अंतरराष्ट्रीय

क्‍यूबा में नेतृत्व परिवर्तन

 

क्‍यूबा के बारे में जानने की मेरी उत्सुकता बहुत पुरानी है। जब मैं इंजीनियरिंग का छात्र था और स्टूडेंट फेडरेशन में शामिल हुआ था तब दिल्ली में मावलंकर हॉल में एक एजुकेशनल कांफ्रेंस हुई थी। उस कांफ्रेंस के बाद बहुत से छात्र चे गुयिवारा और फिदेल कास्त्रो के बारे में कुछ उसी क्रान्तिकारी रूमान के साथ बतिया रहे थे जैसे कि हम भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद या रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रान्तिकारियों के बारे में बात कर रहे हों। तो चे और फिदेल हमारे आदर्श बने। उनके बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता बढ़ी। तो कुछ किताबें छानीं।

लेकिन तब क्‍यूबा जाने की बात सोचना शेखचिल्ली के सपने से ज्यादा कुछ न होता इसलिए सोचा ही नहीं गया। हिन्दुस्तान में ही कश्मीर, शिमला और अंडमान देखना न पूरे होने वाले सपनों की तरह थे। फिर क्‍यूबा का तो इतिहास-भूगोल ही कुछ पता नहीं था। बहरहाल एक लम्बे अंतराल के बाद ही ये सभी जगहें देखने की इच्छा पूरी हो सकी। जनवरी 2019 में क्‍यूबा जाने का सपना भी साकार हुआ। क्‍यूबा पहुँच कर वहाँ का सामाजिक-सांस्कृतिक ताना-बाना समझने की कोशिश चलती रही तो वहाँ की राजनीति के बारे में जानने-समझने की इच्छा भी प्रबल रही।

लेकिन भाषा की समस्या बहुत आड़े आ रही थी। दुभाषिया महंगा सौदा था अतः गाईड और कैब ड्राईवर से काम चलाया। फिर जो अंग्रेजी बोलता दिख जाता दो चार बातें उससे हो जातीं। हवाना में केपिटल बिल्डिंग के सामने पहुँच कर मैने गाईड से पूछा कि अभी पॉलिटिकल सिचुएशन कैसी है? राऊल के बाद जो नये प्रेसीडेंट मिगेल डायस कानेल आए हैं उनका क्या हाल है? तो गाईड ने जवाब दिया कि बूढ़े लोगों का वही पुराना घिसा पिटा सोच होता है। राऊल कास्त्रो बहुत बूढ़े हो चुके हैं वो कुछ नया नहीं कर सकते। कुछ नया करने के लिए ऊर्जा चाहिए, क्रिएटिव मस्तिष्क चाहिए। कानेल युवा हैं उनमें एक नयी सोच भी है और एनर्जी भी है। तब मैने पूछा कि कम्युनिस्ट पार्टी पर अधिकार तो राऊल का ही है। वही फर्स्ट सेक्रेटरी यानि महासचिव हैं। गाईड बोला वो ठीक है पर चूंकि कानेल उन्हीं की मर्जी से प्रेसीडेंट बने हैं तो वह दखल नहीं देंगे। और उन्होंने 2021 में महासचिव का पद छोड़ने की बात भी कही है। इससे ज्यादा बात नहीं हो सकी।

बाद में मुझे पता चला कि राऊल ही कानेल के मेंटर (मार्गदर्शक) हैं और वे वाईस प्रेसीडेंट से प्रेसीडेंट उनकी मर्जी से ही बने हैं। राऊल ने उनके लिए ही प्रेसीडेंट का पद छोड़ दिया है। अब 19 अप्रैल को कानेल राष्ट्रपति के साथ-साथ क्‍यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया यानि फर्स्ट सेक्रेटरी भी बन गये। जैसाकि विगत में फिदेल कास्त्रो और राऊल कास्त्रो थे। यह क्‍यूबन कम्युनिस्ट पार्टी का शीर्ष स्थान है। कानेल से क्‍यूबा के लोगों की अलग अपेक्षाएं हैं। पहली अपेक्षा बेरोजगारी कम करना, आर्थिक सुधार और सामाजिक सुरक्षा तथा संतुलन बनाए रखने की है।कोरोना वायरस का संक्रमण 195 देशों में फैल चुका है. संक्रमित मामलों की संख्या पौने चार लाख के आस पास पहुंच रही है.

लेकिन पिछले वर्ष में कोरोना के चलते बाकी दुनिया की तरह वहाँ की आर्थिक स्थिति को भी बड़ा झटका लगा है। अर्थव्यवस्था में 11 प्रतिशत की गिरावट हुई है। यह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि क्‍यूबा एक गरीब देश है। और अमेरिका तथा यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंध यथावत हैं। ऐसी स्थिति में क्‍यूबा में स्थिरता और शांति बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। अमेरिका समर्थक असंतुष्ट भी काफी हैं। देखना यह है कि इस चुनौती से कानेल किस तरह निपटते हैं। क्या वह वर्तमान नीतियों में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन करेंगे?

अपने पूर्ववर्ती शीर्ष नेताओं की आर्थिक नीतियों और विदेश नीति में आगे सुविचारित सुधारात्मक कदम उठाएंगे, यह सावधानी रखते हुए कि देश का सामाजिक ढ़ाचा भी न गड़बड़ाए। अमेरिका से। बिना दवाब झेले कूटनीतिक सम्बन्ध कैसे बेहतर हों यह भी बहुत कठिन काम है। अब कानेल की भविष्य नीति और दक्षता का पूर्वानुमान दो बातों से लगाया जा सकता है। पहला यह कि विगत वर्षों में कानेल की कार्यप्रणाली क्या रही है। और क्‍यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी तथा सरकार में उनकी भूमिका और प्रशिक्षण कैसा रहा है। कानेल के कैरियर की अगर बात की जाए तो 1982 में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। उसके बाद तीन वर्षों तक क्‍यूबा की सेना में सेवाएं दीं जो कि हर क्यूबाई युवा के लिए आवश्यक है। कुछ और जिम्मेदारियाँ संभालते हुए 1993 में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने।

यह वह समय था जब सोवियत संघ का विघटन हो चुका था। वहाँ साम्यवादी व्यवस्था खत्म हो चुकी थी। सोवियत संघ से मिलने वाली सहायता और सब्सिडी बंद हो गयी थी। पेट्रोल, खाद्यान्न और दवाईयों की भारी कमी थी। यह समय क्यूबा के लिए बहुत परेशानी का समय था। इसे ‘स्पेशल पीरियड इन पीस टाईम’ कहा गया। तब वेनेजुएला ने तेल दिया और बोलीविया ने सहयोग किया। ह्यूगो शावेज फिदेल के बहुत निकट थे। इस समय पर्यटन पर फिर जोर दिया गया। इस कठिन समय में कानेल की कार्यक्षमता के दम पर 2003 में उन्हें पोलित ब्यूरो का सदस्य बनने का अवसर मिला। यहाँ से उनकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गयीं, साथ ही चुनौतियाँ और कार्यनिष्पादन की अपेक्षाएं भी।

2006 में फिदेल कास्त्रो गंभीर रूप से बीमार हो गये और सार्वजनिक जीवन से अलग हो गये। तब राऊल कास्त्रो कार्यकारी राष्ट्राध्यक्ष नियुक्त हुए। 2008 में फिदेल कास्त्रो ने त्यागपत्र दे दिया और राऊल कास्त्रो क्‍यूबा के राष्ट्रपति और क्‍यूबन कम्युनिस्ट पार्टी के फर्स्ट सेक्रेटरी बन गये। राऊल कास्त्रो के साथ कानेल की अच्‍छी समझदारी थी। 2008 से ही क्‍यूबा में कृषि सुधार लागू हुए। एक वर्ष बाद ही 2009 में कानेल को उच्च शिक्षा का मंत्री तथा प्रारंभिक उपराष्ट्रपति बना दिया गया। 2010 से कुछ और सुधार शुरू हुए। नागरिकों को छोटे निजी व्यवसाय की छूट दी गयी। 2011 में क्‍यूबा के नागरिकों को व्यक्तिगत तौर पर घर खरीदने-बेचने का संवैधानिक अधिकार दे दिया गया।

अगस्त 2012 में क्यूबन एनर्जी नामक सार्वजनिक कंपनी ने पहला सोलर संयंत्र स्थापित किया। यह कंपनी क्यूबन सोलर ग्रुप की सदस्य थी। 2013 में दस और सोलर प्लांट लगाए गये। जिनसे अनेक भागों में विद्युत आपूर्ति संभव हो सकी। इसी वर्ष कानेल को फर्स्ट वाईस प्रेसीडेंट चुना गया। क्‍यूबा पर तमाम आर्थिक पाबंदियों के चलते वहाँ बड़ा आर्थिक संकट था। समुद्री तूफानों के कारण भी परेशानियाँ बढ़ गयी थीं। आय के स्रोत सीमित थे। शकर, तंबाकू, सिगार, मछली, कॉफी, चावल, आलू और पशुओं के निर्यात पर अर्थव्यवस्था टिकी हुई थी। पर्यटन कम हो गया था। ऐसे में क्‍यूबा के सामाजिक ढांचे को छिन्नभिन्न होने से बचाना और अमेरिका समर्थक असंतुष्टों से निपटना बहुत कठिन कार्य था।

राऊल कास्त्रो

राऊल कास्त्रो क्‍यूबा की आजादी के लिए सशस्त्र विद्रोह तथा अमेरिकी साजिशों निपटने तथा क्‍यूबा के लोगों को बुनियादी जरूरतों की आपूर्ति, उनकी हौसला अफजाई तथा तथा असंतुष्टों से निपटने के कौशल में फिदेल कास्त्रो के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे थे। अब उन्हें एक समर्थ उत्तराधिकारी की तलाश थी। जिसे उन्होंने कानेल के रूप में पहचाना और विकसित किया। ऐक बात यह थी कि कानेल ने न तो क्‍यूबा की मुक्ति की लड़ाई देखी थी न लगातार युद्ध और भयानक साजिशों से निपटने का उनका अनुभव था पर नीति निर्धारण और उनके कार्यान्वयन में वे पारंगत थे। इसीलिए राऊल कास्त्रो के विश्वासपात्र थे।

इसका सुफल यह मिला कि 2018 में वह क्‍यूबा की राज्य समिति के अध्यक्ष नामित हुए और 2019 में क्‍यूबा के राष्ट्रपति। इसी वर्ष नया संविधान बना। खाद्य सामग्री की राशनिंग की। राऊल कास्त्रो ने राष्ट्रपति पद छोड़ दिया। अब वे सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी के फर्स्ट सेक्रेटरी थे। जो वहाँ की राजसत्ता में सर्वोच्च स्थान है। 19 अप्रैल 2021 को उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया और मिगेल डायस कानेल को वहाँ की नेशनल असेंबली द्वारा चुने जाने के बाद राष्ट्र की बागडोर सौंप दी। यह करीब-करीब तय था क्योंकि राऊल कास्त्रो ने 2021 में कमान छोड़ने की बात पहले ही बता दी थी।

दुनियाभर ने इसे कास्त्रो परिवार के अंत के रूप में देखा। अब कानेल की भविष्य की क्या नीति होगी इसे उनके कांग्रेस मे दिए गये वक्तव्य के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। उन्होंने तीन महत्वपूर्ण बातें कहीं। हम अपने विचारों पर दृढ़ हैं। इतिहास (अतीत) को समझते हैं। भविष्य पर विचार किया है। मतलब विचारों पर दृढ़ हैं तो विचारधारा अपरिवर्तित रहेगी। इतिहास से जो समझा है, सबक लिए हैं भविष्य उनके आलोक में समझा जाएगा और हर स्थिति पर विचार करने के बाद ही आगे बढ़ा जाएगा।

दरअसल कानेल एक अनुशासित व्यक्ति हैं, प्रशासनिक दक्षता रखते हैं, अपने देश के साथ-साथ दुनिया की नब्ज भी समझते हैं। उनमें लचीलापन भी है। विगत दो वर्षों में तमाम उद्योगों और सेवा क्षेत्र में निजी भागीदारी को प्रोत्साहन दिया है। पर्यटन और निर्यात को बढ़ाया है। हाल ही में इंटरनेट को सरकारी जकड़ से मुक्त किया है। दक्षिण अमेरिकी और कैरीबियन पड़ोसी देशों से सम्बन्ध सुदृढ़ किये हैं। लेकिन अगर हम अन्य साम्यवादी देशों में अपने उत्तराधिकारियों का इतिहास देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वहाँ बाद के शासक पूंजीवादी उदारीकरण और व्यापार के प्रभाव में फंसते चले गये। एकदलीय शासन बना रहा पर समाजवादी समाज निर्माण का लक्ष्य अधूरा ही रहा।

चीन का उदाहरण सामने है। क्‍यूबा के बाद मैं वियतनाम भी गया। वहाँ भी यह देखा कि व्यापार प्रमुख है। उनके चीन और अमेरिका दोनों से अच्‍छे सम्बन्ध हैं। व्यापारी धनी हैं, जनता खाने कमाने लायक। गरीबी भी कायम है। कानून व्यवस्था बेहतर है। क्‍यूबा के संदर्भ में अभी पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन कानेल की अब तक की कार्यशैली से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कोई भी जरूरी कदम सावधानी और संतुलन के साथ ही उठाएंगे। लेकिन आर्थिक सुधारों को गति अवश्य देंगे। आखिर उत्तरजीविता उर्फ सर्वाईवल का सवाल तो है ही।

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देशसामयिक

अश्लील ओटीटी, अनुराग की चेतावनी और शंकराचार्य का सनातन संकल्प

राजन कुमार अग्रवाल

देश में टीवी की शुरुआत सितंबर 1959 में हो चुकी थी लेकिन मैंने 1987 में पहली बार टीवी देखा था, जब अपने मामा के घर जमशेदपुर गया था। रविवार को नाश्ते के बाद नौ बजते ही जैसे उस घर में सभी को हड़बड़ी हो गई हो। समय हो गया, समय हो गया। चलो-चलो। जल्दी चलो। रामायण शुरू होने वाली है। मैं और मेरी मां, दोनों के लिए ये बहुत ही अचरज वाली बात थी कि पूरा परिवार रामायण सुनने के लिए कैसे उतावला हो रहा है?

