उद्योग

पावर सेक्टर – चुनौतियाँ व नवीन उपक्रम’ – पल्लवी प्रसाद

 

  • पल्लवी प्रसाद

भारत सरकार ने देश के निरन्तर औद्योगिक विकास के लिये पावर सेक्टर को आधारभूत क्षेत्र माना है। यह जरूरी है कि हम पारम्परिक ऊर्जा स्रोत जैसे कोयला, पेट्रोलियम, वगैरह पर अपनी निर्भरता कम करें क्योंकि यह स्रोत नवकरणीय नहीं हैं तथा यह पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। भारत अपनी पर्यावरण-सुरक्षा सम्बन्धित जिम्मेदारियों को भलीभाँति वहन करता आया है। वह इस विषय पर हुये अनेक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों, घोषणाओं, समझौते व संधियों का हस्ताक्षरकर्ता/सहभागी है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा बिजली उत्पादक है तथा बिजली का तीसरा बड़ा उपभोक्ता है। भारत में बिजली उपभोग की प्रति व्यक्ति दर विश्व के औसत प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग दर की सिर्फ एक तिहाई है जबकि यहाँ बिजली की कीमत अन्यत्र देशों के मुकाबले सस्ती है। देश के विकास ग्राफ का प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग दर से सीधा नाता है। निम्न प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग दर का अर्थ है गरीबी और कमतर सुविधाओं के साथ ही शिक्षा व रोजगार के कम अवसरों का होना।

विश्व की 1.4 बिलियन आबादी के पास बिजली नहीं है जिनमें से 160 मिलियन लोग भारतवासी हैं अर्थात 32 मिलियन भारतीय घरों में बिजली नहीं है। भारत के पावर सेक्टर में एक राष्ट्रीय ग्रिड है जिसकी स्थापित क्षमता 344 GW है। नवकरणीय ऊर्जा के पावर प्लांट इस स्थापित क्षमता में कुल 33.23% का योगदान देते हैं। ऊर्जा उत्पादन में निजी क्षेत्र 44% योगदान करता है।आजादी के सात दशकों बाद, वर्ष 2018 में भारत के तमाम जनगणना गाँवों का विद्युतिकरण हो पाया है। फिर भी हर घर में बिजली देने का स्वप्न आज भी हमसे दूर है। यह भारत सरकार का लक्ष्य है कि वह शत् प्रतिशत विद्युतिकरण के हमारे स्वप्न को वर्ष 2022 तक पूरा करेगी। यह देखना बाकी है कि सरकार को इसमें सफलता मिलती है या नहीं।

भारत में बिजली का पारेषण व वितरण नुकसान अस्वाभाविक रूप से अधिक होने का मुख्य कारण बिजली की चोरी तथा पुरानी पड़ चुकी आधारिक संरचना के चलते हमारी तकनीकी अदक्षता है। पिछले कई वर्षों में इस नुकसान को नियंत्रित करने के लिये भारत ने अपने ट्रांसमिशन ग्रिड की क्षमता में बढ़ोतरी व वितरण-दक्षता का उन्नयन किया है। कम्प्यूटर वाले बिल मीटरों के कारण मीटर के साथ छेड़छाड़ व बिलिंग एजेंट को रिश्वत देना अब बन्द हो गया है जिसके चलते बिजली की चोरी में गिरावट आई है।

