अमित कुमार सिंह
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सिनेमा
कला और कहानी के कसौटी पर गुलाबो-सिताबो
साहित्य एवं कला विमर्श के क्षेत्र में एक प्रचलित वाद है- कलावाद। जोकि यूरोप से चला और फ्रेंच भाषा में इसका नारा बना- “ल’ आर पूर ल’ आर” यानी “कला कला के लिए”। सामान्य शब्दों में कहें तो एक…
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समाज
बाप की ही हिस्सा होती है बेटियाँ
याद आता है फ़िल्म “ओंकारा” का एक संवाद, जो एक “भगा ली गई लड़की” का पिता “भगाने वाले लड़के” से कहता है… “याद रखना! जो लड़की अपने बाप की नहीं हो सकती, वो किसी की नहीं हो सकती।” वास्तव…
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सिनेमा
केसरी : युद्ध के मुलम्मे में मानवीयता के बाईस पहरेदारों की कहानी
हाल के दिनों में इतिहास की कहानियों का पन्नों से उतरकर पर्दे पर चढ़ने का काफी तेजी से चलन बढ़ा है | इसी कड़ी में बॉलीवुड की ताजातरीन सौगात है – “केसरी”| केसरी मोटे तौर पर तो सन 1897…
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सिनेमा
“सोनचिड़िया : रेत पर नाव खेने की कहानी”
आज के दौर में अगर डकैती पर केन्द्रित कोई फिल्म बनती है, तो यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वह पुरानी लकीर को पीटने वाली कोई चलताऊ टाइप की बी-ग्रेड फिल्म होगी | लेकिन “सोनचिड़िया” में…
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