इसके जवाब में मामा जी के बड़े बेटे ने एक लकड़ी के डब्बे पर से शटर हटाया (उन दिनों टीवी को सुरक्षित रखने के लिए शटर ही लगाया जाता था, जो साइड की तरफ खुलता था) और दाहिने तरफ लगे दो रैगूलेटर में से एक को घुमा दिया। लकड़ी के डब्बे के अंदर पहली बार जादूई डब्बा देखा था जिसमें से मंगल भव नय मंगल हारी की आवाज आ रही थी। इंसान बोलते, चलते दिखाई दे रहे थे। 1987 में दूरदर्शन पर रामानंद सागर की रामायण का टेलीकास्ट हो रहा था। लोकप्रियता ऐसी थी मानों सड़क पर कर्फ्यू लग गया हो। ऐसे ही 1988 में महाभारत के टेलीकास्ट के दौरान होता था, जिसे बी.आर.चोपड़ा के बेटे रवि चोपड़ा ने बनाया था। तब दूरदर्शन एक मात्र चैनल था जिस पर समयबद्ध कार्यक्रम आते थे। मनोरंजन और ज्ञान से समृद्ध संसाधन जिसे आने वाले दिनों में बुद्धुबक्सा कहा जाने लगा।

समय के साथ चैनलों की संख्या बढ़ी। घर की छत पर लगे टेरिस्टेरियल एंटीना गायब होने लगा। टीवी सेट पर रखे बूस्टर की जगह केबल टीवी और सेट टॉप बॉक्स ने ले ली। चैनल बदलने के लिए हाथों में रिमोट आ गया। पूरा परिदृश्य बहुत ही तेजी से परिवर्तित हुआ।
जितनी तेजी से टेलीविजन का रंगरूप बदला, उससे भी तेजी से ओटीटी ने दर्शकों की पसंद ही बदल दी। किसी कार्यक्रम को देखने के लिए दर्शक पहले समय से बंधे थे लेकिन ओटीटी ने टेलीविजन देखने का तरीका ही बदल दिया। पहले पुराने वीडियो चलाए गये। फिल्में चलाई गईं। धीरे-धीरे ओटीटी के नया कंटेंट जेनेरेट होने लगा। बॉलीवुड के सितारे भी ओटीटी के लिए बनाई जा रही फिल्मों में दिखने लगे। सोशल मीडिया के दौर में ओटीटी ने तेजी से रफ्तार पकड़ी और फिर किसी की पकड़ में नहीं आया। चूंकि अब तक ओटीटी के लिए कोई नियम नहीं हैं, ऐसे में आगे बढ़ने के लिए रचनात्मकता के नाम पर निर्माताओं और लेखकों ने गाली-गलौज वाली भाषा का भरपूर इस्तेमाल किया और अश्लीलता परोसने लगे। कई बार पाठकों के साथ भी ऐसा होता होगा जब परिवार के साथ बैठकर कोई सीरीज या कोई फिल्म देख रहे हों और अचानक कुछ ऐसे दृश्य आ गये हों जिन्हें देखकर झेंपना पड़ा हो।

ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का एक ही ध्येय है-लोकप्रिय होना, चाहे कुत्सित कोशिश ही क्यों ना करनी पड़े और नियमन का अभाव ओटीटी के लिए ऑक्सीजन जैसा है। ना कोई नियम है ना कोई बंधन। कोई रोक-टोक नहीं। सुधी दर्शकों के बीच इसे लेकर सुगबुगाहट होनी शुरू हो गई है।

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि-“क्रिएटीविटी के नाम पर दुर्व्यवहार और अशिष्टता बर्दाश्त नहीं की जा सकती। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट बढ़ने की शिकायतों को लेकर सरकार गंभीर है। अगर इस बारे में नियमों कोई बदलाव करने की जरूरत पड़ी तो पीछे नहीं हटेंगे। अश्लीलता और अपशब्दों को रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की जाएगी। ओटीटी प्लेटफॉर्मों को क्रिएटिविटी के लिए आजादी मिली थी, गाली-गलौज के लिए नहीं।”
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने नागपुर में एक प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए माना कि ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर अश्लील कंटेंट की शिकायतें मिल रही हैं और इस पर सरकार गंभीर है। उन्होंने कहा कि अगर इसको लेकर नियमों में बदलाव करने की जरूरत पड़ी तो मंत्रालय उस पर भी विचार करेगा। क्रिएटिविटी के नाम पर गाली गलौज, असभ्यता मंजूर नहीं की जा सकती। अनुराग ठाकुर ने कहा कि ओटीटी प्लेटफार्म को लेकर पिछले कुछ समय में शिकायतें बढ़नी शुरू हुई हैं। इसे गंभीरता से लिया जा रहा है। सही समय पर सही कदम उठाया जाएगा।

OTT प्लेटफार्म का क्रेज लगातार बढ़ता जा रहा है। यहां 80 फीसदी से ज्यादा दर्शक युवा हैं जो 18 से 45 साल के बीच के हैं। नई पीढ़ी सीधे तौर पर OTT प्लेटफार्म पर आ रही है। हम ये जानते हैं कि फिल्मों और सीरियल की मानव जीवन में अहम भूमिका है। फिल्मों में दिखाया जाने वाला प्रत्येक दृश्य सीधे तौर पर प्रभावित करता है और दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ता है। कई बार तो फिल्मों का प्रभाव वर्षों तक दर्शकों के मस्तिष्क पर रहता है। कई बार ऐसी खबरें देखने को मिली हैं कि किसी क्राइम शो को देखकर किसी को अपराध करने की प्रेरणा मिली।

ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती केंद्रीय मंत्री के इस बयान की सराहना की है। उन्होंने कहा कि टेक्नॉलाजी और जरूरत के हिसाब से हर बच्चे के हाथ में मोबाईल है। बच्चा कब क्या देख रहा है, इस पर माता-पिता हमेशा नजर नहीं रख सकते। ऐसे में सरकार को इस पर गंभीर रुख दिखाना चाहिए।
फिल्म, टेलीवजन और OTT प्लेटफार्म में अश्लील कंटेंट परोसने और धर्म विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने वालों नजर रखने के लिए धर्म सेंसर बोर्ड का गठन करने वाले शंकराचार्य ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का ध्यान OTT प्लेटफार्म पर मौजूद सनातन धर्म के खिलाफ प्रोपेगेंडा वाले वीडियोज की ओर भी दिलाया है और सख्त कार्यवाही के साथ-साथ उन वीडियो को तत्काल प्रभाव से हटवाने की मांग भी की है। ताकि देश की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा हो सके और सनातन धर्म के विरुद्ध चल रहे प्रोपेगेंडा पर चोट की जा सके।
धर्म, संस्कृति की रक्षा के लिए ज्योतिष्मठ के अन्तर्गत काम कर रहा धर्म सेंसर बोर्ड ये मांग भी करता है कि ये सिर्फ OTT प्लेटफार्म तक ही सीमित ना रहे बल्कि फिल्म और सीरियल्स पर भी लागू हो।
OTT प्लेटफॉर्म पर गाली-गलौज और अश्लील कंटेंट लगातार परोसे जा रहे हैं। शंकराचार्य का मानना है कि भारतीय संस्कृति को धूमिल करने के लिए सनातन विरोधी कंटेंट की जैसे होड़ लग गई है जिससे भारतीय युवा पीढ़ी खतरे में है। उन्होंने कहा कि समाज और सनातन की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है। कोई ओटीटी प्लेटफार्म अगर सनातन विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने की कोशिश करेगा तो धर्म सेंसर बोर्ड उसके खिलाफ हर जरुरी कदम उठाएगा।

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने एक संदेश देने की कोशिश की भले की हो और शंकराचार्य उनसे चाहे जितनी उम्मीद लगा रहे हों, लेकिन ओटीटी जैसा हो चला है, उसे देखने के बाद इस पर रोक लगना या कथित सनातन विरोधी कंटेंट हटाना आसान नहीं लगता। फिर भी ओटीटी के लिए कंटेंट बनाने वालों को भी इतना ध्यान तो रखना ही चाहिए कि सिर्फ महानगरों में ही भारत नहीं बसता। ग्रामीण भारतीय परिवार आज भी एकसाथ बैठकर टीवी देखता है। ऐसे में स्कीन पर टूटती मर्यादा परिवारों के बीच भी कुछ तोड़ती है, जिसके टूटने की आवाज भी नहीं होती।

लेखक पत्रकार हैं.

एलिफेंट्स व्हिस्पर्स
सिनेमा

एलिफेंट्स व्हिस्पर्स : प्रकृति के चीत्कार के बीच आशा

 

पुरस्कारों की राजनीति से परे यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि पुरस्कार आपको पहचान दिलवाते हैं और दुनियाँ की नज़रें आपकी ओर केन्द्रित हो जाती है तब अपना कार्य और अधिक सार्थक प्रतीत होता है। हम बात कर रहें है ऑस्कर विजित फ़िल्म “एलेफंट विस्पपर्स” की। गुनीत मोंगा के सिख्या एंटरटेनमेंट प्रोडक्शन और कार्तिकी गोंजाल्विस के निर्देशन में यह वृतचित्र मधुमलाई टाइगर रिजर्व तमिलनाडु के जंगलों के हाथियों की स्थिति के माध्यम से बहुत मार्मिकता से कई गंभीर प्रश्नों पर वैचारिक भूमि तैयार करती है। एक समय था जब बचपन में हम दूरदर्शन पर “फिल्म डिवीज़न की भेंट” के माध्यम से बहुत ही मनोरंजक, रोचक व ज्ञानवर्धक वृतचित्र देखा करतें थे। अफ़सोस अब तो फ़िल्म डिवीज़न भी जाने किसकी भेंट चढ़ चुका है। ऑस्कर इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि भारत में डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में लोकप्रिय नहीं होती न ही इसके लिए कहीं कोई प्रयास नजर आतें हैं।

1971 में आई ‘हाथी मेरे साथी’ जिसमें हाथियों के प्रति नायक का स्नेह प्रेम और दोस्त के रूप में चित्रित किया था लेकिन ये सर्कस के हाथी थे। 1977 ‘सफ़ेद हाथी’ नामक फिल्म आई इसमें भी एक बच्चे और उस हाथी का दोस्ताना रूप मिलता है जो एक बच्चे को सोने का सिक्का दिया करता था। समुद्र मंथन में निकले ऐश्वर्य का प्रतीक श्वेत हाथी ऐरावत को भी हम जानतें हैं लेकिन आज इस विशाल वैभवशाली हाथी का अस्तित्व खतरे में है “हमारी गलतियां बहुत खतरनाक है हमारे लिए भी और हाथियों के लिए भी”। क्या मनुष्य ने समस्त प्रकृति को खतरे में नहीं डाल दिया? आज प्रकृति चीत्कार कर रही है। हाथियों की फुसफुसाहट वास्तव में सम्पूर्ण धरा के संरक्षण की गुहार लगा रही है। इस खतरे से उबारने के क्रम में आगे आते हैं दक्षिण भारत में कट्टूनायकन आदिवासी के दंपत्ति बेली और बमन जिन्होंने पुनर्वास शिविर में अनाथ नन्हें हाथियों को सफलता पूर्वक पालन पोषण किया। फ़िल्म में हाथियों के प्रति इनका स्नेह और लगाव, उनकी सांस्कृतिक परम्पराएँ तथा प्रकृति और ईश्वर में (गणेश)एकरूपता को बखूबी दिखाया गया है। दम्पति माता पिता की तरह नन्हें हाथियों का पालन पोषण करती है और बड़े होने पर उन्हें वापस जंगल में भेज दिया जाता है जिस प्रकार बच्चे नौकरी के सिलसिले में शहर/देश छोड़ कर चले जातें हैं। बच्चों की प्रगति में माता पिता बाधक नहीं बनतें तो बेली और बमन भी बिना किसी लोभ-लालच के पूरी आत्मीयता और स्नेह के साथ हाथियों की प्रजाति की रक्षा और विकास में बाधक नहीं सहयोगी बनते हैं। फिल्म को मिले ऑस्कर अवार्ड ने भी प्रमाणित कर दिया कि प्रकृति को बचाने की मुहिम में स्त्रियों का कितना बड़ा योगदान है ‘चिपको आन्दोलन’ से लेकर (उसके भी सदियों पहले से) गुनीत मोंगा और कार्तिकी गोंज़ाल्विस तक स्त्रियाँ ही मानव और प्रकृति के सह-सम्बन्ध को सकती है वे सिर्फ मानव सभ्यता ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण वसुंधरा को बचाने पर बात करती है।

