लोकसभा चुनाव

आल्दो आई एम ए कम्युनिस्ट, बट नेवर गौट चांस टू वोट फॉर लेफ्ट – अनीश अंकुर 

 

बेगूसराय चुनाव: एक संस्मरण(भाग -6)

 

26 अप्रैल को जफर और गालिब कलीम ने साहिबपुर कमाल जाने की बात की। तनवीर हसन का घर भी उसी इलाके में पड़ता है। कम्युनिस्ट पार्टी उस क्षेत्र मे थोड़ी कमजोर मानी जाती है। गालिब कलीम के अनुसार ‘‘साहिबपुर कमाल में मुसलमान वोट अभी भी काफी कुछ गड़बड़ स्थिति में है। आज जुम्मे की नमाज है हमलोग मस्जिद में जायेंगे और लोगों का मन टटोलने की कोशिश करेंगे।’’ जफर की बातचीत जेएनयू छात्र संघ की प्रेसीडेंट रह चुकी अल्बीना शकील से हुई थी। उसने इन दोनों को उसी इलाके में बुलाया था। वे दोनों तैयार होकर जाने लगे तो मैंने मजाक में कहा मैं भी चलूं क्या? गालिब थोड़े संजीदा होकर बोले ‘‘ चलने को चल सकते हैं लेकिन यदि वे लोग जान जायेंगे कि आप हिन्दू हैं तो फिर आपके सामने ठीक से खुलेंगे नहीं, दिक्कत भी हो सकती है।’’ मैंने उन दोनों को अपने एक भांजे की बेगूसराय में आने वाली बारात में चलने का न्योता दिया। साहेबपुर कमाल से लौटकर हमलोग बारात चलेंगे वहीं खाना-पीना होगा। शाम में बेगूसराय के रंगर्किमयों की बैठक भी थी ल्हाजा मैं , सत्येंद्र जी और जेपी रह गए।

बरौनी पंचायत तीन में अजय जी उनके भाई और पार्टी के लोग सुबह का प्रचार कर लौटते तभी नाश्ता-पानी वगैरह करते। लौटने के साथ ही लोगों का आना जाना लगा रहता। हमेशा कोई न कोई आता रहता। सबों के लिए कम से कम चाय की व्यवस्था की जाती। जब सभी लौटकर आते तो देर तक  क्षेत्र के लोगों, विरोधियों आदि के सम्बन्ध में बातचीत करते। ऐसे ही एक बातचीत मैं सुन रहा था। वहाँ के कॉमरेड भोला सिंह जो देखने में थोड़े चलता-पूर्जा लगते हैं, भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह के आपराधिक अतीत के बारे में बता रहे थे। ‘‘ व्है हमर मौसा साथ ट्रक डकैती में जाये रहो। हमर मौसा ओहे में मारल गेलखिन। ओकर बाद से इ रस्ता बदललकौ।’’ (गिरिराज सिंह मेरे मौसा के साथ मिलकर ट्रक लूटने व डकैती का काम करता था। मेरे मौसा इसी धन्धे में मारे गए। उसके बाद इसने रास्ता बदला) भोला सिंह देर तक गिरिराज सिंह के कारनामों की चर्चा करते रहे। भोला सिंह के सुनाने का अंदाज इतना दिलचस्प था कि सभी तन्मय होकर सुनते रहते। उसने ये भी बताया कि उनके मौसा की मौत के बाद उनका मौसेरा भाई उनके यहाँ आकर रहने लगा। उसको भी रिवॉल्वर रखने की आदत पड़ गई, सामान खरीदकर दुकानदार का पैसा न देना जैसी आदतें लग गयी। फिर मैंने उसे मारपीट कर अपने यहाँ से भागाया।

