पर्यावरण

भारी तपिश में विलम्बित मॉनसून – राजकुमार कुम्भज

 

  • राजकुमार कुम्भज

 

मॉनसून को लेकर भारतीय मौसम विभाग द्वारा जारी किया गया पूर्वानुमान आ चुका है। मौसम का पूर्वानुमान बताने वाली निजी कंपनी स्काईमेट का भी आकलन आ गया है। दोनों ने ही कहा है कि इस बार मॉनसून अपनी सामान्य तारीख़ पर न आते हुए कुछ देर से ही आएगा। सामान्यतः मॉनसून प्रतिवर्ष एक जून को केरल तट से टकराता है और मई के अन्तिम सप्ताह तक मॉनसूनपूर्व की बारिश शुरू हो जाती है, किन्तु इस बार यह सब अभी तक विलंबित है। फिर भी इस बरस मॉनसूनपूर्व की बारिश अच्छी रहने की संभावना व्यक्त की गयी है, जबकि देश के कई हिस्सों में, कृषि के लिए महत्वपूर्ण, मॉनसून पूर्व की बारिश में कुल बाईस फ़ीसदी की कमी दर्ज़ की जा चुकी है। इससे जाहिर होता है कि मॉनसून के आगे-पीछे खिसकने की प्रबल गुंजाईश बनती है। भारी तपिश में विलंबित मॉनसून का होना, सुखद कैसे कहा जा सकता है?

स्काईमेट और भारतीय मौसम विभाग दोनों ही इस आकलन से सहमत हैं कि इस बरस बारिश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है; क्येंकि मॉनसून अपेक्षाकृत कमज़ोर रह सकता है। मॉनसूनपूर्व की बारिश, देश के कुछ हिस्सों में बाग़वानी फ़सलों के लिए बेहद महत्वूपर्ण होती है, जबकि ओड़िसा जैसे राज्यों में खेतों की जुताई और देश के पूर्वोत्तर हिस्सों तथा पश्चिमी घाट में फ़सल-रोपण के लिए यही समय ख़ास होता है। इन इलाक़ों में मॉनसूनपूर्व की बारिश तक़रीबन सत्ताईस फ़ीसदी कम दर्ज़ हुई है।

मौसम विभाग के चार मौसमी संभागों के दक्षिणी प्रायद्वीप में मॉनसूनपूर्व की बारिश 46 फ़ीसदी कम हुई है, जो कि देश में रिकॉर्ड सबसे अधिक कम है। इसके बाद उत्तर-पश्चिम उप-संभाग आता है। इस उप-संभाग में सभी उत्तर भारतीय राज्य आते हैं। जहाँ मॉनसूनपूर्व की बारिश 30 फ़ीसदी कम रही। वहीं देश के मध्य क्षेत्र (महाराष्ट्र, गोवा, छत्तीसगढ़, गुजरात और मध्यप्रदेश) में मार्च से मई तक मॉनसूनपूर्व की बारिश में कोई कमी दर्ज़ नहीं की गयी। इसका मतलब ये हुआ कि मॉनसून के देरी से आने का असर दक्षिण भारत तक ही सीमित रहने के आसार है। मॉनसून जरूर देर से आएगा और शायद इस बार बारिश भी कम होगी, लेकिन उत्तर भारत अप्रभावित बना रहेगा। यहाँ यह तथ्य भी ध्यान में रखा जा सकता है कि मॉनसून में देरी या जल्दी का, मॉनसून की प्रगति से अब तक कोई भी सीधा सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सका है। मॉनसून में देरी या जल्दी के बावजूद देश में बारिश कम या ज़्यादा होती रही है। 

 

तकनीक और विज्ञान के विकास ने मौसम विभाग को किसी एक हद तक आधुनिकता प्रदान कर दी है और अब उसकी मौसम सम्बन्धित भविष्यवाणियाँ भी किसी एक हद तक प्रामाणिक होने लगी हैं, जबकि अभी कुछ बरस पहले तक उसके पूर्वानुमान व्यापक जन-उकेरल, पहास का ही विषय बनते रहते थे। अब भारत में गर्मियों के दौरान मॉनसून की बारिश और अटलांटिक समुद्री सतह के तापमान में विसंगितयों के बीच परस्पर सम्बन्ध बढ़ रहा है। ज़ाहिर है कि इससे भारतीय मॉनसून के संदर्भ में ज़्यादा सटीक अनुमान की संभावनाएं बढेंगी। उक्त दावा अबुधाबी स्थित भारतीय मौसम वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में किया गया है।