डॉक्यूमेंट्री होने पर भी ‘एलिफेंट्स विस्पेरड’ आपको कहीं भी बोर नहीं करती, इसमें एक सुन्दर कथानक बुना हुआ है जो सदियों से मनुष्य और प्रकृति के सह-संबंध की दास्ताँ बताता है। पहला दृश्य, मधुमलाई टाइगर रिजर्व तमिलनाडु भारत 2019, एक आदमी की सतर्क आँखे जंगल का निरिक्षण कर रही हैं, एक बिग स्क्विरल मजे से फल खा रही है, उस आदमी को नहीं पता कि एक उल्लू चौकीदार की तरह उसपर नज़र रखे हैं, एक गिरगिट पतली-सी हरी चिकनी डाली पर आराम-मुद्रा में बहुत भली लग रही है। आदमी आदिवासी कट्टूनायकन है वो बताता है कट्टूनायकन यानी जंगल का राजा, शेर नहीं मनुष्य! जिसने समस्त धरा पर अपना अधिपत्य स्थापित किया है लेकिन राजा होने के वास्तविक धर्म को कट्टूनायकन आदिवासी बहुत भली भाँति निबाह रहें हैं आदिवासी महिला बेली बताती है कि हम जंगलों के बीच नंगे पाँव चलतें है जो जंगल के प्रति सम्मान दिखाने का तरीका है कट्टूनायकन के लिए जंगल का हित सबसे ऊपर है बमन कहता है यह जंगल हमारा घर है, जहाँ हमेशा हमारे पूर्वज रहे हैं आज मैं इसके साथ हूँ “जंगलों के साथ होना” डॉक्यूमेंट्री के उद्देश्य को स्पष्ट कर देता है।

बचपन में खेल-खेल में लड़ाई होने पर हम एक कहावत-सी कहा करतें थे “कुत्ते-कुत्ते भौंकते रहे हाथी शान से चलते रहे” लेकिन कमजोर पर हर कोई वार करता है। परिवार से बिछुड़े जंगल से भटके हुए एक नन्हें हाथी रघु को कुत्तों ने काट लिया उसकी घायल पूँछ और घाव में कीड़े पड़ गए थे। रघु की मां की मौत बिजली के झटके लगने से हुई, अक्सर जंगल में आग लगने पर और लंबे अकाल के बाद मासूम-मूक हाथियों का झुंड गांव में आ जाता हैं। पर जंगल में आग कैसे लग जाती है, जंगलों में अकाल क्यों पड़ रहे हैं? वन विभाग ने नन्हें रघु को उसके परिवार से मिलाने की कोशिश की पर असफल रहे तो वन विभाग ने रघु को बचाने की जिम्मेदारी बमन और बेली को सौंप दी। बेली तमिलनाडु में एकमात्र महिला बन गई जिसे हाथियों के बच्चों को सौंपा गया। आदिवासी जंगली हाथियों से आत्मीय सम्बन्ध रखते हैं उन्हें अपना भगवान् मानते है, बमन के अनुसार “हाथी भी प्रकृति का अंग है और हम प्रकृति पूजक हैं हमेशा से, जैसे भगवान की सेवा करता हूं वैसे हाथियों की सेवा करता हूं। रघु की वजह से हमारे घर में खाना आता है यही भगवान के देन हैं। प्रकृति हमें देती है और सिर्फ देती है”। हम धरती को कितना देते हैं?

कथा आगे बढ़ती है अलग-अलग दृश्य आदिवासी समाज और हाथियों का उनके जीवन में महत्व, नन्हें रघु और बाद में एक नन्हीं हथिनी अम्मू की अठखेलियाँ हमें मोहित कर जाती है। परिवार की संकल्पना मनुष्य और हाथियों में सामान रूप से पाई जाती है बमन और बेली के अनुसार हम रघु का परिवार बन गए इसीलिए शायद यह जी पाया जबकि परिवार संस्था विघटित हो रही है, परिवार का महत्व समझ आता है। बेली बताती है कि मेरी बेटी के मर जाने के बाद रघु का आना ऐसा लगा कि बेटी ही वापस आ गई, रघु ने अपनी सूंड से मेरे आँसू पूंछे थे वह छोटे बच्चों की तरह मेरे कपड़े खींच रहा था, मुझे उसका प्यार महसूस हुआ और रघु ने भी उस मुझमें मां की-सी सुगंध को अनुभव किया होगा उसकी यह हरकत मुझे सुकून दे गई है।

हाथियों का पुनर्वास शिविर जहां अनाथ भटके हुए, छोड़े हुए हाथियों की देखभाल की जाती है रघु बहुत गंभीर अवस्था में आया रघु को संभालने में बहुत टाइम लगा लेकिन आज वह तीन वर्ष का हो गया। रघु के पालन-पोषण, लाड-प्यार उसके नखरे आदि के दृश्य आपको नन्हें बालक से ही लगतें है जैसे- बमन उसको नहला रहा है, तो वह अपनी सूंड में पानी भरकर उस पर फेंकता है, रघु को प्यार भरी डाँट लग रही है, उसने घंटी खो दी थी जो उसे वापस नदी पर मिल गई बमन बताता है “हम इन्हें घंटी पहनाते हैं ताकि अगर जंगल में खो जाए तो घंटी की आवाज से पता लग जाए”। रघु का दोस्त कृष्णा भी है जो उसे घास तोड़ना सीख रहा है, जब रघु की जीभ पर जब कांटा चुभा तो कृष्णा हाथी उसे निकाल देता है। बमन के अनुसार हम उन्हें बहुत ज्यादा नहीं सिखा सकते वह अपने जैसों को देखकर ही सीखते हैं, हाथी जंगल में रहने के लिए ही बना है दोनों को साथ देख कर बहुत अच्छा लगता हैजैसे मनुष्य जिस समाज में रहता है वैसी ही संस्कृति, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाज सीख जाता है अर्जित कर लेता है फिर हम क्यों इन जानवरों को पकड़कर पालतू बनाते हैं, गुलाम बनाते हैं और इनके लाभ लेते हैं हमें क्या अधिकार है? कभी-कभी रघु बहुत नटखट और शैतानी करता है खाने में उसे जौ के लड्डू नहीं बल्कि सुखा नारियल ही चाहिए, जिद्दी बालक की तरह वह बार-बार मुँह से लड्डू निकाल देता है। रघु को परम्परागत तरीके से सजाया गया उसे माला पहनाई गई आज के दिन हाथी के बच्चे को गणपति से आशीर्वाद दिलवाया जाता है। सभी हाथी सलामी दे रहे हैं। इन दृश्यों में लंगूरों का परिवार भी बार बार दिखाई पड़ता है जो रघु का बचा हुआ खाना खा लेते हैं, उनके हैरानी वाले हाव-भाव कथा के अनुकूल बन जाते है।

लेकिन फिर “ग्रीन्स खो गए और जंगल में आग लग गई, रिप्लेस बाय द स्कोरिंग हीट ऑफ़ समर” जंगली हाथी भोजन की तलाश में इधर-उधर घूमने लगे। हाथी के नन्हें बच्चों के पैर जल रहे हैं, एक हाथी जो गर्मी से बिल्कुल जल चुका है। एक पाँच महीने की बेबी हाथी अम्मू बच पाई, बाकी सभी हाथी के बच्चे मर गए। अम्मू के आने पर एक हफ्ते तक रघु परेशान रहा उसे लग रहा था कि मेरा प्यार बट रहा है वह है उसे धक्का दे देता पर अब धीरे-धीरे उसे अम्मू की आदत हो गई अब उसे अम्मू चाहिए। अब हम एक परिवार हो गए।

बेली कुछ बच्चों को तीन अंधों की कहानी सुनाती है और अंत में निष्कर्ष देती है कि लोग मानते हैं ‘हाथी खतरनाक होतें है, फसलों को खराब करते हैं लेकिन हाथियों के पास रहने वाले लोगों को ही पता हाथी कैसे होते हैं। जब तुम उन्हें प्यार करते हैं तो वह भी तुम्हें उतना ही प्यार करते हैं’। हाथियों को भी खूब देखभाल की जरूरत होती है यह इंसान के बच्चों की तरह ही देखभाल करने जैसा है पूरी मेहनत और देखभाल के साथ-साथ प्यार स्नेह की जरूरत होती है। क्या इसी तरह जब हम प्रकृति प्रेम करतें हैं, उसका ख्याल रखते है तो वह भी तो हमें दोगुना प्रेम नहीं लौटाती? और हम इंसानों की फितरत भी बिल्कुल इसी तरह तो हैं? लेकिन इंसान ने अपने आप को सभ्यता के नाम पर अप्राकृतिक (आर्टिफिशियल) बना लिया। वह पशु पक्षियों कीट पतंगों सभी पर साम्राज्य स्थापित करता जा रहा है दूसरों के श्रम पर अपना कब्ज़ा उसकी फितरत में शामिल है।

जब वन विभाग से सन्देश आता है कि अब रघु को बड़े हाथियों के बीच जाना होगा तो बमन और बेली का मन भारी हो रहा है। वे कहतें हैं कि हमने वन अधिकारियों विनती की कि हमें रघु से दूर न करें। जाने के वक्त अम्मू पीछे से चिल्लाकर पुकारती है। बेली के अनुसार ‘मुझे वही दर्द महसूस हुआ जो बेटी की मृत्यु के समय महसूस हुआ अम्मू मुझसे बार-बार पूछ रही है कि अभी रघु कहां है। अमु परेशानी से घूम रही है उसे रघु चाहिए था। कई दिनों तक दूध भी नहीं पिया अम्मू चिल्ला रही है उसे दूध नहीं पीना उसकी फटी फटी आंखें परेशानी से देख रही है आज कई दिन बाद से दूध पिया’। इस दृश्य में एक लंगूर-मां अपने बच्चे को और ज्यादा कसकर पकड़ लेती है। अब भी कभी-कभी रघु आता है उनसे मिलने और खूब प्यार करता है।

आज सभी हाथियों को नहीं बचाया जा पा रहा, जंगल काटे जा रहे हैं, जंगल में आग कई दफ़ा जमीन के लोभी जानबूझ कर भी लगाते हैं, इस पक्ष पर और खुलकर बात होनी चाहिए, ये जंगल कौन काट रहें हैं? कौन आदिवासियों और जंगल के पशुओं को बेघर कर रहा है हम नहीं जानते क्या? जंगलों को सरकारी अधिकार के बजाए आदिवासियों के संरक्षण में रखना चाहिए वे जंगल और जंगली जानवरों की जरूरतों को बेहतर जानते समझते है। इस फिल्म को 2023 का बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शोर्ट फ़िल्म का ऑस्कर मिलना बहुत जरूरी इसलिए था कि लोगों ध्यान इस फिल्म और विषय पर केन्द्रित हो, देखने को उत्सुक हों तभी तो प्रकृति के प्रति जागरूक भी होंगे हालाँकि ऑस्कर लेते समय बमन, बेली, रघु और अम्मू का जिक्र न होना खटकता भी है।  

फ़िल्म का छायांकन और बिना किसी ट्रेनिंग के हाथियों, लंगूरों और बमन बेली से अभिनय-सा काम लेना अभूतपूर्व है। फिल्म के कुछ संवाद और दृश्यों की निर्मिती महिला निर्देशक होने के नाते लगता है जानबूझ कर की गई है, जैसे बमन का चूल्हा जलाना और बेली का कहना ऐसे आदमी से शादी कौन करेगा जो राख़ से सना हो इस चुहलबाजी में हम स्त्री के आकांक्षाओं को भी देखतें हैं लेकिन इसी बीच एक साथ काम करने के बाद बमन और बेली के बीच भी एक रिश्ता बन गया। अंत में बमन और बेली की शादी और हिंदी फ़िल्मों के हैप्पी एंडिंग, एक फैमिली फोटो। मानव और प्रकृति के नैसर्गिक संबंधों को जानने समझने के लिए एक अच्छी फिल्म नेटफ्लिक्स पर परिवार के साथ देखनी चाहिए

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वित्त मंत्री हरपाल चीमा
पंजाब

मान सरकार का एक साल पूरा: वित्त मंत्री ने गिनाई उपल्बधियां

 