सदियों से भारत पारम्परिक इंधन जैसे जलावन की लकड़ियाँ, उपले, कोयला और तेल पर अपनी ऊर्जा व प्रकाश की जरूरतों के वास्ते निर्भर रहा है। हालाँकि इस प्रकार के इंधन आसानी से उपलब्ध हैं किन्तु वे ऊर्जा के साफ स्रोत नहीं हैं। वे घर के अन्दर प्रदूषण फैलाते हैं। हाल में हुई खोज से हमें पता चला है कि घर के अन्दर का प्रदूषण बाहरी प्रदूषण से पाँच गुना अधिक खतरनाक है। ऐसे इंधन सिर्फ पर्यावरण को ही प्रदूषित नहीं करते बल्कि यह लोगों के स्वास्थ्य व जीवन के लिये भी गम्भीर खतरा उत्पन्न करते हैं। इस तरह हमारे सामने जो सबसे बड़ी चुनौती उपस्थित होती है वह है कि किस प्रकार हम सस्ती और साफ बिजली अथवा गैस का उत्पादन करें तथा जन-जन को निरन्तर बिजली वितरित करें। इसके अलावा जरूरत है कि हम लोगों को जागरुक करें ताकि वे अपनी सदा से चली आ रही अस्वस्थ व पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली आदतों का त्याग करें। हमें बेहतर दक्षता के संग लोगों को ऊर्जा मुहैय्या करानी है और उन्हें अपनी जरूरतों के बेहतर नियन्त्रण और ऊर्जा की बचत के बारे में शिक्षित करना है।

भारत में सौर ऊर्जा तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग है। भारत ने वर्ष 2014 से अपनी सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 8 गुना बढ़ोतरी की है तथा वर्ष 2018 की शुरुआत तक 20 GW की उत्पादन क्षमता प्राप्त कर ली है। भारत का लक्ष्य 100 GW की उत्पादन क्षमता प्राप्त करना है जिसमें से 40 GW सौर ऊर्जा छतों के ऊपर उत्पादित की जायेगी। बहरहाल, यह देखते हुये कि विश्व में कुल स्थापित सौर ऊर्जा उत्पादन शक्ति 303 GW से थोड़ी सी ही ऊपर है, यह मानना पड़ेगा कि सौर ऊर्जा उत्पादन को ले कर भारत के लक्ष्य महत्वाकाँक्षी हैं। सौर बिजली की कीमत कोयला से उत्पन्न बिजली की औसत कीमत से 18% कम है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सौर लालटेनों की अच्छी बिक्री हुआ करती है। इस कारण अब प्रकाश के वास्ते किरासन तेल के उपयोग में गिरावट आई है।

भारतीय रेल ने पहली बार 14 जुलाई, 2018 को सौर ऊर्जा से संचारित DEMU (डीज़ल इलेक्ट्रिकल मल्टिपल यूनिट) ट्रेन चलाई। यह ट्रेन सराय रोहिल्ला, दिल्ली और फारुख़ नगर, हरियाणा के बीच चलती है। इस ट्रेन के 6 डिब्बों की छतों पर 16 सौर पैनल लगे हैं जो प्रति पैनल 300 Wp की ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। इन सौर पैनलों का निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ उपक्रम के तहत 54 लाख रुपयों की लागत से हुआ है। यह विश्व में पहली बार हुआ है कि किसी देश की रेल में सौर पैनलों का उपयोग बतौर ग्रिड किया जा रहा है। फिल्हाल, इन्हें बिना ए.सी. वाले रेल डिब्बों की छतों पर लगाया गया है। हालाँकि इस ट्रेन में डीज़ल लोकोमोटिव इंजन है, यहाँ सौर ऊर्जा का उपयोग यात्री-सुविधाओं को प्रदान करने के लिये किया जा रहा है। यह सौर पैनल प्रतिदिन लगभग 17 यूनिट पावर का उत्पादन करते हैं जिससे डिब्बे के अन्दर बिजली की व्यवस्था होती है। रेलवे द्वारा ऐसे 50 और डिब्बे लाये जाने की योजना है। सौर ऊर्जा की व्यवस्था पहले शहरी ट्रेनों में लगाई जायेगी, तत्पश्चात उसे लम्बी दूरी की ट्रेनों में भी लगाया जायेगा।