जब कॉमरेड भोला गिरिराज सिंह की ये बातें बता रहे थे मुझे पटना में गिरिराज सिंह के बारे में सुनी हुई पुरानी बातें याद आने लगी। ‘‘अरे! गिरिराज सिंह तो कृष्णा सरदार के पीछे-पीछे राइफल टांगकर चलने वाला कारिंदा था। उसकी हैसियत बस वही थी।’’ कृष्णा सरदार के बारे में माना जाता है कि वो बिहार का पहला बड़ा अपराधी था जो विधायक बना। वो अरवल से 1980 में विधायक बना और लगभग पंद्रह सालों तक विधायक रहा। मगध क्षेत्र के भूमिहार जाति के अपराधियों में कृष्णा सरदार का काफी नाम था, एक तरह से आइकॉन थे उनके। सत्तर-अस्सी के दशक में कृष्णा सरदार और लक्ष्मण सरदार दोनों आपराधिक किस्म के दबंग थे। लेकिन ये दोनों उस इलाके के बड़े जमींदार परिवार के राघवेन्द्रधारी के आदमी माने जाते थे। लोग बताते हैं कि उन्हीं के प्रभाव में इन दोनों ने सिक्ख धर्म ग्रहण कर लिया था। राघवेन्द्रधारी बिक्रम के पास अईनखांव के ‘धारी’ परिवार के थे। इस बड़े जमींदार परिवार के खिलाफ क्रांतिकारी किसान नेता स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने भी संघर्ष किया था। उनके जमाने में रजनधारी सिंह का नाम था। 2005 के चुनाव में जब मैं ‘प्रभात खबर’ के लिए चुनावी रिपोर्टिग कर रहा था उस घर में गया। हाथी के प्रवेश करने वाली हवेलीनुमा मकान का पुराना रूतबा समाप्त हो गया था। उस परिवार के एक बुर्जग ने सांप पालने वाले के रूप में चर्चित राघवेन्द्रधारी सिंह के बारे में बताया था कि ‘‘ वो क्रिमिनल माइंडेड व्यक्ति थे’’।

फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने कन्हैया के नामांकन वाली सभा में कहा था  कि मेरा ननिहाल बिहार में है। इस दौरान टी.वी व फिल्म अभिनेता विजय कुमार, टी.वी सीरियल ‘निमकी मुखिया’  से खासे चर्चित,  ने बताया कि स्वरा भास्कर उसी राघवेन्द्रधारी परिवार की है। राघवेन्द्र धारी संभवतःउसके नाना हैं। सुनकर अजीब लगा कि घनघोर रिएक्षनरी परिवार में ऐसी प्रोग्रेसिव फिल्म अभिनेत्री!

शाम में हमें दिनकर भवन जाना था फिर आज ही कन्हैया का हर-हर महादेव चौक से निकलने वाले मोबाईल मार्च में शामिल होना था। ये एक अनूठा मार्च था सबों से आग्रह किया गया था कि अपने-अपने मोबाईल फूल चार्ज कर ले आएं ताकि उसकी रौशनी में मार्च निकाला जाए। हमलोग मोमबत्ती मार्च तो हमेशा निकालते आए थे लेकिन आज मोबाईल मार्च में शामिल होना था।

इसी बीच अजय जी बरौनी तीन में कन्हैया का प्रोग्राम लेने के लिए चिन्तित थे। अजय जी के अनुसार ‘‘ ये इलाका वैसे तो कम्युनिस्टों के प्रभाव वाला रहा है लेकिन एक बार कन्हैया का आना आवश्यक है। यहाँ के लोगों का बहुत दबाव है कि उसको बुलाया जाए।’’ अजय जी ने ये भी बताया कि जिला पार्टी कार्यालय को सूचना दी गयी है लेकिन अभी तक कार्यक्रम का कन्फर्मेंशन नहीं है। इसी बीच अजय जी को सूचना मिली कि सी.पी.आइ के राष्ट्रीय नेता के.नारायणा घर आ रहे हैं। उन्होंने अपने छोटे भाई विनय से पूछा कि कुछ दोपहर में नाश्ता पानी का इंतजाम हो जाएगा?