पंजाब की AAP सरकार का एक साल पूरा हो गया है। पंजाब सरकार में वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने अपनी सरकार की उपल्बधियां गिनाते हुए कहा कि हमारी सरकार को एक वर्ष पूरा हो चुका है जिसमें एक साल पहले भगवंत मान ने सीएम की कुर्सी संभाली थी। उन्होंने कहा कि पहली बार ऐसा हुआ कि पंजाब की जनता ने 117 में से 92 सीट आप पार्टी को दी और जो हरा पेन भगवंत मान को दिया उससे सिस्टम को बदला। साथ ही उन्होंने कहा कि जो राजनीतिक पार्टियों की आपसी नीति है उसे कभी भी नहीं तोड़ा गया।

300 यूनिट बिजली फ्री करने के वादे पूरे

हरपाल चीमा ने कहा कि आप पार्टी सरकार ने ऐतिहासिक फैसले की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि पहले की सरकारें आखिरी साल में काम करना शुरू करती थी लेकिन भगवंत मान सरकार ने सत्ता हासिल करने के पहले ही  दिन से काम करना शुरू किया और पहली मीटिंग में ही 26 हजार नौकरियां दी गई। उन्होंने मुफ्त बिजली का जिक्र करते हुए कहा कि जब पंजाब में चुनाव प्रचार किया जा रहा था तो उस समय 300 यूनिट बिजली देने का वादा हमारी सरकार ने किया था और उसको लेकर हमने शुरू में ही फैसले को लागू किया गया। इसके अलावा मोहल्ला क्लीनिक पर जोर देते हुए हमने 500 क्लीनिक खोले।

भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम

भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते हुए उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी लहर से ही आम आदमी पार्टी का उदय हुआ था तो उस पर चलते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़े-बड़े एक्शन लिए गए और जो भ्रष्टाचारी नेता, अफसर सभी पर शिकंजा कसा गया, जिसमें भ्रष्टाचारियों पर कड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें जेल भेजा गया। इसके साथ ही जिन्होंने माफिया राज खड़ा किया था, उसे खत्म किया गया।

हरपाल चीमा ने युवाओं की भर्ती पर बोलते हुए कहा कि पंजाब में युवाओं को कांट्रेक्ट पर भर्ती किया गया था,  उसमें 14 हजार युवाओं की नौकरी को पक्की करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और यह आगे भी चलता रहेगा।

शिक्षा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा में बड़ा वायदा ‘स्कूल ऑफ एमिनेंस’ खोलने का था और वह खोले गए और अध्यापकों को विदेश में भेजने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है ताकि शिक्षक अच्छी ट्रेनिंग लेकर अपने सहयोगी शिक्षकों और विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा दे सके।

40 हजार करोड़ रुपये का निवेश

इसके साथ ही पंजाब में निवेश को लेकर दिल्ली से भी बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री आ रही है और 40 हजार करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है और 1,500 निवेशकारों ने यहां निवेश में अपनी दिलचस्पी दिखाई है। निवेश को लेकर पंजाब का माहौल अच्छा बना गया है।

पंजाबी भाषा को लागू करवाने को लेकर उन्होंने कहा कि एक समय में पंजाबी का बोल-बोला होगा। यह हमने शुरुआत की। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि पंजाब विधानसभा में से लाइव टेलीकास्ट नहीं होता था जिसके बाद पंजाब के लोगों को अब पता चला है।

90 हजार एकड़ जमीन खाली करवाई

हरपाल चीमा ने आगे कहा कि पंजाब की जमीनें जो रसुखदारों ने हड़पी हुई थी उसे छुड़वाने की शुरुआत हो चुकी है और 90 हजार एकड़ जमीन खाली करवाई है। साथ ही पंजाब के किसान को फसल की अदायगी 24 घंटे के अंदर शुरू हुई है और जो फसल खराब हुई थी उसमें जो मुआवजे बाकी थे वह भी अदा किए हैं। इसके साथ ही धरती के  नीचे का पानी बचाने को लेकर मुहिम भी हमने शुरू की है

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व्यंग्य

एक गांधी की ललकार बोलने दो सरकार

 

दुनिया देख रही है जहांन के सबसे बड़े लोकतंत्र मंदिर में मुंह बंद, माइक बंद, आवाज बंद का खेला जारी है। विपक्ष की आवाज, आभार, अंदाज पर सरकारी चौकीदारी पहरेदारी के विरोध में नारे गूंज रहे हैं। संसद में सरकार बनाम शेष की जोरआजमाइश जारी है। जिस सदन की शक्ति को देश का वरदान बनना था वह विचार आदन प्रदान अभिशाप बन आज बेबस लाचार सामने खड़ी है। इतिहास में पहली बार सरकार तकरार कर रही है मंत्री सदन ठप कर बाहर गप्पे लगा रहे हैं। विपक्ष हमलावर हो ललकार रहा है बोलने दो बोलने दो चिल्ला रहा है। चुनावी मुहाने पर खड़े देश पर सरकार और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा जाने अनजाने राहुल विरोध में चट्टान सम खड़ी हो राहुल गांधी को ताकतवर, नायक, हिम्मतवर साबित करने पर आमदा जान पड़ती है। राहुल के विरोध में संसद और संसद के बाहर बीजेपी नेताओं मंत्रियों का हल्ला बोल यह बताने जताने दिखाने को काफी है कि अकेला राहुल कितनों पर भारी है। गांधी के विरोध में भाजपा का हठधर्म राजधर्म लोकधर्म पर कुठाराघात मालूम होता है। कुछ पल के लिए सदन में एकत्रित हो भाजपा नेताओ कि राहुल राहुल की चिल्ल पो देख रही है दुनिया ये घबराहट है छटपटाहट है या डर समझ से परे है। देशवासी सोचने लगे हैं क्या वाकई यह गांधी की आंधी है जिसको रोकने में चार चार मंत्री सरकार की पतवार थामें उड़ते बिखरते चीखते चिल्लाते नज़रभी आ रहे हैं।

राहुल गांधी के बयान पर बात बहादुरों की पूरी फौज का मोर्चा संभाल संसद को बेहाल बेबस विपक्ष की बोलती बंद कर समय टाल देने की नाटक नौटंकी का दिखावा भर नहीं तो क्या है? जबकि देश गंभीर आर्थिक घोटाले की जद में जूझ रहा है और जिस पर घोटाले का आरोप है वह सरकारी व्यापारी करार दिया जा रहा है। राहुल गांधी के नाम पर संसद में कोहराम मचाने वाले मंत्री संतरी सदन में राहुल को सुनने का साहस क्यों नहीं जुटा पा रहे हैं? इस सवाल का जवाब कही बवाल बन भाजपा के गले की फांस न बन जाए बचाव शायद इसी बात का है। सरकार अडानी पर लगे आरोपो पर बहस करा दे तो हो सकता है 2024 का चुनाव मोदी का यार, देश से गद्दार के नारों से न गूंज उठे। एक सशक्त दमदार जिम्मेदार की तरह गांधी ने मोदी को ललकारा है साफ शब्दों में सवाल दागा है, चुनौती दी है कि मोदी जवाब दें बताएं कि आखिर अडानी और मोदी का रिश्ता क्या है? क्यो किस अधिकार से मोदी अडानी को ले कर विदेश यात्राएं करते रहे है? सदन अडानी मोदी भाई भाई के नारों से गूंज रहा हैं। विपक्ष एकजुट हो पूछ रहा है देश को मोदी बताये ये रिश्ता क्या कहलाता है और मिलकर क्या गुल खिलाता है? तो क्या भाजपा का हल्लाकाट सोची समझी रणनीति का हिस्सा है जिसकी आड़ में सरकार संसद में बवाल काट समय बिता सवाल से मुंह छुपा बच निकलने की जद्दोजहद में डूबी है।

सदन में सवालों की बौछार है और बात बात आयर कभी कभार बिना बात भी मन की बात करने में माहिर मोदी जी सदन में आकर अड़ानी ज्ञान से देश को क्यों नहीं अवगत करा रहे? मोदी जी क्यों नहीं बताने का साहस जुटा पा रहे हैं कि ये सरकारी व्यापारी के संरक्षण की सरकार नहीं है। हवा में गूंज और देश को कन्फ्यूज करने वाले राहुल गांधी के प्रश्नों का हल स्वयं मोदी ही बताए तो बेहतर होगा। मंत्रियों के बेबुनियाद माफी की मांग पर संसद के समय की बलि चढाने की जिद्द स्वांग से ज्यादा कुछ समझ नहीं आता। मुझे समझ नहीं आता पर अडानी मुद्दे पर बहस से बच गांधी के सवालों से किनारा कर पर मोदी सदन की महिमा मान कम नही कर रहे है? मोदी का मौन मित्रियो का वाचाल होना इस सरकार पर व्यापारी से गठजोड़ के दाग को और गहरा और काला और घिनौना नहीं करेगा। क्या जनता के मन में संशय नहीं होगा कि शब्दों की बाजीगरी 56 इंच के सीने वाले कर्मवीर माननीय मोदी जी गांधी के महज दो सवालों के जवाब क्यों नहीं दे पा रहे? क्यों नहीं सदन में खड़े होकर बता पा रहे हैं कि उनका अडानी से कोई रिश्ता नहीं? उन्होंने सरकारी यात्राओं में अदानी को शामिल नहीं किया, उन्होंने विदेशों में अडानी के लिए लाल कारपेट नहीं बिछवाए। मोदी देश के संसद से संदेश दें कि अडानी एक व्यापारी है और उनके व्यापार से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है साफ कर सकते है। आखिर देश के सदन का सांसदों का मान बडा या अडानी के सवालों के जवाब पर चुप्पी। क्यों सरकार के मंत्री प्रधानमंत्री एक गांधी के सवाल से बचा अदानी को सुरक्षित संरक्षित रखने की जिद पर अड़े है? पूछता है देश क्या है मोदी अडानी का मायाजाल मोदी जी अगर यह महज एक भरम है तो सीना ठोक कर फिर कहो कि एक अकेला सब पर भारी अडानी से नहीं कोई यारी।

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कानून-व्यवस्था में सुधार
पंजाब

मुख्यमंत्री भगवंत मान के एक साल के कार्यकाल में कानून-व्यवस्था में सुधार

 

मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार के सत्ता में आने के एक साल बाद सीमावर्ती राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। ऐसा दरअसल इसलिए है क्योंकि अधिकांश अपराधियों और गैंगस्टरों को भगवंत मान की सरकार ने सलाखों के पीछे डाल दिया है। वहीं कई अपराधियों और गैंगस्टरों ने राज्य में असामाजिक तत्वों की गतिविधियों पर पंजाब पुलिस की कड़ी नजर के बीच राज्य को छोडऩा चुना है।

पंजाब में अपराध में उल्लेखनीय गिरावट

पिछले कुछ महीनों में, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) पंजाब गौरव यादव की देखरेख में पंजाब पुलिस ने कई विशेष अभियान चलाए हैं और अधिकांश अभियानों में डीजीपी खुद इन अभियानों का संचालन करने के लिए पूरे पुलिस बल का नेतृत्व करने के लिए मैदान में उतरे हैं। जिसका उद्देश्य आम जनता में सुरक्षा की भावना पैदा करना और असामाजिक तत्वों के बीच भय पैदा करने के लिए पुलिस की उपस्थिति बढ़ाना था। इन ऑपरेशनों में कॉर्डन एंड सर्च ऑपरेशंस (कैसोज़), खूंखार गैंगस्टरों के ठिकानों पर छापेमारी, विशेष वाहन जाँच अभियान, ऑपरेशन सील, रात के वक्त चलाए जाने वाले ऑपरेशन आदि शामिल हैं।

पिछले एक साल में नशे की बरामदगी में वृद्धि

16 मार्च, 2022 से 15 मार्च, 2023 तक के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पंजाब पुलिस ने 168 आतंकवादी/कट्टरपंथियों की गिरफ्तारी के साथ 31 राइफलें, 201 रिवॉल्वर/पिस्तौल, 9 टिफिन इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी), 8.72 किलोग्राम आरडीएक्स और अन्य विस्फोटक, 11 हैंड ग्रेनेड, डिस्पोज्ड़ रॉकेट लॉन्चर की दो स्लीव्स, 30 ड्रोन और एक लोडेड रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड बरामद करने के साथ 26 आतंकी मॉड्यूल्स का भंडाफोड़ किया है।

इसी तरह, एंटी-गैंगस्टर टास्क फोर्स (एजीटीएफ) ने 6 अप्रैल, 2022 को अपने गठन के बाद से 582 गैंगस्टरों/अपराधियों को गिरफ्तार करने और पांच को बेअसर करने के बाद 162 गैंगस्टरों/अपराधियों मॉड्यूल का भंडाफोड़ करने में सफलता प्राप्त की है, साथ ही 586 हथियार एवं 131 वाहन बरामद किए हैं। जाहिर है, सत्ता में आने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने राज्य से गैंगस्टरों का सफाया करने के लिए एडीजीपी प्रमोद बान की अध्यक्षता में एक विशेष गैंगस्टर-विरोधी टास्क फोर्स (एजीटीएफ) का गठन किया।

