एक पुरातत्त्ववेत्ता की डायरी

ताम्राश्मयुगीन ब्यूटी पार्लर की तलाश – शरद कोकास

 

  •  शरद कोकास 

 

          दंगवाड़ा के इस टीले पर आज सुबह से हमने पुन: ट्रेंच क्रमांक चार पर कार्य करना प्रारम्भ किया । सुबह की खिली खिली धूप बहुत भली लग रही थी और हम लोग उसका मज़ा लेते हुए काम शुरू कर ही रहे थे कि देखा पास के शिव मंदिर तक आने वाले कुछ दर्शनार्थी हमारी ट्रेंच का दर्शन करने भी आ गए । “भैया कोई भगवान की मूर्ति नहीं मिली क्या ?” उनमें से एक ने सवाल किया । ” मूर्ति तो नहीं मिली भाई ” रवींद्र ने कहा ” और मिल भी जाये तो तुम्हें थोड़े ही देंगे , तुम लोग तो दंगवाड़ा के चौक पर ले जाकर उसकी स्थापना कर दोगे और उसकी पूजा करने लगोगे ।  ” भानपुरा की तरह ।” मैंने रवीन्द्र की ओर देखकर हँसते हुए कहा ।  रवीन्द्र बोला ” हाँ वैसे ही जैसे कुबेर की पूजा हमारे यहाँ अन्नपूर्णा माता के रूप में हो रही थी। “ “ ये क्या किस्सा है ? ” अजय ने सवाल किया । “अरे वो बड़ा मज़ेदार किस्सा है ।“ मैंने कहा “ आज से दो माह पूर्व मैं रवीन्द्र के साथ उसके गाँव भानपुरा गया था , सुबह सुबह जब  हम लोग घूमने निकले तो देखा एक चौक पर बहुत भीड़ लगी है ,मैंने रवीन्द्र से पूछा यहाँ क्या हो रहा है तो उसने बताया कि यहाँ अन्नपूर्णा माता की पूजा हो रही है । करीब जाकर मैंने देखा तो वहाँ कुबेर की मूर्ति रखी थी तुन्दिल काया ,कानों में बड़े बड़े कुंडल ,हाथ में धन की थैली । मैंने रवीन्द्र से कहा “ रवीन्द्र यह तो कुबेर है , इसकी पूजा अन्नपूर्णा के रूप में ?  ” तो रवीन्द्र बोला “ धीरे बोल अगर कोई सुन लेगा तो बहुत मार पड़ेगी । अब लोगों ने इसे अन्नपूर्णा माता मान लिया है तो मान लिया , भले ही हम प्रतिमा शास्त्र के ज्ञाता हैं इसे कुबेर बताकर पूजा करने से रोकेंगे तो फालतू का बवाल खड़ा हो जाएगा ।“ उन ग्रामीणों को हमारी बात कुछ समझ में नहीं आई और वे वहाँ से चुपचाप खिसक लिए ।

हम लोगों ने धीरे धीरे ट्रेंच में उत्खनन शुरू ही किया था कि रवीन्द्र की ख़ुशी से भरी आवाज़ सुनाई दी ..“अरे यह तो सूरमा लगाने की सींक है । ” उसके हाथों में ताम्बे की एक सींक और आँखों में चमक थी । वह हँसते हुए बोला “ ज़रूर उस ताम्राश्म युग में यहाँ कोई ब्यूटी पार्लर रहा होगा ।“ “चुप “ अजय ने उसे डाँटते हुए कहा “ फिर तो मैं भी कह सकता हूँ यह पैर घिसने का पत्थर देख कर कि यहाँ उस ज़माने का हम्माम रहा होगा ।“ राममिलन दूर बैठे हम लोगों की बातें सुन रहे थे । वहीं से चिल्लाकर बोले “भैया अभी से काहे आसमान सर पर उठाये हो जब कौनो चड्डी बनियान मिल जाए तब बताना ।“ किशोर ने राम मिलन को छेड़ना शुरू किया “राममिलन तुम खुद तो कुछ करते नहीं हो बस बैठे – बैठे कमेंट करते रहते हो ।“ डॉ.आर्य हम लोगों की गूटर- गूँ सुन रहे थे ,बोले “ ठीक तो कह रहा है राम मिलन ,इतनी जल्दी किसी परिणाम पर नहीं पहुँचना चाहिये,जब तक अन्य पूरक सामग्री न प्राप्त हो जाए  हम इतिहास विषयक कोई धारणा नहीं बना सकते । ऐसा बिलकुल ज़रूरी नहीं है कि नाल मिल गई है तो घोड़ा मिल ही जाएगा । वैसे भी यह धातु थी इसलिए बची रह गई ,कपड़े लकड़ी इत्यादि तो पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं ।“