एक वैज्ञानिक हवाले के मुताबिक़ एशिया में मॉनसून की स्थिति लगातार कमज़ोर होती जा रही है। पिछले तक़रीबन अस्सी वर्षों के दौरान मॉनसून के मौसम में लगातार कम बारिश हुई है। इस वज़ह से भारत में जल की उपलब्धता, पारिस्थतिकी और कृषि-कार्यो पर गहरा असर पड़ा है। अमेरिका स्थित एरिजोना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया है कि पिछले तक़रीबन साढे चार सौ बरस के दौरान, बारिश में अभूतपूर्व गिरावट का कारण वायु-प्रदुषण है। ’जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’ नामक पत्रिका में प्रकाषित अध्ययन में विस्तार से  बताया गया है कि वर्ष 1566 में एशिया का मॉनसून कैसा था और वर्ष 1940 के बाद से कैसे सबसे ज़्यादा कमज़ोर हो रहा है। मॉनसून में आ रही लगातार गिरावट के पीछे औद्योगिक विकास तथा चीन सहित समस्त उत्तरी गोलार्द्ध में एयरोसोल नामक तरल और ठोस कणों का उत्सर्जन ही बड़ी वज़ह है।

केरल पहुँचने के बाद मॉनसून को उत्तर की तरफ़ बढ़ाने के लिए कई कारक ज़िम्मेदार होते हैं। इसमें स्थानीय स्तर पर, कम वायु दबाव का क्षेत्र बनना भी शामिल है। अगर स्थानीय कारक मज़बूत होते हैं तो देरी से पहुँचने के बाद भी देश के अन्य हिस्सों तक मॉनसून की आमद समय से हो जाती है और केरल पहुँचने के बाद 15 जून तक अपनी ज़द में ले लेते है, किन्तु इस बार जून में जहाँ मॉनसून कमज़ोर रहने की संभावना है, वहीं जुलाई में कुछ विलम्ब से अच्छी बारिश हो सकती है। इस बार मॉनसून का जो भँवर अरब सागर में रहेगा, उसके अच्छे संकेत नहीं हैं। इस वज़ह से भी मॉनसून उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर ज़्यादा बढ़ेगा और समय के साथ, देश के मुख्य मैदानी हिस्सों से दूर होता चला जाएगा।

सामान्यतः मॉनसून केरल में एक जून के आसपास पहुँच जाता है और फिर दस जून तक मुंबई में अपनी दस्तक दर्ज़ा करवा देता है, लेकिन भारतीय मौसम विभाग और एक ग़ैर सरकारी एजेंसी स्काईमेट ने अपना पूर्वानुमान व्यक्त करते हुए कहा कि इस बार मॉनसून के आगमन में हफ़्तेभर की देरी तय है। देश के दक्षिणी इलाक़ों में विलम्ब से पहुँच रहे मॉनसून की वज़ह से उत्तर-भारत भी प्रभावित होगा। उत्तर-भारत में भी मॉनसून की आमद प्रभावित रहेगी। यहाँ वह पंद्रह से बीस जून के मध्य सक्रिय हो सकता है और झमाझम बारिश के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है। यह इंतजार अलनीनो की वज़ह से बन रहा है।

स्मरण रखा जा सकता है कि मॉनसून को प्रभावित करने वाला अलनीनो एक ऐसा कारक है, जिसके प्रभाव से प्रशान्त महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है। इस वज़ह से हवाओं की राहों और रफ़्तार में बदलाव आ जाता है, जिसके चलते मौसम-चक्र बुरी से प्रभावित हो जाता है। मौसम में इस बदलाव के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है, तो कई स्थानों पर बाढ़ आ जाती है। अलनीनो का असर देश और दुनिया के कई हिस्सों में देखने को मिलता रहा है।

