण तैयारी के मात्र चार घंटे के नोटिस पर ही कर डाला था? उसके लिए लॉकडाउन को चरणबद्ध ढंग से घोषित करना चाहिए था।

इन मजदूरों की मौत का जिम्मेदार कौन?

जिस तरह से शहरों से पलायन कर रहे लोग कंधों पर अपने बच्चों को लेकर सेकड़ों व हजारों किलोमीटर तक सड़कों पर घर जाने की जल्दी में भूख प्यास से तड़पते नजर आये, अपनी परेशानियों व अपने छोटे-छोटे बच्चों को भूख प्यास से तड़पता देखकर उनके माँ-बाप यहाँ तक कह रहे थे कि इस भूखे मरने की हालात से अच्छा था कि वो कोरोना की चपेट में आकर मर ही जाते, सबसे बड़ी समस्या इन लोगों के सामने उस समय उत्पन्न हो रही थी, जब यह पलायन करने वाले लोग अपने गंतव्य पर किसी तरह जान बचाकर पहुंचते है, तो कोरोना संक्रमण के भय के चलते गांव के लोग लट्ठ लेकर खड़े हो जाते थे, वो इनको खुद के घरों तक नहीं पहुंचने दे रहे थे, जिससे वो सड़कों पर धक्के खाने के लिए मजबूर हो गये थे।

देशवासियों को “भीड़तन्त्र” के आतंक से मुक्ति कब

ऐसे समय में उत्पन्न बहुत विकट परिस्थितियों से लड़ने के लिए और लोगों के अनमोल जीवन की रक्षा के लिए हमारे समाज के दानवीर भामाशाहों को सरकार के कंधे से कंधा मिलाकर समय रहते खड़ा होना पडे़गा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के द्वारा लगातार राज्य सरकारों से सामंजस्य स्थापित करके बेहद सख्ती के साथ उत्पन्न हालात को पूर्ण रूप से नियंत्रण में रखने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, देश की अधिकांश जनता अपने अनमोल जीवन को बचाने की जद्दोजहद में सरकार के द्वारा घोषित लॉकडाउन का पालन करके एक लम्बी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रही है।

कोरोना और अमीरों की बस्ती

केवल जीवन के लिए बहुत जरूरी आवश्यक सेवाओं की सर्विस को छोड़कर हर तरफ सब कुछ पूर्ण रूप से बंद है।लेकिन  विश्व के अन्य ताकतवर देशों में कोरोना वायरस के प्रकोप की भयावहता देखकर लगता है, कि हमारे यहाँ पूर्ण लॉकडाउन में भी अगर कुछ लोगों के द्वारा इसी तरह लगातार जानबूझकर या मजबूरीवश लापरवाही बरतनी जारी रही, तो स्थिति किसी भी समय बेहद विस्फोटक हो सकती है, इलाज के लिए जरूरी सभी तरह के संसाधनों का जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से भारी अभाव है । लगता है, अगर लोगों की गलती के चलते देश में कोरोना वायरस कम्युनिटी ट्रांसमिशन के चलते स्टेज तीन में पहुंच गया, तो उस समय सरकार के सामने सभी लोगों को इलाज उपलब्ध करवाना बहुत बड़ी चुनौती बन सकता है।

आपदा के समय में देशहित में भामाशाहों ...

सभी देशवासियों के लिए तत्काल बेहतर चिकित्सा सुविधा व आपदा से उत्पन्न हालातों से तुरंत निपटने के लिए रोजमर्रा के खर्च के लिए बेतहाशा धन की आवश्यकता है। हालांकि कोरोना वायरस  के इलाज व उससे संबंधित संसाधनों को एकत्र करने के लिए अभी हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ने 15 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इसके साथ ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आपदा के समय गरीबों के लिए जीवनयापन को सरल बनाने के उद्देश्य से उनके लिए भी तरह-तरह की मदद करने वाली घोषणाएं की हैं, लेकिन यह तो आने वाला समय ही बता पायेगा की वित्त मंत्री की यह घोषणाएं कब तक धरातल पर सुचारू रूप से काम करना शुरू करके लोगों रोजीरोटी की चिंताओं का निदान करेंगी। ऐसे में सम्पूर्ण लॉकडाउन से उत्पन्न हालातों के चलते मजबूर हो गये जरूरतमंद इंसानों, गरीबों, मजदूरों, रिक्शा चालकों, भिखारियों, विक्षिप्त व्यक्तियों आदि की भोजन पानी की व उनकी अन्य रोजमर्रा की जरूरतों को धरातल पर जाकर पूरा करना बहुत सिस्टम के सामने बहुत बड़ी चुनौती बन गया है, साथ ही साथ मानव के दिये भोजन दाना पानी पर निर्भर रहने वाले पक्षियों व बेजुबान जानवरों के पेट भरने की व्यवस्था करना भी बहुत बड़ी चुनौती है।

