आलोकधन्वा
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शख्सियत
विद्याभूषण द्विवेदीः एक संस्मरण
एक्टीविस्ट संस्कृतिकर्मी विद्याभूषण द्विवेदी (जिन्हें बिहार का सफ़दर हाशमी कहा जाता था) की मृत्यु के 25 साल लगभग दो महीने रहने के पश्चात 16 जुलाई, 1996 को विद्याभूषण द्विवेदी वापस दिल्ली जा रहे थे। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) का प्रथम…
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समाज
बाप की ही हिस्सा होती है बेटियाँ
याद आता है फ़िल्म “ओंकारा” का एक संवाद, जो एक “भगा ली गई लड़की” का पिता “भगाने वाले लड़के” से कहता है… “याद रखना! जो लड़की अपने बाप की नहीं हो सकती, वो किसी की नहीं हो सकती।” वास्तव…
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लोकसभा चुनाव
बेगूसराय चुनाव – एक संस्मरण (भाग-3) – अनीश अंकुर
‘जाति’ पूछने वाले की ‘राजनीति’ पता करो नामांकन के बाद वाली सभा में घूमने के दौरान, बुजुर्ग कम्युनिस्ट नेता शिवशंकर शर्मा एक गोल घेरे में बैठे दिखे। उनके ‘जनशक्ति’ के लिखे आलेखों को पसन्द करता रहा हूँ विशेषकर…
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