इस बरस जनवरी में ही देश का तापमान 30 से 35 डिग्री के पार तक पहुँच गया था और इस समय महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, यूपी, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, सहित तेलगांना, आंध्र और ओडिशा तक तप रहे हैं। देश का मध्य क्षेत्र तो लू की चपेट से जूझ रहा है। मई के अन्तिम दिनों में तेलंगाना का रामगुडम इलाक़ा 47.2 डिग्री के साथ दुनिया का चैथा सबसे गर्म और महाराष्ट्र का चंद्रपुर इलाक़ा 47.8 डिग्री के साथ दुनिया का पहला सबसे गर्म इलाक़ा रहा। किन्तु 30-31 मई को तो स्थिति बेहद भयावह हो गयी। जहाँ जोधपुर और प्रयागराज में तापमान 48 डिग्री आंका गया। वहीं श्रीगंगानगर और चुरू 50 डिग्री पर झुलस रहे थे। ऐसा क्यों हो रहा है? एंटी सायक्लोन की वज़ह से गर्मी ऊपर नहीं जा पा रही है, इसलिए जून भी गरम चल रहा है। 15 से 20 जून तक यही स्थिति रहने की प्रबल संभावना है। वर्ष 2014, 15 और 16 अर्थात् लगातार तीन बरस मॉनसून देरी से आया था और कि क उक्त दौरान बारिश सामान्य ही रही थी। अतः इस बरस भी मॉनसून में देरी के बावजूद बारिश सामान्य रह सकती है।

भारतीय मौसम विभाग और स्काईमेट ने मॉनसून में देरी के तीन प्रमुख कारण बताए हैं। पहला, प्री-मॉनसून में होने वाली बारिश को ’प्री-मॉनसून रेन पीक्र’ भी कहते हैं। सामान्य स्थिति में इसके संकेत अप्रैल अन्तिम सप्ताह से बंगाल की खाड़ी में दिखाई देने लगते हैं। इस बार ये संकेत 15-20 दिन देरी से दिखाई दे रहे हैं। इस वज़ह से मॉनसून में देरी होगी। दूसरा कारण यह है कि इस बरस गर्मियों का मौसम दो माह पूर्व ही प्रारम्भ हो गया था। देश का तापमान जनवरी में ही 30-35 डिग्री हो गया था और अप्रैल-मई में तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुँच गया था, जिसने मॉनसून को पीछे धकेल दिया। तीसरा यह कि वेस्टर्न डिस्टर्बन्स आमतौर पर दिसम्बर में बनता है, जिसकी वज़ह से दिसम्बर में मावठा होता है, किन्तु मावठे की उक्त बारिश इस बार दिसम्बर तो छोड़िए मई अन्त तक भी कहीं नज़र नहीं आई। इस वज़ह से दक्षिण-पूर्वी मॉनसून की आमद में बाधा आ रही है। फ़िलहाल 11 और 15 मई को दो वेस्टर्न डिस्टर्बन्स दिखाई दिए हैं, जो मॉनसून को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं।

देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान अब घटकर तेरह फ़ीसदी ही रह गया है, फिर भी भारत की साठ फ़ीसदी से अधिक आबादी कृषि पर ही निर्भर है और यहाँ की समस्त कृषि-व्यवस्था मॉनसून-केंद्रित रही है। देश में खाद्य भंडार की कमी नहीं है और अकाल की आशंका तक अब अतीत की बात कही जा सकती है, किन्तु मॉनसून के किंचित भी उलटफेर का असर खाद्य वस्तुओं की पैदावार और क़ीमतों पर अवश्य ही पड़ता है। महंगाई से मात्र खाद्य-व्यवस्था ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी हिलोरें उठती हैं। हम सचेत रहते हुए उम्मीद कर सकते हैं कि भारी तपिश के इस दौर में विलंबित मॉनसून के बावजूद देशभर में सामान बारिश देखने की संभावना बनी रहेगी और समय पर होने वाली बारिश से कृषि-क्षेत्र सामान्य बना रहेगा।

पुछल्ला- मई माह के प्रारम्भ में ओडिशा के तट पर तबाही मचानेवाला ’फानी’चक्रवात आया था, इस चक्रवात की विनाश लीला से बचने के लिए, भारतीय मौसम विभाग की ओर से पूर्वी और दक्षिण भारत के लोगों को तक़रीबन पैंसठ लाख चेतावनी संदेश भेजे गए। इसी की बदौलत प्रभावित इलाकों में फँसे तक़रीबन बारह लाख लोगों को समय रहते बचा लिया गया। भारतीय मौसम विभाग द्वारा भेजे सटीक पूर्वानुमानों की संयुक्त राष्ट्र ने प्रशंसा की है।

लेखक प्रसिद्द साहित्यकार हैं|

संपर्क: 331, जवाहरमार्ग, इन्दौर 452002 फ़ोन(+91731-2543380)

Email: rajkumarkumbhaj47@gmail.com

 

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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