बेगूसराय चुनाव  के लिए केन्द्रीय पार्टी की तरफ से नारायणा को विशेष तौर पर भेजा गया है ताकि कि गुटों में बंटी पार्टी में कोई समस्या न खड़ी हो जाए। के.नारायणा को हिन्दी बोलने में दिक्कत होती है परिणामस्वरूप उन्हें अधिकतर ऑफिस में ही रहना पड़ता हैं। हिन्दी न जानने के कारण पब्लिक मीटिंग में उनकी कोई उपयोगिता न हो पा रही थी। लेकिन चूँकि वे पार्टी के बड़े नेता है लिहाजा कहीं-कहीं उन्हें घुमवाया जाता है। आज वो अजय जी के घर आए थे। आम के घने पेड़ों की छाह में हम सभी उनके साथ बैठे। उनको लेकर अरूण कुमार आए थे। अरूण जी वैसे तो विश्वविद्यालय व महाविद्यालय कर्मचारियों के नेता व औरंगाबाद के अपने कॉलेज के प्रिंसिपल भी हैं लेकिन छुट्टी लेकर चुनाव में यहीं थे।

नारायणा अपनी बैंक की नौकरी से रिटायर्ड पत्नी के साथ आए थे। दक्षिण भारतीय महिलायें अपने पहनावे व रंग-ढ़ंग से पहचान में आ जाती हैं। नारायणा के साथ हम सभी बैठे। वे पहले चुनाव का हाल पूछते रहे।

के. नारायणा से दिल्ली के अजय भवन में इसी साल 26 जनवरी को जयपुर जाने क्रम में भेंट हुई थी। उस दिन अजय भवन में झंडा पहराया गया था। उस वक्त लालू प्रसाद से कम्युनिस्ट पार्टी की कन्हैया को लेकर बातचीत चल रही थी। अटकलों का बाजार गर्म था। बेगूसराय के कम्युनिस्ट नेता व प्रलेस महासचिव राजेन्द्र राजन के ये पूछने पर कि क्या लालू प्रसाद से बात हुई?’’ नारायणा का स्पष्ट जवाब था ‘‘ ही मेड नो कमिटमेंट’’। वहीं जब जे.पी ने डी.राजा से इस बाबत पूछा तो के. राजा ने हिन्दी में बोले ‘‘ लालू तो मेरा बहुत अच्छा दोस्त है, दोस्त है वो मेरा।’’ तभी से ऐसा अहसास हुआ कि नारायणा स्पष्ट बोलने वाले व्यक्ति हैं।

नारायणा से राजनीतिक गपशप चलने लगा। इस बीच कुछ लोगों राजद द्वारा  कम्युनिस्ट पार्टी के रिश्ते की बात करने लगे। कुछ लोगों ने यहाँ तक कहा कि अब पार्टी को राजद के साथ भविष्य में गठबन्धन नहीं करना चाहिए। पार्टी को अधिक से अधिक सीटें लड़ना चाहिए। नारायणा ये सुब सुनते रहे। कभी मुस्कुराते, कभी संक्षिप्त प्रतिक्रिया व्यक्त करते। साम्प्रदायिकता विरेाध के नाम पर कम्युनिस्ट पार्टियाँ राजद जैसे दलों का समर्थन करती रही लेकिन इसका कोई फायदा तो दूर सिर्फ नुकसान ही होता रहा। राजद न तो साम्प्रदायिकता को रोक सकी और कम्युनिस्ट पार्टी भी लगातार कम सीटें लड़ने के कारण कमजोर होती चली गयी। इसी बीच चाय-नाश्ता वगैरह आता रहा।

नारायणा ने कहा ‘‘ एक्चुअली आईडिया बिहाइंड टू फाइट फ्यूर सीट इज टू प्रिवेंट डिवीजन ऑफ़ सेक्यूलर वोट्स। एंड, टू मोबीलाइज काडर्स फॉर दोज सीट्स व्हयेर वी आर फाइटिंग’’।