डीजीपी गौरव यादव ने कहा कि मोहाली में खुफिया मुख्यालय भवन में आरपीजी हमला, पंजाबी गायक शुभदीप सिंह उर्फ सिद्धू मूसेवाला की हत्या; बरगाड़ी बेअदबी के आरोपी प्रदीप कुमार की हत्या; पीएस सरहाली, तरनतारन में आरपीजी हमला; सुधीर सूरी और भूपिंदर सिंह चावला उर्फ टिम्मी चावला की हत्याओं सहित अप्रैल 2022 में छह जघन्य अपराध की बड़ी घटनाएं हुईं थीं; और पंजाब पुलिस ने रिकॉर्ड समय में इन सभी मामलों को प्रभावी ढंग से हल करने में कामयाबी हासिल की है।

पंजाब को नशा मुक्त बनाने के लिए डीजीपी की पहल

पंजाब को नशा मुक्त राज्य बनाने के लिए डीजीपी ने कहा कि पंजाब पुलिस ने नशों के खि़लाफ़ निर्णायक जंग छेड़ी है, जिसके नतीजे में 16 मार्च, 2022 से अब तक 13 हजार 94 एफ़आईआर दर्ज कर 17 हजार 568 नशा तस्करों को गिरफ़्तार किया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘पंजाब पुलिस ने केवल एक साल में रिकॉर्ड 863.9 किलोग्राम हेरोइन बरामद की है।’’

गौरतलब है कि पंजाब पुलिस ने राज्य भर से 716.9 किलोग्राम हेरोइन बरामद की है और इसके अलावा, पंजाब पुलिस की टीमों द्वारा गुजरात और महाराष्ट्र के बंदरगाहों से 147.5 किलोग्राम हेरोइन बरामद की गई है, जिससे हेरोइन की कुल प्रभावी बरामदगी 863.9 किलोग्राम हो गई है। इसके अलावा, पुलिस ने राज्य भर से 888 किलोग्राम अफीम, 1229 किलोग्राम गांजा, 464 क्विंटल पोस्त और 70.16 लाख गोलियाँ/कैप्सूल/टीके/फार्मा ओपिओइड की शीशियाँ भी बरामद की हैं। पुलिस ने पिछले एक साल में गिरफ्तार नशा तस्करों के कब्जे से 10.36 करोड़ रुपए की ड्रग मनी भी बरामद की है।

उन्होंने कहा कि एनडीपीएस मामलों में घोषित अपराधियों (पीओ)/भगोड़ों को गिरफ्तार करने के लिए चल रही विशेष मुहिम के तहत पंजाब पुलिस ने 16 मार्च, 2022 से अब तक 828 पीओज़/भगोड़ों को गिरफ्तार किया है।

डीजीपी गौरव यादव ने दोहराया कि पंजाब पुलिस सीमावर्ती राज्य से नशे के खतरे को जड़ से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है और नशा बेचने वालों पर नकेल कसने के लिए समय-समय पर कई विशेष नशा विरोधी मुहिम चलाई जा रही हैं।

मुख्यमंत्री भगवंत मान पंजाब को सुरक्षित राज्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध

इस बीच, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सत्ता में आने के बाद ड्यूटी के दौरान मृत्यु होने पर पुलिस कर्मियों के परिवारों को दी जाने वाली अनुग्रह राशि को बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दिया है। यह राशि एचडीएफसी बैंक द्वारा दिए जा रहे एक करोड़ रुपये के बीमा कवर के अतिरिक्त है। पंजाब सरकार ने पुलिस कल्याण के लिए बजट आवंटन भी 10 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 15 करोड़ रुपए कर दिया है।

अब भगवंत मान सरकार द्वारा आतंकवादियों/गैंगस्टरों/ड्रग तस्करों के खिलाफ की गई कार्रवाई के आंकड़ों को एक नजर देख कर समझने की कोशिश करते हैं।

 आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई

पंजाब सरकार ने आतंकवादियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए 26 आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया। जिसमें 168 आतंकवादी/कट्टरपंथी गिरफ्तार किए गए। आतंकवादियों के पास से कुल 31 राइफलें और 201 रिवॉल्वर/पिस्तौल बरामद किए गए। कुल 9 टिफिन आईईडीज़ बरामद हुए और 8.72 किलोग्राम आरडीएक्स और अन्य विस्फोटकों की बरामदगी हुई। इसके साथ ही आतंकवादियों से कुल 11 हथगोले और 30 ड्रोन बरामद हुए।

गैंगस्टरों के खिलाफ कार्रवाई

वहीं गैंगस्टरों की बात करें तो पंजाब सरकार ने कुल 162 मॉड्यूल्स का पर्दाफाश किया है। जिसमें से 582 गैंगस्टर/अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। 5 गैंगस्टर को निष्प्रभावी कर दिया गया। साथ ही इन गैंगस्टरों के पास से 586 हथियार और 131 वाहन बरामद हुए।

ड्रग्स के खिलाफ कार्रवाई

इसी प्रकार ड्रग्स के खिलाफ कार्रवाई करते हुए पंजाब सरकार ने कुल 17 हजार 568 ड्रग तस्कर या ड्रग आपूर्तिकर्ता को गिरफ्तार किया है। जिसमें से कुल 13 हजार 94 एफआईआर दर्ज की गई है। वहीं इस तस्करों के पास से कुल 863.9 किलोग्राम हेरोइन, कुल 888 किलोग्राम अफीम, कुल 1229 किलोग्राम गांजा, 464 क्विंटल  पोस्त, 70.16 लाख फार्मा ओपिओइड की कुल गोलियां/कैप्सूल/टीके/शीशियाँ बरामद हुई है। इसके साथ ही कुल 10.36 करोड़ रुपए ड्रग मनी भी बरामद हुई है। और अंत में एनडीपीएस मामलों में घोषित 828 अपराधियों/भगोड़ों की गिरफ्तारी की गई है

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जी-20 सम्मेलन शिक्षा क्षेत्र को बढ़ावा देने का पुख़्ता प्लेटफॉर्म
पंजाब

जी-20 सम्मेलन शिक्षा क्षेत्र को बढ़ावा देने का पुख़्ता प्लेटफॉर्म साबित होगा: भगवंत मान

 

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने उम्मीद जताई कि जी-20 सम्मेलन दुनिया भर में और ख़ास तौर पर पंजाब में शिक्षा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए माहिर देशों के अहम सुझावों के लिए मज़बूत प्लेटफॉर्म साबित होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस प्लेटफॉर्म से नौजवानों को बड़े स्तर पर फ़ायदा होगा। 

अमृतसर में बुधवार को जी-20 एजुकेशन वर्किंग ग्रुप की दूसरी मीटिंग के दौरान जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘‘मेरा मानना है कि इस सम्मेलन में होने वाला विचार-विमर्श न केवल शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने में सहायक होगा, बल्कि इससे राज्य के नौजवानों का बड़े स्तर पर फ़ायदा होगा।’’ उन्होंने उम्मीद जताई कि वैश्विक अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित बड़े मसलों को हल करने के लिए जी-20 की पुख़्ता कोशिशों से भारत और ख़ास तौर पर पंजाब की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। भगवंत मान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमन-शांति, बेहतर सहयोग और तालमेल के लिए जी-20 द्वारा की जा रही कोशिशों की भी सराहना की। 

‘शिक्षा’ और ‘स्वास्थ्य’ मानव जीवन का मूल

‘ज्ञान को मानवीय जीवन का आधार’ बताने वाले संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीम राव आम्बेडकर की विचारधारा पर चलते हुए राज्य सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होने वाली पहलों का जि़क्र करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि राज्य सरकार शिक्षा क्षेत्र को विशेष प्राथमिकता दे रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का मानना है कि ‘शिक्षा’ और ‘स्वास्थ्य’ मानव जीवन का मूल है और सामाजिक विकास इन दोनों अहम क्षेत्रों की मज़बूती और विस्तार पर निर्भर करता है। भगवंत मान ने कहा कि राज्य सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष में स्कूल और उच्च शिक्षा के लिए 17 हजार 72 करोड़ रुपए का बजट रखा है। 

‘स्कूल ऑफ एमिनेंस’ से विद्यार्थियों का सतत विकास

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकारी स्कूलों को ‘स्कूल ऑफ एमिनेंस’ में बदलने के लिए 200 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। उन्होंने कहा कि यह उच्च वर्ग मानक ‘स्कूल ऑफ एमिनेंस’ विद्यार्थियों का समग्र विकास सुनिश्चित बनाएंगे। भगवंत मान ने कहा कि यह स्कूल नौवीं से बारहवीं तक के विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करेंगे। इन स्कूलों का निर्माण सहयोग और बुनियादी ढांचे की मज़बूती, अकादमिक, मानव संसाधन प्रबंधन, खेल और सह- शैक्षिक गतिविधियाँ और कम्युनिटी एन्गेजमैंट के पाँच स्तम्भों की बुनियाद पर किया जा रहा है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके अलावा यह स्कूल उच्च शिक्षा, रोजग़ार, प्रशिक्षण और अन्य क्षेत्रों के लिए कौशल और व्यक्तिगत क्षमता को निखारने के लिए अवसर पैदा करेंगे। उन्होंने कहा कि यह स्कूल इंजनियरिंग, लॉ, कॉमर्स, यू.पी.एस.सी. और एन.डी.ए. के साथ-साथ पाँच पेशेवर और मुकाबले वाले पाठ्यक्रमों के लिए विद्यार्थियों को तैयार करने पर ध्यान केन्द्रित करेंगे। भगवंत मान ने कहा कि पंजाब सरकार राज्य में शिक्षा का मानक ऊँचा उठाने के लिए वचनबद्ध है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि विद्यार्थियों के शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए सरकारी स्कूलों का माहौल अनुकूल बनाने के लिए बजट में 141.14 करोड़ रुपए के बजट की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि इससे कैंपस मैनेजरों के द्वारा स्कूलों की सफ़ाई, सामान की देखभाल और स्कूलों का प्रबंधन प्रभावशाली तरीके से चलना सुनिश्चित बनेगा। कैंपस मैनेजरों के आने से स्कूलों के प्रिंसिपल प्रशासनिक और अकादमिक कर्तव्यों पर ध्यान दे सकेंगे। भगवंत मान ने कहा कि स्कूल शिक्षा विभाग में विभिन्न स्तरों पर काम कर रहे अध्यापकों, स्कूल प्रमुखों और शिक्षा प्रबंधकों को विश्व स्तरीय प्रशिक्षण देने के लिए इंटरनेशनल एजुकेशन अफेयर्स सैल (आई.ई.ए.सी.) स्थापित किया गया है। 

ज्ञान की परस्पर अदला-बदली की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए यह एक प्रेरक के तौर पर काम कर सकता है। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार पहले ही राज्य के विद्यार्थियों और अन्य मुल्कों के विद्यार्थियों के बीच ज्ञान की परस्पर अदला-बदली को बढ़ाने पर ध्यान दे रही है। भगवंत मान ने कहा कि यह समय की ज़रूरत है कि विद्यार्थी विश्व की सामाजिक-आर्थिक तरक्की के हिस्सेदार बनें।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रशिक्षण के लिए प्रिंसिपल अकादमी, सिंगापुर में 66 प्रिंसीपलों/ अध्यापकों के बैच भेजे गए हैं। उन्होंने कहा कि वापसी पर यह अध्यापक प्रशिक्षण सम्बन्धित तजुर्बे को विद्यार्थियों और अपने साथी अध्यापकों के साथ साझा करेंगे, जिससे विद्यार्थी विदेशों में पढ़ाई के पैटर्न से अवगत होकर विदेशों में पढ़े-लिखे अपने साथियों का मुकाबला करने के योग्य हो सकें। 

भगवंत मान ने कहा कि यह एक क्रांतिकारी कदम है, जो राज्य की शिक्षा प्रणाली में अपेक्षित गुणात्मक बदलाव लाकर विद्यार्थियों के कल्याण के लिए राज्य की समूची शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाएगा। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि इन अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए चयन का एकमात्र मापदंड योग्यता है, जिससे यह सुनिश्चित बनाया जा सके कि वह शिक्षा सुधारों में अग्रणी भूमिका निभाएँ। उन्होंने कहा कि इन सभी प्रयासों का उद्देश्य नौजवानों को राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास का सक्रिय हिस्सेदार बनाकर कौशल की हिजरत के रुझान को वापस लाना है। उन्होंने कहा कि यह अहम पहल पंजाब में शिक्षा प्रणाली के सुधार के लिए मील पत्थर साबित होगी। 

भगवंत मान ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा एक और महत्वपूर्ण पहल करते हुए पंजाब शिक्षा एवं स्वास्थ्य फंड कायम किया है, जो प्रवासी भारतीय भाईचारे के सहयोग से शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में बड़े सुधारों के लिए अहम साबित होगा। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सम्मेलन विश्व भर के लोगों से सम्बन्धित मुद्दों और समस्याओं को उजागर कर सरकारों को जागरूक करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि महान गुरूओं, संतों और पीरों की इस धरती पर इस मैगा समारोह के प्रबंध के लिए भारत सरकार सचमुच बधाई की पात्र है। भगवंत मान ने कहा कि अपने-अपने देशों का प्रतिनिधित्व करने वाली मशहूर शख्सियतों का स्वागत करने के लिए यहाँ आना उनके लिए गर्व की बात है। 

