अनिल किशोर सहाय

  • पुस्तक-समीक्षा

    ‘महज़ आदमी’ वह जो खास नहीं, आम है

      अनिल किशोर सहाय चुपचाप काव्य की गलियों में यात्रा करनेवाले साहित्यकार हैं। बिना शोरगुल, दिखावे के कुछ सार्थक रचते रहनेवाले शान्त कवि। लेकिन उनकी कविताएँ बोलती हैं। यह उनकी पुस्तक ‘महज़ आदमी’  से गुजरते हुए महसूस होता रहा।  कार्यक्रम अधिशासी…

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  • आवरण कथा

    दलीय लोकतन्त्र, चुनाव और जेपी

      अनिल किशोर सहाय   साल 1974 के बिहार जनआन्दोलन के क्रान्तिधर्मी एक नारा यह भी लगाते थे-‘तुम जनप्रतिनिधि नहीं रहे हमारे, कुर्सी गद्दी छोड़ दो’। यह नारा आजाद भारत के लोकतान्त्रिक ढांचे के क्षय होने की गहरी और मार्मिक…

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