उनकी बात पर प्रतिक्रिया हुई। कॉमरेड आप कह रहे हैं कि हमें साम्प्रदायिकता विरोधी वोटों को बॅंटने से रोकना है लेकिन राजद सरीखी पार्टियाँ तो मानती ही नहीं कि आपके पास वोट है, तो फिर किस किस्म का विभाजन? साम्प्रदायिकता ताकतों पर तभी लगाम लगती है जब लेफ्ट की अपनी स्वतन्त्र ताकत रहती है। नारायणा थोड़े सहमत दिखे बल्कि उनकी पत्नी के सर हिलाने के अंदाज से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे अधिक समर्थन कर रही हों। मौजूद कुछ लोगों में से, नारायणा को टूटी फूटी अंग्रेजी में भी समझाने का प्रयास कर रहे थे। ‘‘ कॉमरेड नारायणा ट्राई टू अंडरस्टैंड पार्टी लाइक आर.जे.डी विल नेवर डू एनी गुड टू अस। अवर एक्सपीरियेंस टेल्स इट। वी हैव अबंडन दोज सीट्स दैट वाज आवदर ट्रेडिशनल स्ट्रोंग होल्ड्स जस्ट बिकॉज़ वी हैव टू फाइट कम्युनिल फोर्सेस।’’ बीच-बीच में अरूण जी भी इन बातों का समर्थन कर रहे थे। बाकी सभी लोग नारायण के साथ कार्यकर्ताओं के इस संवाद को दिलचस्पी के साथ देख रहे थे। अन्त में एक साथी कह उठते हैं ‘‘ कॉमरेड सी, आल्दो आई एम एसोसियेटड विद कम्युनिस्ट पार्टी फॉर मोर दैन टू डेकेड बट नेवर हैड द औपोरच्युनिटी टू वोट फॉर लेफ्ट। यू कैन अडरस्टैंड माई ट्रेजिडी। ’’ नारायणा ये बात सुनकर थोड़े अचंभित से हुए। उस कॉमरेड ने आगे कहा ‘‘ आई आलवेज फौलोवोड कम्युनिस्ट पार्टी डिक्टैट एंड गिवेन माई वोट टू लालू प्रसाद पार्टीज कैंडिडेट। बट द आयरनी इज दैट हूसोएवर आई हैड वोटेड फॉर इन द नेम ऑफ़ फाइटिंग बी.जे.पी, हैव इटसेल्फ क्रॉस्ड ओवर टू द सेम बी.जे.पी। सो वी शुड थिंक वी शुड रिव्यू आवर स्ट्रेटजी’’

नारायणा चलने लगे। तो हमलोगों ने उन्हें आज शाम दिनकर भवन में होने वाली रंगकर्मियों की बैठक के लिए आमन्त्रित कर दिया। उन्होने अपनी सहमति दे दी। दिनकर भवन में मीटिंग पाँच बजे से थी। हमलोग इसी बीच साहित्यकार व आलोचक भगवान प्रसाद सिन्हा के घर गए। हम सत्येंद्र जी,  और जे.पी उनके यहाँ गए। भगवान प्रसाद सिन्हा भी सत्येंद्र जी की तरह ‘जलेस’ में हैं लिहाजा दोनों को एक दूसरे को देख ख़ुशी हुई। उनके ड्राइंग रूम में ही किताबों की सेल्फ थी जिसमें नई नई किताबें थी। यह देख काफी अच्छा लगा। वहीं मैंने  पूर्णिया के देव आनन्द व नूतन आनन्द जी और उनके पुत्र को देखा। ये दोनों साहित्य व रंगकर्म से जुड़े रहे हैं। बड़े उत्साहपूर्ण माहौल में सबों से भेंट हुई। वहीं पता चला कि देव आनन्द व भगवान प्रसाद सिन्हा रिश्ते में साढ़ू लगते हैं। ये जानकर आष्चर्य मिश्रित ख़ुशी हुई। देवआनन्द व नूतन आनन्द हंसते- मुस्कुराते रहे। भगवान प्रसाद सिन्हा ने दरभंगा प्रक्षेत्र की मूर्तियों से सम्बन्धित किताब दी। सन्यासी रेड के मूर्तिकला सम्बन्धी कार्यशाला की रिपोर्ट का जिक्र देख उन्होंने फेसबुक पर इस पुस्तक का जिक्र किया था। उनके किसी शिष्य ने लिखी थी।

