सिनेमा

फिजाओं को बदलने का संदेश देती ‘कड़वी हवा’

 

{Featured in IMDb Critics Reviews}

 

मुख्य कलाकार: संजय मिश्रा, रणवीर शौरी, तिलोत्तमा शोम आदि
निर्देशक: नील माधव पांडा 
निर्माता: दृश्यम फिल्मस

कुछ फिल्में मनोरंजन के लिए होती हैं , कुछ फिल्में आपको जानकारियां देने के लिए होती हैं तो कुछ फिल्में आपको झकझोर कर जगाने के लिए होती हैं । ऐसी ही एक फिल्म इस हफ्ते आई है ‘कड़वी हवा’। इस फ़िल्म में न कोई ख़ान  है, न ही इस फिल्म ने शहरों को अपनी पब्लिसिटी से भरा इसलिए हो सकता है आप इसे नजरअन्दाज कर दें।

Kadvi Hawa Archives - दलित दस्तक

लेकिन जब आप इसका विज्ञापन अखबार में पढ़ेंगे तो जरूर इस फ़िल्म के कलाकारों के चेहरे देखकर शायद आप यह तय कर लें कि यह फिल्म नहीं देखनी! मगर ध्यान रहे यह फिल्म अपने समय की एक महत्त्वपूर्ण फिल्म है। चम्बल  के सुदूर गांव में एक बूढ़ा नेत्रहीन हेदु (संजय मिश्रा) अपने बेटे मुकुन्द (भूपेश सिंह) और बहू पार्वती (तिलोत्तमा शोम) और उनके दो बच्चों के साथ रहने वाला एक गरीब किसान है और जैसे तैसे जिन्दगी बसर कर रहा है। हेदु अपने बेटे मुकुन्द के बैंक से लिए हुए कर्ज के कारण परेशान है उसे यह तक नहीं पता कि आखिर उसके बेटे के ऊपर कितना कर्ज है? इस कर्ज़ की राशि का पता लगाने के लिए वह लम्बी दूरी तक पैदल-पैदल जा कर बैंक पहुंचता है।

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मगर उसे असफलता ही हासिल होती है वहीं दूसरी ओर एक रिकवरी एजेन्ट है (रणवीर शौरी) जिसे गाँव के लोग यमदूत कह कर पुकारते हैं, वह जिस गाँव में जाता है वहाँ पैसा वसूलने के चक्कर में कई सारे लोग आत्महत्या कर लेते हैं। रिकवरी एजेन्ट की एक अलग समस्या है उसे अपने परिवार को उड़ीसा से अपने पास बुलाना है। उसका परिवार उड़ीसा के तूफान में बेघर हो चुका है। जब हेदु और इस रिकवरी एजेन्ट का आमना-सामना होता है तो एक नया समीकरण सामने आता है।

दोनों ही मौसम के मारे हैं। इन दोनों के मिलने से क्या स्थितियाँ सामने आती हैं, इसी ताने-बाने पर बुनी गयी है फिल्म ‘कड़वी हवा’। निर्देशक नील माधव पांडा ने बड़ी ही खूबसूरती से संजीदगी के साथ हर दृश्य में बिगड़ते मौसम की भयानकता बिन कहे उकेरी है।

Review: कड़वी हवा में संजय मिश्रा का ...

एक दृश्य में स्कूल में टीचर जब अपने बच्चों से मौसम के बारे में पूछता है तो एक बच्चा मासूमियत से भरा जवाब देता है कि मौसम तो दो होते हैं- ठंड और गर्मी, बारिश तो उसने देखी नहीं। इस छोटे से दृश्य में आप सिहर जाते हैं। एक दूसरे दृश्य में जब मुकुन्द रात को घर नहीं आता तो पार्वती अपने ससुर को उठाते हुए सिर्फ एक बात कहती है – ये घर नहीं आये! इस छोटे से दृश्य में तिलोत्तमा शोम ने अपने एक ही संवाद से सिनेमाघर में मौजूद लोगों के आँसू निकलवा देने में कामयाब हो जाती है।

Kadvi Hawa Movie Review - रिव्यू: कड़वी सच्चाई ...

