समाज
-
सामयिक
इक्कीसवीं सदी में महिला सशक्तिकरण, साहित्य और समाज
साहित्य की अवधारणा समाज के बिना सम्भव नहीं है। यह समाज से प्रभावित होता है और समाज भी साहित्य से प्रभावित होता है। साहित्य सामाजिक विषय को ध्यान में ही रख लिखा जाता है। विषय वस्तु और स्वरुप के…
Read More » -
समाज
रिश्ते नाते कहीं खोते जा रहे हैं
मां बाप के संस्कार और गुरु उस्ताद के सदाचार पर मोबाइल और टेलीविज़न बहुत तेज़ी से डाका डाल रहे हैं। उद्दंडता और नग्नता का प्रयोग मोबाइल और टेलीविज़न पर तेज़ी से सफल हो रहा है। दादी नानी की गोदी…
Read More » -
आवरण कथा
किन्नर का सामाजिक यथार्थ – लता अग्रवाल
लता अग्रवाल जब परिवार में कोई तृतीयलिंगी बच्चा जन्म लेता है तो उसके होने की खबर गुप्त रखी जाती है, या तो वो जमीन में जिन्दा गाढ़ दिए जाते हैं, कूड़ेदान में फैंक दिए जाते हैं, या फिर…
Read More » -
साहित्य, समाज और राजनीति – मणीन्द्र नाथ ठाकुर
मणीन्द्र नाथ ठाकुर हर साल अपनी कक्षा के नए छात्रों से पूछता हूँ कि उनमें से कितने लोग साहित्य पढ़ने में रुचि रखते हैं। मैं उन्हें साफ़-साफ़ कहता हूँ कि यदि साहित्य में उनकी रुचि नहीं है तो…
Read More »