प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ जो ऊर्जा मन्त्रालय के तहत कार्यरत हैं उनसे इतर, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मन्त्रालय द्वारा विभिन्न जगहों पर 25 MW क्षमता के पावर उत्पादन वाली लघु पनबिजली परियोजनाएँ (SHP) स्थापित करने की योजना है। यह परियोजनाएँ बिजली आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी विशेष कर दूरस्थ व दुर्गम क्षेत्रों के लिये। सरकार दोनों, निजी और सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है कि वे इन SHP को लगायें।

भारत पवन ऊर्जा के मामले में विश्व में पाँचवे स्थान पर है। भारत के पास अन्दाजन 1,02,788 MW पवन ऊर्जा उत्पादन की संभावित क्षमता है। कुल 22,465 MW पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता की स्थापना वर्ष 2015 तक हो गई है जो मुख्यत: तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान में की गई हैं। भारत सरकार ने अपनी प्रचार नीति के तहत इन्हें आर्थिक प्रोत्साहन दिये हैं जिनमें सीमा-शुल्क, उत्पाद शुल्क व बिक्रीकर में छूट प्रदान की गयी है, साथ ही दस वर्षों तक आयकर की माफी भी दी गयी है। नि:संदेह इन प्रोत्साहनों ने पवन ऊर्जा उद्योग को बढ़ावा दिया है।

नियमन के बावजूद, भारत अपने परमाणु कार्यक्रम पर अडिग रहा है और उसकी मदद से हरित ऊर्जा का उत्पादन करता रहा है। उसके पास 6,780 MW (2016-17) परमाणु ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है। भारत में कुल ऊर्जा उत्पादन का सिर्फ 3% हिस्सा परमाणु ऊर्जा का है। परमाणु ऊर्जा निरन्तर स्रोत के रूप में बेहद संभावनाशील है। उसमें सदियों तक अशेष ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता है। – अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं भू-तापीय ऊर्जा जिसकी परियोजनाएँ पूगा, लद्दाख तथा तत्तापानी, मध्यप्रदेश में कार्यरत हैं। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कम्पन तथा तरंग ऊर्जा संभावनाशील स्रोत हैं परंतु उनकी अनियमित व अलाभकारी प्रकृति के चलते हम प्रगति नहीं कर पाये हैं।

ऊर्जा क्षेत्र किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिये  नींव का पत्थर है। यह जरूरी है कि भारत शीघ्रातिशीघ्र ‘स्मार्ट ग्रिड’ तकनीक को अपनाये और निरन्तरता और दक्षता के साथ देश में बढ़ती हुई बिजली की माँग की आपूर्ति करे। स्मार्ट ग्रिड सभी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकिकृत कर दक्षतापूर्वक बिजली को पारेषित व वितरित करने का काम करता है। ऊर्जा उत्पादन व वितरण में अधिकाधिक दक्षता लाने के फलस्वरूप भविष्य में अधिक ऊर्जा की खपत होगी। इससे देश के औद्योगिक व आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा तथा रोजगार उत्पन्न होंगे। भारत के निति आयोग के पूर्वानुमान के अनुसार वर्ष 2040 तक भारत में ऊर्जा की खपत में तीन गुना बढ़ोतरी होने की संभावना है।

भारत सरकार ने ‘पावर फॉर ऑल’ अभियान चलाया है और 2022 तक अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये वह कार्यरत है।जबकि यह बात भी उतनी ही सच है कि ऊर्जा की खपत में होने वाली बढ़ोतरी व बेहतर विकास नि:संदेह ही हमारे पर्यावरण के लिये संकट खड़ा करेंगे। इसलिये यह साफ रूप से दृश्य होता है कि ऊर्जा की निरन्तर बढ़ रही माँग को साफ नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों के उपयोग से ही पूरा किया जाना हमारे लिये श्रेयस्कर होगा। भविष्य में निरन्तर विकास प्राप्ति का यह एकमात्र मार्ग है जिस पर भारत को बढ़ना है।

लेखिका अधिवक्ता और कथाकार हैं|

सम्पर्क- +918221048752, pallaviprasad7133@gmail.com

 

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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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