खुदाई करते हुए दोपहर तक हम लोग पचपन सेंटीमीटर गहराई तक पहुँच गए । ट्रेंच की उपरी सतह में पेग क्र.दो से पेग क्र. दो बी के बीच दो मीटर बाय दो मीटर के क्षेत्र में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण ऑब्जेक्ट हमें प्राप्त हुए जिनमें पैर घिसने का एक पत्थर, सुरमा लगाने की एक ताम्र शलाका,मिट्टी का बना आग में पकाया हुआ एक पात्र तथा बीड शामिल है । सर की बात को सिद्ध करने के उद्देश्य से पूरक सामग्री ढूँढने के लिए हम लोगों ने दोपहर भोजन के बाद दक्षिण की ओर दो बाइ दो मीटर के हिस्से में खुदाई कर डाली । पर अफ़सोस उसमें भी कोई महत्वपूर्ण ऑब्जेक्ट नहीं मिला ।

राम मिलन टाइट पैंट पहने और धूप  का काला चश्मा लगाए एक पत्थर पर बैठे थे और हमारी मेहनत को अकारथ जाते देख प्रसन्न हो रहे थे , हँसकर कहने लगे  “ ढूँढो ढूँढो , अभी साबुन भी मिलेगा टुथपेस्ट और ब्रश  भी मिलेगा और गाँव की गोरी के बालों को धोने वाला रीठा छाप शंपू भी मिलेगा ।“ किशोर मन ही मन गुस्सा हो रहा था ,धीरे से बोला “ इस पंडितवा को मज़ा चखाना ही पड़ेगा । “   डॉ.आर्य ने हम लोगों को दिलासा देते हुए कहा “ कोई बात नहीं अगर कुछ नहीं मिला । पुरातत्ववेत्ताओं के साथ अक्सर ऐसा होता है कि कई कई दिन मेहनत करने के बाद भी उनके हाथ कुछ नहीं लगता । यहीं उनके धैर्य की परीक्षा होती है । जो अधीर होते हैं वे आधी-अधूरी जानकारी के साथ गलत रिपोर्ट दे देते हैं और इस तरह गलत इतिहास रचने में अपना योगदान देते हैं  । कई बार उन पर गलत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए  भी दबाव डाला जाता है कई प्रकार के लोभ लालच भी दिये जाते हैं लेकिन जो सच्चे पुरातत्ववेत्ता होते हैं वे सच्चे देशभक्त की तरह होते हैं , वे किसी के भी आगे झुकते नहीं ।

          हम लोग आज का कार्य समाप्त करने ही जा रहे थे कि डॉ.वाकणकर का आगमन हुआ । “ कैसा लग रहा है दुष्टों ? ” उन्होंने हमारे मुरझाये चेहरों की ओर देखकर पूछा । हमने उन्हें अपनी उपलब्धियों और असफलताओं से अवगत कराया । सर बोले “असफलताओं को छोड़ो ,हम उपलब्धियों पर बात करते हैं । यह जो मिश्रित रूप में अवशेष यहाँ मिल रहे हैं इनसे यह तो तय होता है कि यहाँ मिश्रित संस्कृति रही होगी । कई बार ऐसा होता है कि किसी एक सतह से किसी एक संस्कृति के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलते । ठीक है ,अब हम इन अवशेषों को लेकर शिविर में चलते हैं । तुम लोग देखते ही होगे ,मैं सबसे पहले प्राप्त अवशेषों को अपने तम्बू में ले जाकर साफ करता हूँ । फिर यह किस स्थिति में ,किस लेयर में,कितनी गहराई में मिले,इनके साथ और कौन – कौन सी वस्तुएं मिलीं आदि जानकारी का टैग लगाकर इन्हें सावधानी पूर्वक सीलबन्द कर देता हूँ । सो यह तुम लोगों को भी यह नाप-वाप ध्यान में रखना है ।“ “ इतना तो हमें भी मालूम है सर हमने कॉपी में नोट किया है । ” रवीन्द्र ने कहा “ लेकिन इसके बाद इन अवशेषों का क्या होता है ? ” उसका अगला सवाल था । सर ने बताया “ इसके बाद उत्खनन की रिपोर्ट लिखते समय इस सामग्री की ज़रूरत होती  है ।”