कोरोना काल का सकारात्मक पहलू-डिजिटल होता भारत

इस हालात से निपटने के लिए हमारे समाज के समाजसेवी भामाशाह दानवीरों को जरूरतमंद के जीवन को बचाये रखने के लिए अपनी तिजोरियों के ताले समय रहते खोलने होंगे। आज जिस तरह से भारी संख्या में लोग भूखे प्यासे पलायन कर रहे है उस स्थिति में मजबूर लोगों को मदद की बेहद आवश्यकता जो देश के भामाशाहों के द्वारा दिये गये दान व लोगों के सेवाभाव से ही संभव है। क्योंकि देश में जरूरतमंद लोगों की भारी संख्या को देखते हुए और सरकार द्वारा की गयी मदद की घोषणा आने वाले समय में ‘ऊँट के मूँह में जीरा समान’ साबित हो सकती है, वैसे भी ऐसी विपदा के समय में अपनी तिजोरियों को बंद करके बचाव के मद्देनजर अभी तक घरों में बंद बैठे दानवीर भामाशाहों को प्रेरित करने वाली बहुत अच्छी खबरें आनी शुरू हो गयी हैं, देश के आम-जनमानस से लेकर, छोटे-बड़े उधोगपतियों, मंदिरों आदि ने अपनी तिजोरियों के मूँह आपदा से लड़ने के लिए खोल दिये है और अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार राहत कोषों में करोड़ रुपये का दान देना शुरू कर दिया है।

गम्भीर संकट में वैश्विक अर्थव्यवस्था 

यह स्थिति आपदा के समय में देश के अन्य भामाशाहों को दान करने के लिए अवश्य प्रेरित करेंगी, दानदाताओं के द्वारा आपदा के समय में भारत सरकार को दिया गया दान लोगों के अनमोल जीवन को बचाने के लिए उम्मीद की नई किरण साबित हो सकता है। क्योंकि लॉकडाउन के चलते उत्पन्न परिस्थितियों में गरीबी व मजबूरी के चलते स्थिति कोरोना से भी बेहद विकराल व भयावह हो सकती है जिसको रोकने के लिए देश के सभी दानवीर भामाशाहों को समय रहते जल्द आगे आना होगा, वरना भूख व प्यास से तड़फते बहुत सारे मजबूर इंसान और बेजुबान जानवर कर्फ्यू जैसे हालातों वाली खाली सड़कों पर भोजन की उम्मीद में जगह-जगह दम तोड़ते नजर आ सकते हैं।

कोरोना से निकल रहा सामाजिक तनाव का जिन्न

वैसे भी हमारे देश को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए ना जाने कितना धन चाहिए इसका आकलन करना अभी जल्दबाजी होगी। सरकार के साथ मिलकर लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए धन का बंदोबस्त करने के लिए देश के उधोगपतियों व सक्षम हर व्यक्ति को देशहित में दानवीर भामाशाह बनकर जल्दी समय रहते आगें आना होगा, सभी को अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देकर जरूरतमंद लोगों व सरकार का सहयोग तत्काल अभी से शुरू करना होगा। देश के सभी दिग्गज उधोगपतियों से निवेदन है कि उन्हें जल्द से जल्द भारत सरकार को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए और मानव सभ्यता को बचाने के लिए अधिक से अधिक दान देकर लोगों के जीवन को बचाने के लिए प्रयास करने चाहिए।

लेखक स्वतन्त्र पत्रकार व स्तम्भकार हैं|
सम्पर्क – +919999379962, deepaklawguy@gmail.com
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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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