अमृतसर व्यापार और व्यापारिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र

मुख्यमंत्री ने शिक्षा और श्रम के विषय पर दो सत्र करवाने के लिए इस पवित्र नगरी का चयन करने के लिए भारत सरकार का तहे दिल से धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि अमृतसर पवित्र शहर है, जिसकी पुराने समय से ही सबके लिए विशेष जगह रही है, जहाँ दुनिया भर के श्रद्धालु शांति और सुकून की प्राप्ति के लिए नतमस्तक होने के लिए आते हैं। भगवंत मान ने याद किया कि विभाजन से पहले के दिनों में यह पवित्र शहर देश में व्यापार और व्यापारिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अमृतसर को फिर से व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए पूरी तरह से प्रयासशील है और कई नामवर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने इस पवित्र शहर में अपने उद्यम स्थापित करने के लिए गहरी रूचि दिखाई है। 

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि पंजाब पुराने समय से सभ्यता और सभ्याचार का पालना रहा है और पाँच नदियों की इस पवित्र धरती पर मेहनती और बहादुर पंजाबियों ने इतिहास के कई पन्नों को नज़दीक से देखा है। उन्होंने कहा कि पंजाब में 1960 के दशक के मध्य में हरित क्रांति की शुरुआत हुई, जिसके बाद हौजऱी, हैंड टूल्ज़, खेल, ऑटो-पार्टस, कृषि यंत्रों, रबड़ और अन्य उद्योगों के रूप में तेज़ी से ओद्यौगीकरण हुआ। भगवंत मान ने यह भी कहा कि देश का अन्नदाता होने के साथ-साथ पंजाब को देश की खडग़ भुजा होने का गौरव भी हासिल है और यहाँ के लोग अपनी हिम्मत और समर्पित भावना के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। मुख्यमंत्री ने आशा अभिव्यक्त की कि सम्मेलन के दौरान प्रतिनिधि राज्य की गरिमापूर्ण मेहमाननवाज़ी का आनंद लेंगे। उन्होंने कहा कि यहाँ आने वाले प्रतिनिधि पंजाब दौरे की अच्छी यादों को अपने साथ लेकर जाएंगे। इसके साथ ही भगवंत मान ने जी-20 सम्मेलन की सफलता की कामना भी की

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पंजाब की AAP सरकार का एक साल
पंजाब

AAP सरकार का एक साल, सीएम बोले लोगों की उम्मीदें भरोसे में तब्दील

 

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपनी सरकार का पिछले एक साल में पंजाब के अभूतपूर्व विकास का पहला चरण सफलतापूर्वक मुकम्मल करने का दावा किया। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने वीडियो संदेश में कहा कि हम अपनी  अगली सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों की ख़ुशहाली के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।

अगली सरकार के लिए नहीं, भावी पीढ़ी के लिए कर रहे काम

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपनी सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने पर पंजाबियों के लिए वीडियो संदेश जारी किया। जिसमें उन्होंने कहा कि पिछले साल हुए विधानसभा मतदान के दौरान राज्य के लोगों ने आम आदमी पार्टी के पक्ष में व्यापक जनादेश दिया। उन्होंने बताया कि सरकार की तरफ से लोगों के समूचे विकास एवं ख़ुशहाली के लिए की गई समर्पित कोशिशों से पिछले एक साल के दौरान राज्य क्रांतिकारी परिवर्तनों का गवाह बना है। भगवंत मान ने कहा कि अगली सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ करने वाली पिछली सरकार के विपरीत हमारी सरकार भावी पीढ़ी के समूचे विकास पर ध्यान केन्द्रित कर रही है।

मुख्यमंत्री ने बड़े पैमाने पर जनादेश के साथ-साथ पंजाब की ज़िम्मेदारी सौंपने के लिए लोगों का तह-ए-दिल से धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि लोगों की तरफ से दिखाए भरोसे और प्यार ने उनको अपना फ़र्ज़ प्रभावशाली तरीके से निभाने का मार्ग प्रशस्त किया है। भगवंत मान ने नये पंजाब के खाका तैयार करने के लिए लोगों का और ख़ास तौर पर प्रवासी भारतीयों से सहयोग माँगा।

बादल कैप्टन की नहीं, हर पंजाबी की सरकार

मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब में पहली दफ़ा ऐसी सरकार बनी, जो ख़ास तौर पर राज्य के लोगों के साथ सम्बन्धित है। उन्होंने कहा कि यह सरकार न तो बादल की है और न ही कैप्टन की, यह सरकार हर पंजाबी की है। भगवंत मान ने लोगों को भरोसा दिया कि उनकी आशाओं के मुताबिक राज्य की भलाई यकीनी बनाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जायेगी और जल्दी ही पंजाब नया, प्रगतिशील और गतिशील राज्य बनेगा।

विकास के लिए उद्योगों को रियायतें

मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले साल के दौरान पंजाब व्यापक विकास का गवाह बना है और दूसरे साल में भी विकास एवं तरक्की पर अधिक ज़ोर दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि राज्य में विकास के लिए उद्योग को रियायतें दीं जा रही हैं, जिससे पंजाब आगामी दिनों में औद्योगिक गढ़ के तौर पर उभरेगा। भगवंत मान ने कहा कि राज्य में से नशों को जड़ से उखाड़ने के लिए आगामी दिनों में व्यापक मुहिम शुरु की जाएगी।

नौजवानों के लिए पारदर्शी तरीके से नौकरियां

पिछले एक साल में पंजाब सरकार की तरफ से कई जनहितैषी पहलकदमियां गिनाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने नौजवानों के विदेशों की तरफ जाने के रुझान को रोकने के लिए पिछले एक साल में अब तक 26 हजार 797 सरकारी नौकरियाँ दी हैं। उन्होंने कहा कि इस समूची भर्ती प्रक्रिया में एकमात्र मापदंड योग्यता रखा गया है और यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तरीके के साथ सम्पूर्ण की जा रही है। भगवंत मान ने कहा कि सिर्फ़ एक साल में ही इतनी बड़ी संख्या में नौकरियाँ देने से राज्य सरकार की रोज़गार के मौके मुहैया करके नौजवानों की भलाई यकीनी बनाने की वचनबद्धता झलकती है।

मुफ्त बिजली देने का वादा पूरा

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आगे कहा कि राज्य सरकार ने पहली जुलाई से हर महीने 300 यूनिट मुफ़्त बिजली देने की गारंटी पूरी की है। उन्होंने कहा कि यह गौरव की बात है कि नवंबर-दिसंबर 2022 में राज्य के 87 प्रतिशत घरों में बिजली का बिल ज़ीरो आया। भगवंत मान ने कहा कि वह आम परिवार से सम्बन्धित हैं और वह आम लोगों को आ रही समस्याओं से भलीभाँति परिचित हैं।

किसानों को 30 हज़ार रुपए प्रति एकड़ अतिरिक्त आमदनी

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने 14 हज़ार आरज़ी कर्मचारियों की सेवाओं को रेगुलर किया है और कैबिनेट ने इतनी संख्या में ही और मुलाजिमों की सेवाएं रेगुलर करने की मंज़ूरी दी है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने किसानों को गेहूँ और धान के फ़सली चक्र में से निकालने और भूजल बचाने के लिए मूँगी को तीसरी फ़सल के तौर पर उत्साहित किया है। भगवंत मान ने कहा कि मूँगी की 7275 रुपए के प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गई है, जिससे किसानों को 30 हज़ार रुपए प्रति एकड़ की अतिरिक्त आमदनी हुई है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने धान की सीधी बुवाई को उत्साहित करने के लिए किसानों को 1500 रुपए प्रति एकड़ की दर के साथ वित्तीय सहायता मुहैया की है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने गन्ना उत्पादकों के पिछले सालों के लटकते सभी बकायों का भुगतान कर दिया है। भगवंत मान ने यह भी कहा कि मेरी सरकार ने पहली बार दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों के मेहनतानों में विस्तार किया है।

दिल्ली की तर्ज पर आम आदमी क्लीनिक खोले

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि राज्य सरकार ने लोगों को मानक सेहत सेवाएं देने के लिए पंजाब भर में 500 से अधिक आम आदमी क्लीनिक खोले हैं। यह क्लीनिक लोगों को मानक इलाज और डाईगनौस्टिक सेवाएं मुफ़्त मुहैया करवा रहे हैं। भगवंत मान ने कहा कि सिर्फ़ कुछ महीनों में ही इन आम आदमी क्लीनिकों से 12 से 15 लाख मरीज़ों को लाभ मिला है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चों को मानक शिक्षा देने के लिए 23 जिलों में 117 स्कूल आफ एमिनेंस स्थापित किये गए हैं। भगवंत मान ने कहा कि यह स्कूल विद्यार्थियों को भविष्य की मुकाबले वाली परीक्षाओं के लिए तैयार करेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य के समूचे विकास के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जायेगी और वह दिन दूर नहीं, जब पंजाब की पुरातन शान बहाल होगी।

बेअदबी के दोषियों को सज़ा देने की अपनी सरकार की वचनबद्धता दोहराते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पहला मौका है, जब राज्य सरकार ने इस दिशा में कदम उठाया है। उन्होंने बताया कि इन मामलों में इंसाफ़ बहुत दूर नहीं क्योंकि दोषियों को सख़्त से सख़्त सज़ा दिलाने के लिए अदालत में पहले ही चालान पेश किया जा चुका है। भगवंत मान ने कहा कि वह दिन अब दूर नहीं, जब इस घृणित जुर्म के दोषी सलाखों के पीछे होंगे

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पंजाब पराली प्रबंधन
पंजाब

पंजाब में पराली प्रबंधन के लिए एक्स-सीटू प्रबंधों को मिला बढ़ावा

 

धान की पराली के सुचारू प्रबंधन के लिए पंजाब द्वारा किए जा रहे एक्स-सीटू प्रबंधों को बढ़ावा मिला है। जिससे  धान की पराली आधारित थर्मल पावर प्लांट्स को पराली राज्य के भीतर ही उपलब्ध हो जाएगी और खुले खेतों में धान की पराली को जलाने के मामलों में कमी आएगी।

दरअसल पंजाब के मुख्यमंत्री श्री भगवंत मान द्वारा धान की पराली के सुचारू प्रबंधन के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए जा रहे एक्स-सीटू प्रबंधों को बढ़ावा मिला है। बोर्ड के प्रयासों के स्वरूप एक औद्योगिक इकाई को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा धान की पराली के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए पेलेटाइजेशन और टॉरफेक्शन प्लांट की स्थापना के लिए पर्यावरण संरक्षण शुल्क फंड के अंतर्गत एक बार वित्तीय सहायता देने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। 

विज्ञान, प्रौद्यौगिकी एवं पर्यावरण मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर ने जारी प्रैस बयान में कहा कि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उद्यमियों और मौजूदा औद्योगिक इकाईयों को राज्य में धान की पराली का अधिक से अधिक प्रयोग करने को प्रोत्साहित करने के लिए धान की पराली आधारित पेलेटाइजेशन और टॉरफेक्शन प्लांट लगाने के लिए प्रेरित किया गया है। बोर्डों के निरंतर और गंभीर प्रयासों के स्वरूप पंजाब की तीन औद्योगिक इकाईयों ने केंद्रीय बोर्ड द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अंतर्गत वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए बोर्ड के पोर्टल पर आवेदन किया है।

आवेदन के तहत तीन इकाईयों में से बोर्ड की सिफ़ारशों पर मैसर्ज ए.बी. फ्यूल्स गाँव ढैपयी, भीखली (जि़ला) को 3 टीपीएच की क्षमता वाले धान की पराली आधारित टॉरफेक्शन प्लांट स्थापित करने के लिए केंद्रीय बोर्ड से 81 लाख 85 हजार 805 रुपए की वित्तीय सहायता सफलतापूर्वक प्राप्त हुई है, जो उद्योग की कुल लागत (2 करोड़ 4 लाख 64 हजार 513 रुपए) का 40 प्रतिशत है। 

मीत हेयर ने आगे बताया कि धान की पराली के इस एक्स-सीटू प्रबंधन और राज्य में ऐसी इकाईयों की स्थापना से धान की पराली आधारित थर्मल पावर प्लांट्स को पराली अधारित राज्य के भीतर ही उपलब्ध हो जाएगी और खुले खेतों में धान की पराली को जलाने के मामलों में कमी आएगी। ऐसे पैलेटाइजेशन/टॉरफेक्शन प्लांट्स की स्थापना और वित्तीय सहायता प्रदान करने से उद्यमियों और मौजूदा औद्योगिक इकाईयों को प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे राज्य में पैदा हो रही धान की पराली के प्रयोग में काफ़ी वृद्धि होगी

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चरखा फीचर्स

उन्नत स्वास्थ्य केंद्र के बिना सेहतमंद गांव की कल्पना संभव नहीं

 

किसी भी राष्ट्र की समृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि वहां के निवासी कितने सेहतमंद हैं? क्योंकि सेहत अच्छी होगी, तो शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होगा। केंद्रीय बजट वर्ष 2023-24 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 89,155 करोड़ रुपए आवंटित किए गए, जो पिछले बजट से 13 प्रतिशत अधिक है। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2020 के अनुसार देश में 157921 उप-स्वास्थ्य केंद्र, 30813 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 5649 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 1193 अनुमंडलीय अस्पताल और 810 जिला अस्पताल हैं। आरएचएस के अनुसार देशभर में क्रमशः 24 प्रतिशत एससी, 29 प्रतिशत पीएचसी व 38 प्रतिशत सीएचसी की कमी बताई गई है। वर्तमान में 10423 पीएचसी है जो सप्ताह में 24 घंटे सेवाएं दे रहे हैं। बात आती है कि इतने स्वास्थ्य केंद्र होने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में अवस्थित उप-स्वास्थ्य केंद्रों का हाल बुरा क्यों है? क्या जर्जर, अभावग्रस्त, निष्क्रिय और मृतप्रायः उप-स्वास्थ्य केंद्र के भरोसे ग्रामीणों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है?

