बिगड़ती कानून व्यवस्था

  • सामयिक

    नागरिक को नजर अंदाज करने का हुनर

      शैलेन्द्र चौहान   फ्रेंच लेखक अल्बेयर कामू ने एक बार लिखा था, “मैं अपने देश को इतना प्यार करता हूँ कि मैं राष्ट्रवादी नहीं हो सकता|” कामू के ये शब्द भारत के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में प्रासंगिक मालूम पड़ते हैं|…

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