चुनाव की हल्की चर्चा हुई। कन्हैया कैंप की ओर से बार-बार बेगूसराय-बेगूसराय का का जिक्र करने प्रवृत्ति के बारे में भगवान जी ने कहा ‘‘हमें क्षेत्रवाद का शिकार नहीं होना चाहिए। एक कम्युनिस्ट पार्टी के लिए ये अच्छा नहीं है।’’  दरअसल उस वक्त क्षेत्र, जाति, गोत्र वगैरह का ऐसी चर्चा हवा में तैरने लगी थी कि किसी को कोफ्त होती। कन्हैया की जाति के साथ गोत्र आदि की चर्चा कुछ हलकों में चलने लगी थी कि कन्हैया जलेवार है और गिरिराज सिंह कुछ और। चूँकि बेगूसराय में ‘जलेवार’ अधिक हैं तो इसका फायदा कन्हैया को मिलेगा।  किसी अखबार ने इस सम्बन्ध में कुछ लिख भी दिया था इस कारण चर्चा होने लगी लेकिन यह सब एक दो दिन ही। रजनीति के बड़े सवालों के सामने इनकी कोई हैसियत न थी। भगवान जी को कहीं निकलना था प्रचार के ही सिलसिले में। हमलोगों ने भी इजाजत ली।

दिनकर भवन पहुँचते- पहुँचते थोड़ा विलम्ब हो गया था। गेट पर प्रदेश से बाहर की कोई संस्था नुक्कड़ नाटक कर रही थी। संभवतः वोट करने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए। प्रवीण कुमार गुंजन, संतोष राणा, दीपक सिन्हा, सचिन के साथ दरभंगा से प्रकाश बंधु भी चले आए, कुछ साथियों को लेकर। गेट दीपक सिन्हा ने खुलवाया। हमलोग दिनकर भवन के अन्दर गए। दिनकर की मूर्ति के सामने पहले फैज का दो तीन गीत गाया गया। धीरे-धीरे कर काफी लोग हो गए थे। हॉल की देखभाल करने वाला थोड़ा सहमने लगा था। ऐसा न हो कि चुनाव को लेकर मीटिंग को लेकर शिकायत हो जाए। दीपक सिन्हा ने उसे समझाया बुझाया। मीटिंग खड़े-खड़े प्रारम्भ हुआ। जेपी ने संचालन किया और बेगूसराय के उन रंगकर्मियों के नाम पढ़कर सुनाए जिन्होंने कन्हैया को समर्थन दिया था। गौतम गुलाल ने बड़ी मेहनत करके पूरे बिहार भर के रंगर्मियों के नाम जुटाए थे। संतोष राणा, दीपक सिन्हा आदि ने और कई नामों  को जोड़वाया। अब नामों की संख्या लगभग पौने दो सौ हो गए थे। सभा हुई जिसे संतोष राणा, दीपक सिन्हा, प्रवीण कुमार गुंजन, नदीम खान, सचिन,   पत्रकार विजय कुमार, प्रकाश बंधु आदि ने सम्बोधित किया। गुंजन ने एक दो संशोधन भी सुझाए। सबों ने संजीदगी से बातें रखी।

सभा जब समाप्त होने लगी तो अरूण जी फिर से नारायणा और उनकी पत्नी के साथ दिनकर भवन आ गए। उन दोनों ने भी सभा को सम्बोधित किया।  सभा देर तक चली और अन्ततः रंगकर्मियों की ओर से कन्हैया को समर्थन करने वालों की सूची जारी कर दी गयी। साहित्यकारों वाली सूची एक दिन पूर्व ही रिलीज की गयी थी। बिहार भर के रंगकर्मियों द्वारा ये पहला ऐसा प्रयास था जिसमें किसी एक उम्मीदवार को, और वो भी कम्युनिस्ट पार्टी के, ऐसा समर्थन दिया गया था। सभा खत्म होते ही हम सभी मोबाईल मार्च के लिए चल पड़े।

मुझे, जेपी और सत्येंद्र जी को अरूण जी ने नारायणा की गाड़ी में ही बिठा लिया। गाड़ी में बिस्कुट, मिक्सचर आदि के पैकेट रखे थे। हम तीनों खाते हुए अपने गंतव्य की ओर चल रहे थे। नियत स्थल के पहले ही बहुत बड़ा जाम लगा था। हम उतर गए। एक विशाल जुलूस से हमारा सामना हुआ। कन्हैया के समर्थन में निकाला जा रहा ये मोबाईल मार्च था।

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अनीश अंकुर

लेखक संस्कृतिकर्मी व स्वतन्त्र पत्रकार हैं। सम्पर्क- +919835430548, anish.ankur@gmail.com
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