सच तो यह है कि इन उप स्वास्थ्य केंद्रों पर केवल टीकाकरण और किसी विशेष अवसरों पर कागजी खानापूर्ति के लिए नर्स या स्वास्थ्य सेवक उपस्थित होते हैं। बाकी दिनों में यह उप स्वास्थ्य केंद्र पूरी तरह से ठप रहता है। न चिकित्सक और न कोई सुविधा रहती है। ग्रामीण झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाकर सेहत व पैसे बर्बाद करते हैं। कभी-कभार झोलाछाप डाॅक्टरों के चक्कर में जान भी गंवानी पड़ती है। प्रखंड स्थित पीएचसी जाने के लिए ग्रामीणों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। यह जरूर है कि प्रसव व परिवार नियोजन हेतु प्रखंड स्तर पर सरकार की अच्छी व्यवस्था है। जहां जाकर बच्चा-जच्चा दोनों ही सुरक्षित व स्वस्थ होकर घर लौटते हैं। एंबुलेंस की सुविधा होती है। आशा दीदी भी गर्भवती महिलाओं की सेहत की सुरक्षा के बारे में घर-घर जाकर जानकारियां देती हैं। लेकिन संचालन के तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे कई स्वास्थ्य केंद्र केवल दिखावा से अधिक कुछ नहीं है।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पश्चिमी दियारा के लोगों का स्वास्थ्य भी भगवान भरोसे है। ज़िले के साहेबगंज और पारु प्रखंड स्थित चांदकेवारी, धरफरी, मुहब्बतपुर, चक्की सुहागपुर, फतेहाबाद पंचायत सहित रेवाघाट के किनारे बसे हजारों लोगों को इलाज के लिए प्रखंड स्थित पीएचसी जाने के लिए 15-20 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यदि पीएचसी में किसी कारण से इलाज नहीं हुआ तो उन्हें जिले के किसी निजी अस्पताल के महंगे डाॅक्टरों से अपना इलाज कराना पड़ता है। पारू प्रखंड स्थित पीएचसी में एक्सरे व अल्ट्रासाउंड की सुविधा बिल्कुल भी नहीं है। आखिरकार लोगों को निजी जांच घरों में जाकर जांच करानी पड़ती है। दवा के लिए भी निजी दुकान पर ही जाना पड़ता है। कुल मिलाकर ग्रामीणों को प्राइवेट नर्सिंग होम के खर्चे लग ही जाते हैं।

इस संबंध में चांदकेवारी पंचायत के निवासी सिपाही भक्त कहते हैं कि आयुष्मान कार्ड रहते हुए भी केवल इस वजह से शहर की ओर रूख करना पड़ता है क्योंकि गांव के स्वास्थ्य केंद्र में सुविधा नाममात्र की होती है। शहर के अस्पतालों में भी कार्ड से सभी बीमारियों का इलाज नहीं होता है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाली ललपरिया देवी (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि ब्लॉक पीएचसी जाने के लिए बस या ऑटो के बहुत खर्चे लगते हैं। किराये के पैसे से दवाखाने से ही दवा लेकर काम चला लेती हूं। यदि गांव में उप स्वास्थ्य केंद्र में इलाज हो जाता तो पैसे बच जाते। एक अन्य ग्रामीण पंकज कुमार कहते हैं कि उप स्वास्थ्य केंद्र से गांव के लोगों को कोई फायदा नहीं है।

हमें शहर के निजी डाॅक्टरों या आपातकालीन सेवा के लिए प्राइवेट अस्पताल की शरण में जाना ही पड़ता है जिससे भारी रकम चुकानी पड़ती है। निजी डाॅक्टर की फीस और जांच के लिए पैसे जुटाने में ग्रामीणों को गांव के साहूकार से 5 प्रतिशत ब्याज की दर पर कर्ज लेना पड़ता है। कई लोग तो बीमारी का उचित चिकित्सा नहीं होने की वजह से असमय ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। सुखद बात यह है कि जिले के पारू ब्लाॅक के धूमनगर में ठप पड़े पीएचसी का जीर्णोंधार और दवा-चिकित्सक की व्यवस्था हुई है। जहां सप्ताह में दो दिन पीएचसी में डॉक्टर और नर्स मौजूद रहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि पीएचसी का संचालन नियमित होना चाहिए, ताकि दूर-दराज के निर्धन व बेबस लोगों का इलाज हो सके।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना जनसंख्या के अनुसार है। प्रति 5000 जनसंख्या पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने का प्रावधान है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 30000, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 120000 जनसंख्या एवं पहाड़ी/मरुस्थलीय क्षेत्रों के चयनित जिले के लिए बस्ती से पैदल 30 मिनट के भीतर देखभाल के लिए समय के आधार पर एक एसएचसी स्थापित करने का नया मानदंड तय किया हुआ है। पीएचसी का कार्य- चिकित्सा का प्रावधान, जनता को स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना, संग्रह और आंकड़ों की रिपोर्टिंग करना, मातृ-शिशु स्वास्थ्य की देखभाल, परिवार नियोजन, स्थानीय रोगों की रोकथाम व नियंत्रण, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों का संचालन, रेफरल सेवाएं, बुनियादी जांच, मोबाइल स्वास्थ्य सेवा के जरिए लोगों की चिकित्सा, स्वच्छता, महामारी की रोकथाम के लिए जागरूकता आदि दायित्व का निर्वहन करना अनिवार्य होता है।

हेल्थ इंडेक्स के मुताबिक स्वास्थ्य के मामले में बिहार और उत्तर प्रदेश का सबसे अधिक बुरा हाल है। इंडेक्स में 20वें एवं 21वें स्थान पर बिहार व उप्र हैं जबकि शीर्ष तीन राज्यों में केरल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र हैं। साफ तौर पर कहा जा सकता है कि भारत में स्वास्थ्य के मामले में अभी और काम करने की जरूरत है। बिहार में 10 मोबाइल हेल्थ क्लीनिक शुरू किया गया है। जिसमें 3 को महिला स्वास्थ्य सेवा के लिए तैयार किया गया है। मोबाइल हेल्थ क्लीनिक की सेवा एक सराहनीय कदम है, परंतु गरीबी व पिछड़ेपन का दंश झेलने वाले राज्यों के लिए अधिकाधिक मोबाइल हेल्थ क्लीनिक शुरू करना बेहद आवश्यक है ताकि घर-घर लोगों को स्वास्थ्य सेवा मिल सके।

बहरहाल, ग्रामीण भारत की सेहत व सुरक्षा की जवाबदेही पीएचसी की अधिक है। यदि उप-स्वास्थ्य केंद्रों को सुविधाओं से लैस कर दिया जाए, तो निःसंदेह आम नागरिकों की सेहत सुधर जाएगी। गांव-गांव सरकारी चिकित्सकों को केंद्र पर सेवा मुहैया कराया जाए। ग्रामीणों को रोग होने के कारण व निवारण से अवगत कराया जाए तो निश्चित रूप से लोग स्वस्थ और आनंद भरी जिंदगी गुजारेंगे। स्थानीय स्तर पर भी जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों व समाजसेवियों को उपयुक्त स्वास्थ्य सेवा मुहैया करने के लिए आगे आना चाहिए। आम आदमी स्वस्थ होग तो देश खुशहाल होगा और व्यक्ति की कमाई के एक बड़े हिस्से की बचत होगी। (चरखा फीचर)

रिमझिम कुमारी

मुजफ्फरपुर, बिहार

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समाज

चरवाहा घुमंतू समाज का संकट

 

पशु आदिम अवस्था से ही मनुष्य का सहयात्री रहा, कभी आखेटक के शिकार के रूप में तो कभी पोषण करने वाला पालतू पशु बनकर। आदिम समय से मनुष्य ने पशुओं की उपयोगिता के आधार पर उसे पालतू बनाकर उनसे सहयोग लिया और उसकी सहायता से कठिन और खूंखार जानवरों का शिकार कर अपनी सुरक्षा और खाद्य संबंधी जरूरतों को पूरा किया। इस प्रकार आखेटक आदिम समाज द्वारा पाले जाने पशुओं के साथ धीरे धीरे चरवाही संस्कृति का भी विकास होने लगा। विभिन्न जलवायुविक दशा में रहने वाले लोगों ने अपनी अपनी क्षेत्रिय उपलब्धता के आधार पर पशु पालन आरंभ किया। इस क्रम में बकरी को सबसे पहले पालतू बनाया गया। बकरी को अज भी कहा जाता है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि हिरण्यगर्भ जब सृष्टि के आदि में भण् की आवाज के साथ फूटा तो उससे अज की उत्पत्ति हुई और जो रस पानी में जा मिला उससे रासभ (गधा) पैदा हुआ।

गाय से पहले अज यानी बकरी को पालतू बनाया गया। इसके पर्याप्त प्रमाण हमारे प्राचीन ग्रंथों में मौजूद है। भारतीय संस्कृति में देवताओं के वाहन से लेकर पशुबलि के लिए बकरे के उपयोग की परंपरा रहीं है। इतना ही नहीं पौष्टिक दूध धी के लिए भी बकरी पालने की परंपरा थी। इस तरह पशु का अर्थ था पोषण का स्रोत अथवा पोषण देकर रखा जाने वाला जानवर। जो दक्षिण की कुछ भाषाओं में गाय के लिए रूढ़ हो गया और मृग शब्द उन जंगली जानवरों के लिए प्रयोग किया जाता था जिनका शिकार किया जा सके जो आगे चलकर हिरण के लिए प्रयोग किया जाने लगा। हिरण और पशु शब्द कृषि संस्कृति की आवश्यकता से निकले हुए शब्द हैं।

हिरण कृषि के लिए शत्रु थे जो खेतों को नुकसान पहुंचाते थे जिन्हें मारना पुण्य का काम था। रामकथा में स्वर्णमृग का मिथक इसका सुंदर उदाहरण है। इसी प्रकार गोपालक जिन्हें ऋगवेद में याद्व: पशु अर्थात यादवों का पशु कहा गया है। यादववंशी कृष्ण को गायों और पाडंव पुत्र नकुल, सहदेव घोड़ों और गायों के कुशल चिकित्सक माने जाते थे। इस प्रकार के तमाम उदाहरण पशुपालन की समृद्ध परंपरा के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

 आदिम समाज में पशु और उससे प्राप्त होने वाले विभिन्न उत्पाद आहार, वाहन आदि के मुख्य स्रोत होते थे। ज्ञात हो कि अत्याधिक शिकार के कारण जब आदिम समाज की खाद्य संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति पर संकट गहराने लगा और पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने लगा था तब वन्य प्राणियों की जैव प्रजाति समाप्त होने के खतरे को देखकर आदिम मनुष्य ने खेती करना शुरू किया और यहीं से विकास का अगला चरण शुरू हुआ। कृषि संस्कृति के विकसित होने तक आहारसंग्रहक समुदायों और पशुचारकों को निरंतर अपने उदरपूर्ति के लिए स्थान बदलना पड़ता था लेकिन जब आदिम समाज खेती करने लगा तब एक बड़ा समूह धीरे धीरे स्थायी रूप से गांवों में बसने लगे।

कृषि के आविष्कार के बाद मनुष्य के भोजन में मांस के साथ साथ अनाज ने भी अपना स्थान बना लिया। इस प्रकार समाज कृषि और आहार संग्रहक समाज के रूप में बंटने लगा। विकास के क्रमिक सोपानों को तय करता हुआ मनुष्य खाद्य संग्रहक से पशुचारक और पशुचारक से कृषि संस्कृति में प्रवेश करते हुए धीरे धीरे नगरीकरण की ओर बढ़ने लगा। और कृषि कार्य के लाभों को देखते हुए कृषि योग्य भूमि पर कृषकों का आधिपत्य बढ़ने लगा। अन्न उपजाने वाला कृषक भौतिक सुविधाओं से संपन्न होने लगा और धीरे धीरे गांव नगरों में तबदील होने लगे।

