लालू यादव
-
आवरण कथा
लोहिया होते तो राजनीति इतनी क्षुद्र न होती
बीती सदी के अस्सी के दशक में कभी तब की मशहूर पत्रिका ‘रविवार’ ने डॉ. राममनोहर लोहिया पर एक विशेषांक निकाला था। विशेषांक में एक लेख जाने-माने पत्रकार राजकिशोर का भी था। उन्होंने कहा कि आज की राजनीति में…
Read More » -
राजनीति
करिश्माई नेता हमेशा नहीं पैदा होते
एक पिछड़ी जाति में पैदा होने के नाते मैं लालू जी की अहमियत को आज की राजनीति में ज्यादा बेहतर समझता हूँ। जो नेता जेल में रहकर भी बिहार की राजनीति में अभी भी उतना ही प्रासंगिक है जितना…
Read More » -
बिहार
पिछड़ी जाति की जमींदारी व सोशलिस्ट धारा
जैसा कि पहले के लेखों में ये तर्क प्रस्तुत किया गया है बिहार में जातिवाद की बढ़ोतरी तथा कांग्रेस सहित अन्य दलों में जमींदारों के प्रवेश के बीच गहरा सम्बन्ध है। लोहिया के सूत्रीकरण ने पिछड़ी जाति के धनाढ्य…
Read More » -
Democracy4you
भूमिहारी अस्मिता के बारे में कुछ वाजिब सवाल और बेगूसराय का चुनाव – विजय कुमार
विजय कुमार ऐसा नहीं है कि ऊँची जात के अन्दर ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं है। जो लोग पुराने ग्रामीण समाज को जानते हैं उन्हें पता है कि ग्रामीण समाज में खासकर भूमिहार समाज में कभी अपनी ही जाति के लोगों…
Read More »