वैसे तो हम यह सब कोर्स में पढ चुके थे, लेकिन डॉ.वाकणकर जैसे विद्वान के मुँह से यह सब सुनना हमें अच्छा लग रहा था । उनका ज्ञान अपार है और जहाँ वे विश्व इतिहास की पहेलियों  के उत्तर सरलता पूर्वक दे देते हैं वहीं ‘जंगल में अगर आपकी साइकल पंक्चर हो जाए  तो ट्यूब में बारीक धूल डालकर हवा भर देने से कैसे पंक्चर की दुकान तक साईकल चल सकती है’ , जैसे फार्मूले भी उनके पास हैं  । वे अच्छे चित्रकार भी हैं और नक्षत्र विज्ञान के अलावा जड़ी-बूटियों  की भी जानकारी रखते हैं । सर भी हमारे सवालों का मज़ा ले रहे थे । मैंने अगला सवाल किया “ लेकिन सर इतनी सामग्री भर से क्या इस जगह का इतिहास लिखा जाएगा ?” यह साधारण सा सवाल सुनकर किंचित रोश के साथ बोले “ अरे पागलों ,दो साल से क्या पढ़ रहे हो ? इतिहास लिखने के लिए इसके सपोर्ट में और भी वस्तुएं चाहिये , यहाँ प्रचलित साहित्य,लोक मान्यताएं,निकटस्थ स्थानों पर प्राप्त सामग्री,आसपास हुए उत्खननों की रिपोर्ट आदि । सब मिलाकर इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता कई दिनों तक शोध करते हैं तब कहीं इतिहास तय होता है ।

“लेकिन सर जी , ई सब इतिहास-फितिहास लिखा जाने के बाद ई सब कचरा का करेंगे ,वापस गाड़ देंगे का ? “ राममिलन के इस मूर्खतापूर्ण सवाल पर सर ज़ोर से हँस पड़े । जिस बात को हम लोग स्पष्ट पूछने से डर रहे थे राममिलन ने अपने अंदाज़ में पूछ ही लिया । सर उसका आशय समझकर मज़ाक में बोले “ क्या करेंगे पंडित , इन पर सिन्दूर लगाकर सब तुमरे यहाँ इलाहाबाद में गंगा मैया में विसर्जित कर देंगे और क्या । “ सर की विनोद बुद्धि पर हम लोग भी हँस पड़े । लेकिन किशोर कहाँ चुप रहने वाले थे । उन्हें  तो पंडित राममिलन को छेड़ने का मौका चाहिये था । बोले ” अरे पंडत, ई सब तोहरे इलाहाबाद के मूजियम में रख देंगे और तोहका म्यूजियम क्यूरेटर बना देंगे ।‘ हम लोग हँस पड़े लेकिन राम मिलन नाराज़ हो गए …“ किशोरवा तुम तो चुपई रहो , हम तुमसे बात नाही कर रहे, हम तो सर से पूछ  रहे हैं । “ लेकिन सर तो इतनी देर में हम लोगों को हँसता छोड़ कैम्प की ओर रवाना हो चुके थे । हम समझ गए  कि आज रात तक किशोर और राम मिलन में नोक- झोंक चलती रहेगी ।

लेखक पुरातत्वेत्ता, कवि और कहानीकार हैं तथा सबलोग के नियमित स्तम्भ लेखक हैं|

सम्पर्क- +918871665060, sharadkokas.60@gmail.com

 

 

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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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