अंतरराष्ट्रीयचर्चा मेंदेश

हंसने से रास्ते कटने वाले नहीं हैं!

चढ़ रहे हैं. चढ़ने की होड़ लगी है. चढ़े जा रहे हैं. लगातार. कितना चढ़ेंगे? किसी को पता नहीं. कब तक चढ़ेंगे? नहीं जानते. बस चढ़े जा रहे हैं. ऊपर. और ऊपर. मानों रेस लगी है. कौन कितना ऊपर चढ़ सकता है? कौन हिमालय की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है? कौन सचिन से ज्यादा रन बना सकता है? कौन रिकॉर्डधारी हो सकता है? रेस में सब लगे हैं. अनथक.

हां, वे तो थक भी नहीं सकते. उनमें जान तो है नहीं, वे बस दूसरों को रफ्तार देने के काम आते हैं. जी, डीजल-पेट्रोल. देखिए. चढ़ने की रफ्तार देखिए. अपनी गाड़ी की चाल देखिए. पंप पर पहुंच कर जेब का हाल देखिए. आप भी तो चढ़ ही रहे हैं. कोई मोटरसाइकिल पर. कोई कार पर. कोई हवाईजहाज पर. कोई निजी जेट पर. सब चढ़े हुए हैं.

सुनी-सुनाई मानें तो कोई झूठ पर चढ़ा हुआ है. कोई हवा में उड़ने की कोशिश कर रहा है. चढ़ते-चढ़ते कोई इतना चढ़ गया कि ‘तक्षशिला’ तक को बिहार पहुंचा गया. कोई बात नहीं. हो जाता है. अति उत्साह में ऐसा हो जाता है. कई बार होता है. आपके साथ भी होता होगा. तो क्या हुआ, कि आपके प्रधान सेवक के साथ भी हो गया. जाने दीजिए. कोई बात नहीं.

लेकिन नोटबंदी की चढ़ाई वैसी नहीं रही, जैसी उन्होंने सोची थी. हालांकि ये तो आप आज तक नहीं जान पाए कि उन्होंने क्या सोचा था. हो सकता है, वे खुद भी ना जान पाए हों कि क्या सोच कर ऐसा किया. नोटबंदी के बाद जमा हुए नोटों की गिनती ने ‘नामवालों’ की पूर्व सरकार के मुखिया को जरूर राहत पहुंचाई होगी. वे यही सोच कर चढ़ बैठेंगे कि उतना ज्यादा भ्रष्टाचार नहीं हुआ. उतना काला धन देश में नहीं था. 0.3 फीसदी को छोड़ कर सारा तो जमा हो गया. कहां हुआ भ्रष्टाचार? कहां है काला धन ? वे खुशी में चढ़े जा रहे होंगे.

(ये उनके लिए अच्छे दिन ही तो हैं. खामखां…)

गिरने की होड़ लगी है. गिर रहे हैं. गिरे जा रहे हैं. कितना गिरेंगे, किसी को पता नहीं. कब तक गिरेंगे? ये भी नहीं जानते. बस गिर रहे हैं.

जब वे कहते थे कि गिरने की होड़ लगी है, तब वे प्रधान सेवक नहीं थे. सिर्फ एक राज्य के ही सेवक थे. तब वे खूब कहते थे-गिरने की होड़ लगी है. रुपये में और सरकार में होड़ लगी है. कौन कितना गिरता है? हालांकि उनके सिपाहसालार बताते हैं कि पूरी दुनिया की करंसी गिर रही है. तो क्या बुरा है कि हमारा रुपया भी औंधे मुंह गिरे?

इधर जिनके अच्छे दिन आए हैं, उनके राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया. लिखा-‘अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब है और मोदी सरकार ने चुप्पी साध रखी है’.

अब तो हद ही हो गई है. जब प्रधान सेवक बोलते हैं तो आप कहते हैं कि झूठ बोल रहे हैं, जब चुप हैं तो आपको चुप्पी भारी लग रही है. आपको मनमोहन सिंह याद नहीं आते? जब वे कहते थे कि ‘हजार जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, ना जाने कितने सवालों की आबरू रखी’ तो आप आहत भी नहीं होते थे.

अच्छा है कि रुपये में और पेट्रोल में रेस लगी है. पहले शतक कौन जमाता है? आप भी तब तक जेब संभालिए. क्या पता किसी के गिरने और चढ़ने के चक्कर में ‘कट’ ना जाए.

राजन अग्रवाल

लेखक पत्रकार हैं.

rajan.journalist@gmail.com

 

कमेंट बॉक्स में इस लेख पर आप राय अवश्य दें। आप हमारे महत्वपूर्ण पाठक हैं। आप की राय हमारे लिए मायने रखती है। आप शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।
Show More

सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

4 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
4
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x