खेती करने वाला खेतों का मालिक कहलाता और अन्न के बदले धन और दूसरी वस्तुओं को सहजता से प्राप्त कर लेता जबकि पशुपालकों व चरवाहों के पास खेती की जमीन न होने के कारण अन्न और चारे के लिए उसकी निर्भरता किसानों पर बढ़ने लगी। इधर अन्न के बदले धन और दूसरी उपयोगी वस्तुओं के साथ साथ खेतों के खाद के लिए किसानों और पशुपालकों के बीच अलिखित समझौते के अधीन दोनों एक दूसरे की आवश्यकताओं का सम्मान करने लगें। आधुनिक तकनीकों और रासायनिक खादों के कारण खेती के लिए पशुओं की निर्भरता खत्म होने के बाद भी दूध घी, मांस, ऊन जैसी अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए आज भी कृषि समाज व नागरी समाज पशुपालक समाज पर आश्रित है लेकिन बढ़ती जनसंख्या के कारण खाली परती जमीनों पर किसानों का एकाधिकार होने के बाद पशुपालकों के समक्ष पशुओं के खाद्य संकट उत्पन्न होने के कारण पशुपालन कृषि कार्यों की तुलना में महंगा व श्रमसाध्य कार्य बनता गया। आदिम समाज में पशुपालन कृषि कर्म के समान ही लाभकारी था।

माना जाता है कि बड़ी संख्या में पशुपालक हिंद, ईरानी सीमाओं को पार करके पशुओं के लिए हरित घास के मैदानों के निकट बसने लगें। 1000- 500 ईं पू. सिंधु और गंगा के बीच तथा गंगा और यमुना के बीच स्थानांतरित होकर बसने वाले समुदाय ने खेतीबाड़ी का काम शुरू किया। इसलिए कृषि समुदाय का उदय मध्य गंगा के घने जंगलों से भरे अति उर्वर मैदानों में हुआ था।

यानि 1500 से 1000 ई.पू. ही आदिम समाज कृषि और पशुपालन के कार्यों से जुड़ चुका था। स्थायी रूप से कृषि करने वाला समाज अपनी जरूरत के लिए पशुपालन भी करने लगा था। पशु न सिर्फ खाद्य पदार्थों के स्रोत थे बल्कि दुग्ध उत्पादों के भी। कृषि द्वारा आसानी से चारा उपलब्ध होने के कारण पशुपालन का विस्तार हुआ। जो स्थायी रूप से नही बसे थे वे खेती करने वालों की सहमति से अपने पशुओं के लिए चारागाह की भूमि प्राप्त करके पशुपालन का कार्य करने लगे और पशुपालक समाज जो खेती नही करता था धुमंतु के रूप में आवश्यक वस्तुओं का व्यापार करते हुए खानाबदोश समाज के रूप में जाना जाता था।

कृषक समाज में भी पशुओं को सम्पत्ति मानकर पशुधन के रूप में इसका विनिमय किया जाता था। धुमंतु पशुपालक समाज अपने पशुओं के लिए चारे की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर निरंतर भ्रमण करते हुए जीवनयापन करते थे और दैनिक जीवन की वस्तुओं का व्यापार कृषि समाजों के साथ करते थे। ऐसे में ऋतु प्रवास यानि जलवायु के अनुसार देशान्तर करने वाले पशुचारको का समूह हर नए स्थान पर अपनी आवश्यकताओं के लिए खेती, चारे की भूमि व पानी को लेकर स्थानीय कृषि समाजों से विवाद होना स्वाभाविक था।

लेकिन अद्भुत बात यह है कि तमाम संघर्षों के बाद भी कृषक समाज और पशुचारण समाज एक दूसरे के पूरक थे इसलिए दोनों समाजों का विकास स्थानीय व पर्यावरणीय अनुकुलता के आधार पर हुआ जैसे जिन स्थानों पर वर्षा अधिक होती है वहाँ पशुपालन की ओर ध्यान नहीं दिया गया। जल बहुल वाले स्थानों पर पशुओं के खाने योग्य घास की उपलब्धता न होने के कारण वहाँ चरवाह समाज की तुलना में कृषि समाज का विकास दिखाई देता है। असम, मेघालय में बिना हल की खेती करने की परंपरा इस बात को सिद्ध करती है। पूर्वोत्तर भारत में खेती की और अधिक ध्यान दिया गया इसलिए आज भी वहाँ पशुपालन मांस के लिए किया जाता है। जबकि पश्चिमी भारत में राजस्थान, गुजरात जैसे शुष्क क्षेत्र पशुपालन के लिए उपयुक्त रहे है इसलिए यहाँ पशु मेलों की परंपरा चरवाह संस्कृति के अदिम प्रतीक है।

भारतीय समाज में पशु पालन के अनुपम उदाहण देखे जा सकते है। यहाँ कृषि कार्य और दूध, धी की प्राप्ति के लिए बड़ी संख्या में पशुओं को पालने की परंपरा रही है। भारत में पशु पालन सिर्फ खाद्य आवश्यकताओं के लिए ही नहीं बल्कि अपितु अपनी सुरक्षा और मनोरंजन के लिए भी इन्हें पालने की परंपरा आदिम युग से ही देखी जा सकती है जैसे भालु, बंदर, हाथी, हिरन, तौता मैना सांप आदि। इन्हें पालने वाले अपनी अपनी विशेषज्ञता के कारण अलग अलग समूहों में बंटते चले गए जैसे गाय पालने और चराने वाले ग्वाले कहलाए, भेड़ और बकरी पालने वाले गडरिये इसी तरह सांप पकडने वाले सपेरे और बंदर भालू रखने वाले मदारी हाथी रखने वाले महावत जैसे अलग अलग समूह पशुपालकों का विभाजन होता चला गया। आदिम समाज में पशु पालन के अतिरिक्त उनकी चिकित्सा संबंधी व्यवस्था आश्चर्यचकित करती है।

संसार के इतिहास में घोड़े पर प्रथम पुस्तक शालिहोत्रसंहिता लिखने का श्रेय शालिहोत्र को जाता है जो स्वयं पशु चिकित्सक भी थे। इसी प्रकार पालकाप्य मुनि ने हस्तयायुर्वेद लिखा जिसमें हाथी के पालन पोषण व चिकित्सा का विस्तार से वर्णन किया। – अग्नि पुराण में इन दोनों चिकित्सकों का उल्लेख आता है। अग्निदेव वशिष्ट को बताते है कि शालिहोत्र ने सुश्रुत को अश्वायुर्वेद और पाल्काप्यने अंगराज को गवायुर्वेद का उपदेश दिया – शालिहोत्र: सुश्रुताय हयायुवेर्दमुक्तवान पालकोप्योउंगराजाय गजायुर्वेदमब्रवीत। ऋग्वैदिक काल में पशुपालन अच्छी तरह से विकसित था और गाय (कामधेनु) की उपयोगिता को जानने के बाद उस की पूजा की जाने लगी। वैदिक ऋषियों ने गायों के संरक्षण पर बहुत बल दिया। ऋग्वेद मवेशियों और उनके प्रबंधन के संदर्भों से भरा पड़ा है।

प्राचीन समय में कृषि समाज और चरवाहा समाज एक दूसरे पर आश्रित समाज होकर भी स्वयं में आत्मनिर्भर समाज था। कृषि फसलों की कटाई के बाद फसलों के ठूठो को चरने के लिए पशु चारको की जरूरत पड़ती और पशु चारको को अपने पशुओं के चारे के लिए कृषि समाजों से मेलजोल रखना उनकी जरूरत रही। इस प्रकार दोनो की जरूरतों के विनिमय के कारण कृषि संस्कृति और चरवाहा संस्कृति आदिम समाज के विकास के महत्वपूर्ण घटक माने जातें हैं। लेकिन विकास और एकाधिकार की स्वार्थवादिता के कारण दोनों समाजो ने एक दूसरे की आवश्यकता की अवेहलना करनी शुरू की। गांव में जो परती जमीनें थीं, उन्हें चारागाह में तब्दील करने के बजाय पट्टे पर दे दिया गया। अब गांवों में सार्वजनिक जमीनें बची ही नहीं, जहाँ जानवरों को चराया जा सके।

 

चारागाह खत्म हुए, तो चरवाही खत्म हो गई और उसी के साथ पशुओं को पालने की संस्कृति भी खत्म हो गई और परिणाम यह हुआ कि पशुपालक कृषि संस्कृति के विकास की दौड़ में पीछे छूटकर हाशिये का समाज बनकर रह गए। पशुपालक समाज में गड़रिया जिनका मुख्य व्यवसाय गाय, भेड़, बकरी को पालना था, अब धीरे धीरे चारागाह की कमी के कारण अपने पारंपरिक कामों को छोड़कर दूसरें व्यवसायों से जुड़ने लगे हैं l क्षेत्रियता के आधार पर इन्हें विभिन्न नामो से जाना जाता है जैसे – पाल, बघेल, धनगर आदि। गड़रिया धनगर धनगढ़ जाति एक आदिम पशुपालक जाति है। जिसका मूल व्यवसाय भेंड़ पालन करना एवं कम्बल बुनना है। प्राचीन समय से ही यह जाति खानाबदोश की तरह भेंड़ पालन का कार्य करते थे।

धीरे धीरे समय परिवर्तन के साथ-साथ गांवों नगरों में बसते चले गए। इसी प्रकार गुज्जर बकरवाल जम्मू और कश्मीर के पहाड़ों में रहने वाला पशुपालक समाज हैं। ये भेड़ बकरी पालते हैं। प्रति वर्ष जाड़े में जब पहाड़ों पर बर्फ जम जाती है तो ये लोग शिवालिक की निचली पहाड़ियों में चले जाते हैं ताकि उनके मवेशियों को चारा मिल सके। अप्रैल के महीने में जब गर्मी शुरु हो जाती है तो ये वापस ऊँचे पहाड़ों पर चले जाते हैं। हिमाचल के गद्दी जाड़े में शिवालिक के निचले इलाकों में रहते है। हिमालय में रहने वाले अन्य चरवाहे समुदायों के नाम हैं भोटिया, शेरपा और किन्नौरी भी आते है। ये चरवाहे भी जाड़े में पहाड़ों से उत्तर कर मैदानी भागों में चले जाते है ताकि उनके पशुओं को खाने के लिए चारा मिलता रहे।

मैदानी और पहाड़ी समाजों की आपसदारी एक दूसरें का संबल थी। कृषक समाज पशुपालकों के महत्व को समझते थे इसलिए महाराष्ट्र कोंकण के किसान धान की कटाई करने के बाद खेतों में फसल के ठूँठ को चरने के लिए धनकर चरवाहों को बुलाते थे। पशुपालकों के पशु खेतों में बचे ठूँठ को खाकर खेत की सफाई कर देते थे और अपने गोबर से खेतों की उर्वरता को भी बढ़ा देते थे। बदले में ये चरवाहे कोंकण के किसानों से चावल ले लेते थे क्योंकि पठारों में चावल की सहज उपलब्धता नही होती थी।

इसी प्रकार राजस्थान के राइका और देवासी चरवाहे भेड़ और ऊँट पालते है। ऊंट के बारें में मान्यता है कि इसे सबसे बाद में पालतू जानवर बनाया गया। जबकि ऊंटगाड़ी का उल्लेख ऋग्वेद के आठवें मंडल में मिलता है। रेगिस्तान का जहाज कहा जाने वाले ऊंट राइका (जिसे गुजरात में रेवारी के नाम से जाना जाता है ) लोगों के लिए जीवनरेखा का काम करता हैं। जिसकी पीठ पर अपनी जरूरत का सारा समान लाटकर मीलों इस पर सवारी करते हैं हुए जीवन गुजार देतें हैं।

ऊंटों को राजस्थान लाने का श्रेय पाबूजी महाराज जाता है इसलिए इन्हें ऊंटों का देवता कहा जाता है। राइका समाज के लोकदेवता अपने ऊंटों की कुशलता के लिए पाबूंजी महाराज को पूजते हैं। यह उनके लोकदेवता हैं। रेवारी और राइका समुदाय को भूगोल और मौसम का अच्छा ज्ञान होता है। यह समुदाय मानसून के दौरान बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के गाँवों में ही रहते है क्योंकि इस समय वहाँ चारा उपलब्ध रहता है। अक्तूबर माह में पशुओं के चारे और पानी की तलाश में इन्हें भी बाहर निकलना पड़ता है।

 कुल मिलाकर कृषि और पशुपालक समाज एक दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए अपनी अपनी जीवन शैली के कारण एक दूसरे से अलग दिखते हुए भी अभिन्न समाज थे लेकिन विकास की आंधी ने एक दूसरे की अभिन्नता को एक दूसरे से अलगाव का कारण बना दिया। आज खेती बाड़ी की आधुनिक मशीनों और जैविक खाद की उपलब्धता ने पशुचारकों की उपयोगिता को समाप्त कर दिया है। पशुओं के लिए संकुचित होती चरागाह भूमि देखकर पता चलता है कि चरवाहों का जीवन मानव जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधनों और पशु आबादी के संतुलन पर निर्भर करता है। विकास की तेज गाति में मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अनावश्यक दोहन और बढ़ती आबादी के कारण खत्म होती चरागाह भूमि जैसे संकटों के कारण आज पशुपालकों और चरवाहे अपने जीविकापार्जन के लिए पारंपरिक कामों को छोड़कर दूसरे कार्य करने के लिए विवश हो रहें हैं

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