archna verma

  • जब बैसाखियाँ पाँव बनने लगें

      अर्चना वर्मा   न केवल हमारे बल्कि किसी भी समाज में आरक्षण की व्यवस्थाओँ और प्रावधानों के कारगर होने का पैमाना केवल यही हो सकता है कि वे अपने समाज में उत्तरोत्तर अप्रासंगिक और अनावश्यक होती चली जायें। सामाजिक…

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