संजय मिश्रा के शानदार अभिनय के चलते आपको उस भयानकता का एहसास होने लगता है जो बारिश के ना होने से हमारे किसान झेल रहे हैं! एजेन्ट के तौर पर रणवीर शौरी को न्यूज़ देखते हुए पता चलता है कि उड़ीसा में फिर एक बार तूफान आया है। इस दृश्य में रणवीर ने ऐसी जान डालते हैं कि देखने वालों की जान सांसत में फंस जाए।

कुल मिलाकर यह कहे तो गलत नहीं होगा कि नील माधव पांडा ने अपने समय की एक बेहतरीन फिल्म बनायी है जिसमें चमक-दमक भले ही ना हो लेकिन बावजूद इसके इसे देखना जरूरी है। इंसानी फितरत के चलते जिस तरह हम प्रकृति का बेजा इस्तेमाल करते चले आ रहे हैं, उससे आखिर हमारी पृथ्वी पर और वातावरण पर कितना भयानक असर हो रहा है इसे महसूस करना अत्यन्त आवश्यक है।

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कड़वी हवा का असर या कहें हवा के धोखे का दर्द फिलहाल दिल्ली से बेहतर कौन बता सकता है। लेकिन यहाँ पर यह बात भी माननी ही होगी कि दिल्ली की रफ्तार को कोई कड़वी-तीखी हवा रोक नहीं सकती। दिल्ली तो अपना मास्क पहनेगी और काम पर पहुँच जाएगी। इस बदलती आबोहवा की असली मार तो किसानों पर पड़ती है। सालों-साल ये किसान आसमान की तरफ टकटकी लगाए देखते रहते हैं कि इस बार हवा बदलेगी, बादल लाएगी, बारिश होगी।

मगर ज्यादातर मौकों पर बगैर बारिश हुए ही उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है और हर साल इनकी जमीन में आई दरारें बीते साल के मुकाबले थोड़ी और चौड़ी हो जाती हैं, साथ ही कर्जे के ब्याज की रकम भी बढ़ जाती है। इन सबके बीच जो चीज कम होती है, वह  है किसानों की मौत से दूरी। कड़वी हवा इन्हीं घटती-बढ़ती दूरियों की कहानी दिखाती है। 

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फिल्म में संजय मिश्रा का एक जगह एक डायलॉग आता है, हमारे यहाँ जब बच्चा जन्म लेता है तो हाथ में तकदीर की जगह कर्जे की रकम लिख के लाता है। यहाँ उसकी बेबसी देख आपकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र के बढ़ते जलस्तर और उससे उपजे डर कि उसका घर कभी भी समुद्र की आगोश में समा जाएगा, बेहद करीने से फिल्माए गए हैं। इसमें एक जगह यह भी आता है कि रिकवरी एजेन्ट जल्दी लोन वसूलना चाहता है ताकि वह अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर ले जा सके।

भारतीय सिनेमा ने कई मोड़ और बदलाव देखे हैं, उसकी दशा दिशा को इसके सभी तत्त्वों  ने खूब मोड़ा और प्रयास किया अपने रंग के हिसाब से ढालने का, अपने तर्क लगाए, जिज्ञासाओं को आजमाया, मस्तिष्क के तीनो हिस्सों को खंगाल कर रख दिया लेकिन कसक की लौ सभी तत्त्वों के अन्दर धधकती हुई नज़र आती है, जैसा भारत है वैसा दिखाने की अच्छी कोशिश एवं सफलता चलती रहती है।

आर्थिक व्यावहारिकता के सभी आयाम सीधे सिनेमा के मूल रूप को प्रभावित करते हैं। आज कल ऐसे कई सारे प्रयोग भारतीय सिनेमा में चल रहें हैं, लेकिन इसके इतर एक विशेष पहचान को स्थापित करने में ‘दृश्यम प्रोडक्शन’ ने अनोखा प्रदर्शन किया है। अब तक इनकी 9 फिल्मो के विषयों को देखने से यह  लगता है कि  कहीं न कहीं भारतीय समाज के मूल दर्द को यह छू  रहा है, उस दर्द के ऊपर के तिलस्मी चादर को हटाने में इनका चेतन या अचेतन प्रयास दिखाई पड़ता है। अनगिनत जिन्दगियाँ बदहाल रूप लिए हुए सरपट दौड़ रही है, उसमें मनुष्य के मानसिक स्थिति को जिन्दा बयाँ करना एक अनोखी कला है, जिसे इसमें देखा जा सकता है।

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क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग मौजूदा समय में दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है। इससे होने वाले बदलावों के बाद आने वाली तबाहियों पर सारी दुनिया चिन्तित है और इसी चिन्ता को बखूबी दर्शाती है नील माधव पांडा की फिल्म ‘कड़वी हवा’। ध्यान रहे ‘कड़वी हवा’ की कहानी बुन्देलखण्ड के सूखाग्रस्त और जलवायु परिवर्तन पर आधारित है। 

