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हरियाणा में रोडवेज हड़ताल, अब तक 24 करोड़ का नुकसान

सबलोग डेस्क- हरियाणा ने पहली बार ऐसी सरकार देखी है जो झुकने को तैयार नहीं है. और नाहीं हरियाणा रोडवेज यूनियन के नेता झुकने को तैयार है. रोडवेज की हड़ताल 16 अक्तूबर से जारी है और अभी 25 अक्तूबर तक चलेगी, इस हड़ताल से 23 अक्तूबर तक परिवहन विभाग को 3 करोड़ रुपए प्रति दिन के हिसाब से 24 करोड़ का नुकसान हो चुका है.  अर्थशास्त्री बताते हैं कि एक बस यदि 24 लाख रुपए की आती है तो इस कीमत में 100  नई बसें रोडवेज के बेड़े में तुरंत आ जाती, जबकि यदि बस की आधी कीमत या उससे और कम पैसे जमा करके शेष राशि की किस्त बनवा ली जाएं तो इस कीमत से 200 से 250 से भी अधिक बसें बेड़े में शामिल हो सकती हैं.  लेकिन सरकार और परिवहन विभाग के कर्मचारी अपनी-अपनी जिद पर अड़े हैं.

वहीं जो चौंकाने वाली बात पता चली है वह यह है कि हरियाणा परिवहन विभाग ने जो पीपीपी मोड पर फिलहाल 510 बसें हायर की हैं, इन बसों को 31.01 रुपए से लेकर 37.30 रुपए में हायर किया गया है. अभी 190 बसों का टेंडर होना बाकी है.

अब एक से उदाहरण बताते हैं- 16 अक्तूबर से हड़ताल चल रही है, सरकार ने प्राइवेट स्कूलों और कुछ प्राइवेट कंपनियों की बसों को प्रयोग में लिया.

पंचकूला डिपो की बताते हैं कि 19 अक्तूबर को यह प्राइवेट बसें 2,100 किलोमीटर चली हैं, इन बसों से टिकटों के जरिए सरकार को 15,700 रुपए आया और सरकार ने इन बसों के मालिकों को 63,000 रुपए देने हैं.

इसी तरह 20 अक्तूबर को स्कूलों और इन प्राइवेट कंपनियों की बसें 2,700 किलोमीटर चली और इससे परिहवन विभाग को टिकटों के जरिए 25,300 रुपए आमदनी हुई जबकि विभाग ने इन प्राइवेट बसों के मालिकों को 81,000 रुपए देने हैं.

इसी तरह 21 अक्तूबर को यह बसें 3,387 किलोमीटर चली और इन बसों से सरकार को 34,687 रुपए की आमदनी हुई और सरकार ने इन बसों के मालिकों को 98,000 रुपए देने हैं. अब बताइये यह प्राइवेट बसें हायर करने वाला फार्मूले से कौन सा फायदा हो गया?

जब परिवहन विभाग में पीपीपी मोड में जो बस चलेंगी उससे भी सरकार को कोई फायदा नहीं होना है. हालांकि, रोडवेज की यूनियनें और विपक्ष भी यही बात कह रहा है कि हरियाणा सरकार ने बहुत अधिक महंगे दामों पर यह बसें हायर की हैं, जबकि दूसरे राज्यों में 20 से 22 रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से बसें हायर की हुई हैं. लेकिन सरकार यह तो कह रही है कि वह जांच करवाने के लिए तैयार हैं. लेकिन इस बात को कोई नहीं समझ रहा है कि इससे किसी का फायदा नहीं हो रहा है, बल्कि जो 53 लोगों को 510 बसों को जो टेंडर मिले हैं, उनकी जरूर चांदी हो जाएगी. परिवहन विभाग के सीनियर अधिकारी कह रहे हैं कि हम रोडवेजकर्मियों को ओवरटाइम का 130 करोड़ रुपए देते हैं और एक कर्मचारी को 65 हजार रुपए प्रति माह देते हैं. अब बताइये जो कर्मचारी 13 से 16 घंटे डयूटी करेगा तो उसका ओवरटाइम देना होगा या नहीं ?

हरियाणा सरकार और रोडवेज की यूनियनों में अब यह बड़ा पेंच फंस गया है. सरकार इस जिद्द पर है कि वह हर हाल में इन 700 बसों को पीपीपी मोड पर चलाएगी और परिवहन विभाग के कर्मचारी कह रहे हैं कि किसी भी सूरत में इन बसों को नहीं चलने दिया जाएगा.

यहां यह बताते चलें कि परिवहन विभाग के बेड़े में 4,100 बसें हैं और परिवहन विभाग को गत वर्ष 680 करोड़ का घाटा हुआ था. अब बताइए इस पीपीपी मोड में बसें चलाए जाने से घाटा बढ़ेगा या घटेगा.

 

लेकिन सरकार इस बात से ही खुश है कि कुछ बसें चल रही हैं. इसके लिए सोमवार की शाम बकायदा एक लिस्ट भी जारी की गई है. इस लिस्ट पर आप भी एक नजर डालिए और सरकार की पीठ थपथपाने की कोशिश पर चाहें तो ताली बजा सकते हैं.

 

 

रोडवेज की एक बस चलती है तो उस पर 6 लोगों को रोजगार भी मिलता है. जबकि प्राइवेट बस चलाए जाने से एक ही ड्राइवर काम करता है. लेकिन जिस कंपनी को बसों का यह टेंडर मिला है उसके बारे न्यारे हो गए. क्योंकि उस बस को तो एक किलोमीटर के हिसाब से 31.01 रुपए से लेकर 37.30 रुपए से पैसे मिलेंगे.

 

वैसे रोडवेज की यह हड़ताल आज तक  के इतिहास में सबसे बड़ी होने जा रही है, क्योंकि दिसंबर 1993 में जो हड़ताल हुई थी, वह भी आठ दिन चली थी और आठ दिन के बाद समझौता हुआ था. इस हड़ताल को भी 8 दिन हो गये हैं. अब देखना यह होगा कि यह हड़ताल आखिर कम खत्म होती है. रोडवेज यूनियन के नेताओं का तर्क है कि हर साल 500 बसें कंडम हो जाती हैं, नई बस खरीदी नहीं जा रही हैं, ऐसे में 8 साल में यह सभी बसें कंडम हो जाएंगी और रोडवेज विभाग बंद हो जाएगा.

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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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