उत्तरप्रदेशराजनीति

कांग्रेस के माथे पर उधार का सिंदूर

 

कभी वो कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। यूपी ही नहीं, पूरे उत्तर भारत का केन्द्र बिन्दु रहा परन्तु अब हाल इस कदर बिगड़ चुका है कि चुनाव लड़ाने के लिए प्रत्याशी नहीं मिल पा रहे हैं। उधार के कंडीडेट से काम चलाना पड़ रहा है। बात इलाहाबाद में कांग्रेस के दुर्दशा की। देश के सबसे पुराने और मजबूत राजनीतिक दल कांग्रेस के विस्तार और मजबूती के लिए इलाहाबाद के आनंद भवन को जाना जाता है। इलाहाबाद जिले में  दो संसदीय सीट है। एक इलाहाबाद और दूसरी सीट का नाम फूलपुर है।

पं. जवाहर लाल नेहरू के रूप में देश को प्रथम प्रधानमन्त्री देने वाली फूलपुर सीट पर कांग्रेस ने इस बार जो प्रत्याशी उतारा वह अपना दल ( कृष्णा गुट) से उधार लिया गया कंडीडेट है। इसी तरह इलाहाबाद सीट से भाजपा के पुराने नेता रहे योगेश शुक्ला पर कांग्रेस ने भरोसा जताया है। दोनों सीटों पर हजारों की तादात में समर्पित, प्रतिबद्ध व पुराने तपे-तपाये  कार्यकर्ता होने के बावजूद कांग्रेस को उधार के सिंदूर से सुहागन का ढोंग करना पड़ रहा है। पार्टी के आला पदाधिकारियों की यह रणनीति पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के गले नहीं उतर रही। फूलपुर संसदीय सीट की गिनती कभी कांग्रेस के मजबूत किला के रूप में की जाती रही।

पं. जवाहर लाल नेहरू तीन बार लगातार यहाँ से सांसद बने। उनके निधन के बाद पं. नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित सन 64 और 67 में दो बार सांसद बनीं। इसके बाद भी फूलपुर से कांग्रेस के सांसद चुने जाते रहे। वर्ष 1957 से 1971 तक कांग्रेस का यहाँ कब्जा रहा। इस बार फूलपुर में कांग्रेस ने एक अनोखा कदम उठाया। अपना दल (कृष्णा गुट) से गठबंधन के बाद फूलपुर सीट कांग्रेस के हिस्से में आई। कांग्रेस के खुद के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था जिसे वह मैदान में उतार सके। ऐसे में कांग्रेस ने अपना दल (कृष्णा गुट) से उधार का कंडीडेट लेकर कांग्रेस की पगड़ी पहना दी। कांग्रेस प्रत्याशी पंकज निरंजन अपना दल प्रमुख कृष्णा पटेल की पुत्री पल्लवी के पति हैं। गैर राजनीतिक व्यक्ति की पहचान रखने वाले पंकज पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह इलाहाबाद सीट से कांग्रेस ने योगेश शुक्ला के कंधे पर कांग्रेस का चुनाव टिका दिया। इलाहाबाद सीट पर भी कई साल तक कांग्रेस का कब्जा रहा। विश्वनाथ प्रताप सिंह, लालबहादुर शास्त्री, हेमवती नंदन बहुगुणा से लेकर सिने स्टार अमिताभ बच्चन तक का नाम दर्ज है।

खास बात यह है कि पंकज सिंह चंदेल के नाम से चुनाव लड़ रहे पंकज निरंजन ने नामांकन से कुछ घंटे पहले कांग्रेस की सदस्यता ली। इलाहाबाद सीट के प्रत्याशी योगेश शुक्ला नामांकन के एक दिन पहले कांग्रेसी बने। इसके पहले 2014 के संसदीय चुनाव में भी कांग्रेस ने यहाँ की दोनों सीट पर गैर कांग्रेसियों को मैदान में उतारा था। फूलपुर से क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को उम्मीदवार बनाया तो इलाहाबाद सीट से नंद गोपाल गुप्ता नंदी को मैदान में उतारा। बसपा से बाहर किये गए उद्योगपति नंदी को कांग्रेस ने सहारा दिया।

नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने चुनाव के बाद कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा का दामन पकड़ा। नंदी इन दिनों सूबे की भाजपा सरकार में कैबिनेट मन्त्री हैं। 2009 में भी कांग्रेस ने सपा नेता व पूर्व सांसद धर्मराज पटेल को फूलपुर तथा इलाहाबाद सीट से भाजपा के बागी श्याम कृष्ण पाण्डेय पर भरोसा जताया। 2004 में सपा से आये सत्यप्रकाश मालवीय को इलाहाबाद से प्रत्याशी बनाया। 1999 में सपा से बगावत करने वाली डॉ. रीता बहुगुणा जोशी को कांग्रेस ने चुनाव लड़ाया था। इस बार डॉ. रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस के खिलाफ भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं, वहीं भाजपा के नेता रहे योगेश शुक्ला कांग्रेस के टिकट पर ताल ठोंकते भाजपा के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। राजनीतिक दल और नेताओं के सांप- छछूंदर के इस खेल में वोटर मूकदर्शक बना अपने वक्त का इंतजार कर रहा है। ऐसे में यहाँ की दोनों सीटों पर चौंकाने वाला परिणाम आ जाए तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए।

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शिवा शंकर पाण्डेय

लेखक सबलोग के उत्तरप्रदेश ब्यूरोचीफ और भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के प्रदेश महासचिव हैं| +918840338705, shivas_pandey@rediffmail.com
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