नील माधव पांडा पहले डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाते रहे हैं। 2005 में उन्होंने जो पहली डॉक्युमेंट्री बनायी  थी, वह भी ग्लोबल वॉर्मिंग पर ही आधारित थी। 2011 में उनकी पहली फीचर फिल्म ‘आई एम कलाम’ आयी थी। अपने सिनेमाई कैरियर के एक दशक के भीतर ही नील माधब की पहचान एक गम्भीर व बेहतरीन फिल्मकार के रूप में बनी। यूं भी क्लाइमेंट चेंज या जलवायु परिवर्तन की समस्या दुनिया की सबसे प्रमुख पर्यावरणीय समस्या बन कर उभरी है।

इससे मौसम का चक्र बिगड़ता जा रहा है। एक तरफ, जहाँ इसके परिणामस्वरूप अल्प वृष्टि जैसी समस्या पैदा होती है और अकाल की परिस्थितियाँ बन जाती हैं, वहीं दूसरी तरफ समुद्रों का जल-स्तर बढ़ने लगता है। इससे भविष्य में तटीय शहरों के डूबने की आशंका तक पैदा हो गयी है। यह एक विश्वव्यापी समस्या है और उस औद्योगीकीकरण का परिणाम है जिसका लक्ष्य सिर्फ मुनाफा है। 

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एक नज़र में कहा जा सकता है कि उन्होंने पर्यावरण पर लगातार बढ़ते संकट को लेकर बहुत ही प्रभावशाली फिल्म बनायी है और उन ख़तरों की तरफ ध्यान खींचा है, जिनका सामना लोगों को करना पड़ रहा है। यही वजह है कि 64वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में ‘कड़वी हवा’ का विशेष तौर पर (स्पेशल मेंशन) जिक्र किया गया। इसे एक उपलब्धि ही माना जाएगा, क्योंकि यह एक ऐसा दौर है, जिसमें मानव-सभ्यता के भविष्य को प्रभावित करने वाले विषयों पर फिल्मकारों का ध्यान नहीं के बराबर है। बॉलीवुड से सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दे गायब होते जा रहे हैं और विशुद्ध मनोरंजन हावी है।

बुन्देलखण्ड हमारा एक ऐसा इलाका है जो अक्सर सूखे के लिए खास तौर पर चर्चित रहता है।

सूखे की समस्या के कारण यहाँ के किसान कर्ज के जाल में डूबे हैं और उनकी आत्महत्याओं की ख़बरें भी आती रहती हैं। यहाँ तक कि साधनहीन ग्रामीण पेड़ों के पत्ते उबाल कर खाने को मजबूर हो जाते हैं। इस इलाके से किसान बड़ी संख्या में रोजी-रोजगार के लिए बड़े शहरों का रुख करते हैं, दूसरी तरफ इसी कारण यह राष्ट्रीय राजनीति में भी चर्चा का विषय बना रहता है।

 

Kadvi Hawa Movie Review: Yes, It Is Depressing But Unfortunately ...

‘कड़वी हवा’ में मुख्य भूमिका संजय मिश्रा और रणवीर शौरी ने निभायी है। संजय मिश्रा ने इस फिल्म में ग़ज़ब का अभिनय किया है। वे बुन्देलखण्ड में रहने वाले एक अन्धे बूढ़े की भूमिका में पर्दे पर कहर ढाते हैं। 

director Nila Madhab Panda: हमारी पीढ़ी को ...
नील माधव पांडा

निर्देशक नील माधव पांडा इससे पहले भी पानी की किल्लत को लेकर ‘कौन कितने पानी में’ फिल्म बना चुके हैं। वे उस इलाके से आते हैं जहाँ पानी की किल्लत की समस्या है। स्वाभाविक है कि पानी और पर्यावरण के मुद्दे उन्हें खींचते हैं। पांडा का कहना है कि यह फिल्म कोई कपोल कल्पना नहीं, बल्कि यथार्थ है और जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे लोगों की हालत को दिखाता है।

यह एक चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों से निबटने के लिए अभी ही तैयार हो जाएँ, नहीं तो स्थितियाँ बद से बदतर होती चली जाएँगी। फिल्म दर्शकों को बाँधे रखने में कामयाब है। उम्मीद की जा सकती है कि स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड हासिल करने वाली यह फिल्म लोगों को पर्यावरण के सवालों के प्रति जागरूक करेगी।

अपनी रेटिंग – 4.5 स्टार

नोट – इस लेख को फ़िल्म समीक्षा के नजरिये से कम। समीक्षा मिश्रित लेख के नजरिये से ज्यादा  देखा, पढ़ा जाए।

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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